हिन्द का मैं रखवाला
हिन्द का मैं रखवाला
ये भीनी-भीनी मिट्टी की
खुशबू मन को यूँ मोह लेती है
जब भी याद आए अपनों की
आगोश में ले लेती है
छोड़ के अपना घर-परिवार
सरहद पर मैं आया हूँ
हिंद का मैं रखवाला,
माँ भारती का जाया हूँ
भांति-भांति के लोग यहाँ,
भिन्न-भिन्न भाषाएँ हैं
फिर भी एक तिरंगे को सब
अपने दिल में समाए हैं
क्या ऐसी अद्भुत सुंदरता
कहीं और भी देखी जाती है
सरहद पर सिर्फ़ एक जवान है,
ना कोई भी जाती पाती है
आन-बान और शान है
ये वतन मेरा अभिमान है
माँ भारती की रक्षा पर
मेरा हर रिश्ता क़ुर्बान है...!