बसंत का उल्लास।
बसंत का उल्लास।
फूलों की घाटी में रंग बिरंगे फूल खिले हैं।
प्रकृति ने देखो सारे रंग धरती पर बिखेरे हुए हैं।
ठंडक थोड़ी सी कम हो आई है।
सिमटे बैठे थे फूल ठंड के कारण जो खुद में ही,
मिली जो धूप तो देखो उनकी भी आंखें खुल आई है।
खिल खिल कर बिखेरते हैं अपने रंग चहुं और।
सौंदर्य देख फूलों का उल्लास मन में छाया है।
फूल भी तो देख कर हमको मुस्कुराया है।
सरसों जो खिली तो मन भी खिल गए।
मन में जो भरे थे गिले शिकवे,
फूलों को मुस्कुराते देख वह खुद ब खुद ही धुल गए।
बसंत के मौसम ने ऐसा रंग जमाया है।
वो फूल जो तुमने मेरे बालों में लगाया है।
इन्हीं फूलों में शरमा के जो चेहरा अपना छिपाया है।
रंग इन फूलों का गालों पे भी चला आया है।
हाय यह बसंत का मौसम अबकी बरस कैसा आया है?
फूलों को देख लगता है कि तुमने ही हाथ बढ़ाया है।
मदहोश है मन समझ नहीं आता कि यह सपना है क्या?
या कोई सपना सच हो आया है।
