वेदना
वेदना
संवेदना के सूर बजे
जब वेदना के तार पर
फिर एक दर्द छिप गया
हल्की सी मुस्कुराहट पर
उस का यूं चला जाना
देखा ना जब मुड़कर
आँखों से बयां कर ना पायी
दिल भी रोया फूट-फूटकर
आसमान पर छाए बादल
बरसे गरज गरज कर
सब कुछ तो बह गया
बसा बसाया उजाड़कर
खैर छोड़ दो ना सब कुछ
फिर हाथ थाम ले भुलकर
जो कुछ भी हो जो सीने मे
बस रखो यूं तुम ऐसे दबाकर