तू आज़मा किस्मत अपनी
तू आज़मा किस्मत अपनी
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तू आज़मा किस्मत अपनी तुझे हम ही मिलेंगे
ज़माने से तो क्या उम्मीद हैं सिर्फ गम ही मिलेंगे
और जाने का दुख तो किसको हैं यहां तेरे
जख़्म ताज़ा हैं मेरे थोड़े नरम ही मिलेंगे
बच्चों की तो भूख बढ़ रही हैं अब
पर समोसे तुम्हे केवल गरम ही मिलेंगे
शराफत तो ये पूरे जहां के लिए हैं
तुझे हमेशा बेशरम ही मिलेंगे
जंगल मे तो क्या ही जीओगे तुम
सुना हैं शिकारी भी बेरहम ही मिलेंगे
कभी क्या उसूल बनाया था तुमने
जख़्म के बदलें तुम्हे ज़ख़म ही मिलेंगे
तुम्हारी गुस्ताखी की सज़ा भी तुम्हे नही देंगे
पर उस दिन हम तुम्हे खत्म ही मिलेंगे।