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Shakuntla Agarwal

Tragedy

4.7  

Shakuntla Agarwal

Tragedy

बाल मजदूर

बाल मजदूर

1 min
1.2K


बाल मज़दूर का ऐसा स्वप्न

जिसको भुला सके ना दर्पण

बाल मज़दूर की ज़िन्दगी !

रोती, बिलखती, सिसकती ज़िन्दगी !


माँ - बाप को चाहिए नोट

उनको दिखता नहीं कोई खोट

जीवन उनका ऐसा

माचिस की तीली जैसा

जलाने में लगता नहीं मिनट

वह जलती रहती तिल तिल !


बचपन में सुहानी लगती

पंखे की हवा

उनको नहीं पता

की अगर मैं पढ़ा

ऑफिसर बनकर होंगा खड़ा

ज़िन्दगी मुझे रास आएगी

होठों पे नहीं प्यास आएगी

न कोई आह

न शिकवा न शिकायत !


मेरी ज़िन्दगी होगी अपनी ज़िन्दगी

जिसमे दम -ख़म होगा

न रोने का मातम होगा

अभी कभी भूख के लिए रोता हूँ

कभी भार और मार के लिए

मैं कोई टट्टू तो नहीं

कि पैदा होते ही भार ढोऊं !


मैं थक गया हूँ भार से

जब मैं पैदा किया

सोचा नहीं माँ -बाप ने

कि मैं उन पर भार होंगा

तो मैं उनका भार क्यूँ ढोऊं

मैं जीना चाहता हूँ अपने लिए

बस अपने लिए, बस अपने लिए,

बस "शकुन" अपने लिए !


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