क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम
क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम
क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम
मेरे बगै़र,
मुझसे कोसों दूर।
तो क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम।
तो शायद, तुम्हारे वो वादे भी सब ख्याली थे।
इसलिए शायद, मेरे जज़्बात भी उस वक्त सवाली थे।
एक वक्त था जब कुछ तो था, दरमियान अपने।
क्योंकि तुम्हीं मेरी होली थे, तुम्हीं दिवाली थे।
तो क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम।
पर अब न है तुझसे दूर जाने का ग़म।
क्योंकि हो गया है मुझे एहसास अब।
कि एक उम्र का तकाजा़ था, और हम-तुम भी मवाली थे।
तो क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम।
उन जिंदा दफ़न ख्यालों के साथ,
जो करते थे इक वक्त पर इस रिश्ते की रखवाली थे।
क्योंकि हम-तुम भी,
एक वक्त पर आशिक और मवाली थे।
तो क्या कहीं आज भी जिंदा हो तुम।

