आखिरी उम्मीद
आखिरी उम्मीद
हरा भरा एक पेड़
आशाओं की टहनियों से घिरा था,
मन का छोटा सा कोना उसके आने की उम्मीदों से भरा था।
नन्हे-नन्हे कदमों से
जो कभी गिरता तो कभी संभलता था,
उसकी आहट को पहचानना
अभी-अभी सीखा ही था,
कि एक अच्छा करियर बनाने को
जो छोड़कर सब कुछ चला गया
एक वही अकेला नहीं गया,
घर की सुख-शांति, अमन-चैन भी
साथ में अपने ले गया।
उससे मिलने की आशा में
अब दिल घबरा सा जाता है
ना जाने कब आएगा वो
ये ख्याल तड़पाता है।
बुजुर्ग हूँ ,
सांसें कब थम जाएँ पता नहीं,
अब खुद को ही संभाल नहीं पाता हूँ ,
काश कभी तो लौट आए तू
ये हर पल गुनगुनाता हूँ।
आँगन में बैठकर
अब अकेले राह तकी नहीं जाती,
औलाद का चेहरा देखने को
प्यासी आँखें इंतज़ार सहन नहीं कर पाती।
तुम नहीं आते चिट्ठी आती है
थोड़ा तो हैं याद हम भी
बस तसल्ली सी हो जाती है,
जिसमें तुम अपने नाज़ुक हाथों से लिख देते हो,
पिता जी इस बार मैं नहीं आ सकता
काम है ज्यादा समय मिल नहीं पाता,
होता गर मुमकिन आपका दिल नहीं दुखाता।
चिट्ठी पढ़कर चिट्ठी पर
मेरे आँसू गिर जाते हैं,
और हर बार दिल के अरमान
दिल में ही रह जाते हैं।
आएगा एक दिन तो तू
दिल में उम्मीद जगाता हूँ,
ईश्वर रखे सदा खुश तुझे
हर पल फरियाद लगाता हूँ।
इस बार हाथ में लाठी है ,
और चलने पर खुद को ही
संभाल नहीं पाता हूँ,
आखिरी दौर में पहुँच गया
फिर भी उम्मीद लगाता हूँ ।
जो ज़ख्म मिले हैं बुढापे से
उन पर मरहम लगाता जा,
एक बार ही सही बेटा
पर अपना मुख दिखाता जा।
खाँसी से बुरा हाल
घुटनों का दर्द , कमर में झुकाव
अब सहन नहीं होता
क्या इतना सबकुछ जानकर
कभी तेरा दिल नहीं रोता?
पेड़ था जो हरा भरा अब सूख चुका,
पूरा वीरान बन गया,
लगता है बेटा मेरा किसी वजह से
मुझसे रूठ गया
इसी के साथ एक जोरदार खाँसी आई
दबाकर साँस लिया ,
और इस पिता की आखिरी उम्मीद का जलता चिराग भी बुझ गया।
लड़ रहा था अब तक जीवन से
वो परिंदा कहीं खो गया,
पाकर खबर मौत की
बेटा भी शामिल हो गया।
हर पल था संजोया आँखों में
उस पिता का सपना टूट गया,
दूर रहकर भी पास था जो
वो साथ कहीं अब छूट गया।
थक चुका था चलते-चलते जो
वो राही राह में रह गया,
दिल की उम्मीदों का महल मानो
खंडहर सा ढह गया,
दिल की उम्मीदों का महल मानो
खंडहर सा ढह गया।