“चाय”
“चाय”
सुबह के अलसाये पलों में आकर तुम ही
तो आकर दिन की शुरुआत करती हो।
मेरी साँसों में तुम्हारी गरमाहट,
महज गले को तर नहीं करती।
ये तो मिश्री सी घुलकर मेरे दिलो दिमाग़
को तरोताज़ा कर जाती है ।
दिन भर की पीडा,थकान या फिर चिन्ता,
तुम्हारा गेहूंआ रगं और ख़ुशबू पा कैसे छू से उड़ जाती है।
कभी मूड खराब हो या हो कोई खुशी,
तुम ही तो सद मेरे साथ रहती हो।
ख़ामोशी, तन्हाई,गहरी सोच
या फिर खट्टी मीठी यादें,
तुम ही तो सच्ची दोस्त बन कर साथ निभाती हो।
बड़े बड़े मसले कैसे चुटकी में हम हल कर जातीं है।
तुम कभी किसी को नाराज़ नहीं करती
कैसे हर रगं में घुल सी जाती हो।
बरसात का मौसम हो या हो सर्द भरी रातें
तुम ही तो एकांत मे हर पल साथ निभाती हो।
बीमारी में अदरक,तुलसी और इलायची संग,
कैसे औषधि सी बन जाती हो।
बड़ी फेमस हो गई हो तुम,कभी कटिंग
तो कभी हॉफ कप टी से जानी जाती हो।
कॉफी, जूस, कोल्डड्रिंक कुछ नहीं तुम्हारे सामने,
तुम तो गरमी में भी भाती हो।
पता ही नहीं चला मुझे कब आदत सी बन गई ,
धीरे-धीरे आदत से जरुरत और पता है तुम्हें
अब तो तुम नम्बर वन चाहत में आती हो।