STORYMIRROR

Bhanu Kaushik

Abstract Classics

4  

Bhanu Kaushik

Abstract Classics

तू आज़मा किस्मत अपनी

तू आज़मा किस्मत अपनी

1 min
249

तू आज़मा किस्मत अपनी तुझे हम ही मिलेंगे

ज़माने से तो क्या उम्मीद हैं सिर्फ गम ही मिलेंगे


और जाने का दुख तो किसको हैं यहां तेरे

जख़्म ताज़ा हैं मेरे थोड़े नरम ही मिलेंगे


बच्चों की तो भूख बढ़ रही हैं अब

पर समोसे तुम्हे केवल गरम ही मिलेंगे


शराफत तो ये पूरे जहां के लिए हैं

तुझे हमेशा बेशरम ही मिलेंगे


जंगल मे तो क्या ही जीओगे तुम

सुना हैं शिकारी भी बेरहम ही मिलेंगे


कभी क्या उसूल बनाया था तुमने 

जख़्म के बदलें तुम्हे ज़ख़म ही मिलेंगे


तुम्हारी गुस्ताखी की सज़ा भी तुम्हे नही देंगे

पर उस दिन हम तुम्हे खत्म ही मिलेंगे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract