नदी अनजान नहीं थी
नदी अनजान नहीं थी
नदी मुझे रोकती थी
ज़्यादा भावुक होने से
निर्रथक भटकने से
नदी इस तरह
रोकना चाहती थी
अपने प्रवाह की
क्षीप्रता और आतुरता को
बहाव की आवेगमयता
और लचकता की सहज रौ में
किसी अप्रत्याशित
मोड़ के आ जाने से
नदी सशंकित रहती थी
हर पल
हर दम
नदी बहती थी
और अपने रास्ते के
किसी संभाव्य मोड़ की
जटीलताओं से
अनजान नहीं थी...