नादान
नादान
आदान प्रदान किया हमनें
नादान हमें बना दिया तुमने
बागों के फूलों से कोमल हम
नादान हुए जो बने माला हम ।
एक अकेला फूल खिला खिला लगता है
माला का घेरा एक जंजीर लगता है
सुंगध तो थी एक एक फूल में ही जनाब
पूरी माला जिसे अपनी समझने लगती है ।
नाराज़ नायक की आज जरा फिक्र करलों
जो राज है सहायक उसकी कद्र कर लो
यूं तो हर हाल में बेहाल मन रहता है
जो भी हो हाल पर फिलहाल इससे नादान हो लो।
