उल्टी पुल्टी दुनिया
उल्टी पुल्टी दुनिया
कल सपने में क्या गजब हुआ,
उल्टी पुल्टी हो गई सब दुनिया,
दुल्हन घोड़ी चढ़ रही,
दूल्हा बन गया दुल्हनिया।
सासू जी हुक्का पी रही,
ससुर जी बना रहे सेवईयां,
पढ़ने जा रहे दो लड़कों को
छेड़ रही थी लड़कियां।
घर घर की कहानी बदल गई,
दूल्हे की विदाई की प्रथा चल गई।
पहली रसोई की रस्म पर
दूल्हे मियां ने खाना बनाया,
खाकर बोली सासू मां
तुम्हारे पिता ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया।
दो गज का घूंघट निकाल,
पनघट पर जा रही लड़कों की टोलियां,
उनकी बदलती चाल देखकर,
चुटकी ले रही,ताश खेलते बुढ़िया।
हर नर वधू के गर्भ से
जन्म ले रहा बस बेटा,
लड़कियां लुप्त हो गई,
बस रह गए बेटा ही बेटा।
आदमियों की दुनिया की
अब हर बात निराली थी,
चुनर ओढ़ खाना बनाते,
मूछे तक जला ली थी।
सब अधेड़ उम्र में मर रहे,
लुप्त हो रही प्रजाति थी,
कोई किसी को मारे पिटे
नोचें खरोंचे; पूरी आज़ादी थी।
उनका त्राहि माम सुनकर
नींद मेरी खुल गई,
उठकर देखा मैंने
कहीं दुनिया सच में तो नहीं बदल गई।
