क्या खोया क्या पाया..
क्या खोया क्या पाया..
जब - जब सितम ढाया इस निष्ठुर और ज़ालिम ज़माने ने ,
अपनी नाराज़गी दिखा के, अपना सुकून गँवा के, व्यर्थ समय खर्च कर दिया.
जब-जब मुश्किलों से लादा ज़िन्दगी ने,
बेहिसाब चिंता करके अपना सुकून खर्च कर दिया.
कभी पैसे की लिप्सा में तो कभी राह के कंकड़ों से,
व्यथित हो कर, करवट बदल-बदल कर, निफ्राम नींद को खर्च कर दिया.
जब-जब नीचा दिखाया इस दुनिया ने,
स्वयं का मनोबल गिरा के, आत्मविश्वास को खर्च कर दिया.
रुपया पैसा तो चिरस्थायी हैं, खर्च किया तो दोबारा मिल जाएंगे,
व्यय के बारे में व्यर्थ सोच कर, चैन-ओ-अमन अपना खर्च कर दिया.
जो सुलझ नहीं सकतीं विषमताएं और परेशानियाँ,
उन पर वक़्त ज़ाया करते-करते वक़्त को अपने खर्च कर दिया.
ये दुनिया बहुत खूबसूरत है, इसके सौंदर्य से लगाव कर भरपूर जीना हैं अब तो,
जिस लम्हे, जिस पल से ये अनूठा सबक सीख लिया,
जीवन के आनंद को पल-पल महसूस कर भरपूर जीना शुरू कर दिया.
