बाल मजदूर
बाल मजदूर
बाल मज़दूर का ऐसा स्वप्न
जिसको भुला सके ना दर्पण
बाल मज़दूर की ज़िन्दगी !
रोती, बिलखती, सिसकती ज़िन्दगी !
माँ - बाप को चाहिए नोट
उनको दिखता नहीं कोई खोट
जीवन उनका ऐसा
माचिस की तीली जैसा
जलाने में लगता नहीं मिनट
वह जलती रहती तिल तिल !
बचपन में सुहानी लगती
पंखे की हवा
उनको नहीं पता
की अगर मैं पढ़ा
ऑफिसर बनकर होंगा खड़ा
ज़िन्दगी मुझे रास आएगी
होठों पे नहीं प्यास आएगी
न कोई आह
न शिकवा न शिकायत !
मेरी ज़िन्दगी होगी अपनी ज़िन्दगी
जिसमे दम -ख़म होगा
न रोने का मातम होगा
अभी कभी भूख के लिए रोता हूँ
कभी भार और मार के लिए
मैं कोई टट्टू तो नहीं
कि पैदा होते ही भार ढोऊं !
मैं थक गया हूँ भार से
जब मैं पैदा किया
सोचा नहीं माँ -बाप ने
कि मैं उन पर भार होंगा
तो मैं उनका भार क्यूँ ढोऊं
मैं जीना चाहता हूँ अपने लिए
बस अपने लिए, बस अपने लिए,
बस "शकुन" अपने लिए !