समा गाफीर है
समा गाफीर है
समाही गाफीर हैं उसकी तरफ हर एक लम्हा हैं
राहे घिरी घिरी अंधेरी रस्तोंको क्या रौनक चाँद करेगा
जब बेवफा हर गली हर वह लम्हा हो गया हो
क्या जिंदगी से वफा की तू आरजू करेगा
जब उसूलात पे शक ही निगाहे मोहोबत्त झुके
गहना फिरभी मोतियों का उसिकेलिये सजे
शाम की तनहा राह भी सन्नटों में उसिका नाम लें
साँस इस दिल की हैं पर उसीकी नामसे हैं धडके
राह घिरी घिरी हैं
कोहरेमें दुआ का एहसास क्योँ जगे
निगहों में कोहराम हैं छाया फिरभी
जिने की आस क्यों जगे
भुलके राहें जिंदगी की मौत भी सकुन ना पाये
गल्तियों सें बेपनाह मोहबत्त इस तरह हो जाये
राहे जिंदगी की भुलके भी एक सुकून सा पाये।

