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Gopal Agrawal

Abstract

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Gopal Agrawal

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मेरा इंतजार करो

मेरा इंतजार करो

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हां मैं समय हूं,

मौन हूं,

लेकिन कुछ बोलता नहीं,

सबको देखते हुए अपनी गति से चलता हूं

मेरी बात तो सभी करते है,

लोग कहते है,

समय कैसे बदल जाता है, पता ही नहीं चलता,

लेकिन,

मैं समय हूं और सभी को घड़ी पल,

अहसास करवाता रहता हूं कि,

मैं बदला नहीं हूं,

हां लोगों के नजरिए बदल गए है,

इंतजार करने की आदतें बदल गई है,

इंतजार किसे कहते है,

यह लोगों को पता ही नहीं है,

लेकिन

इंतजार भी तो समय ही है,

मैं तो समय हूं और वहीं का वहीं हूं,

एक अटल चट्टान की भांति टिका हुआ हूं,

फिर भी लोग कहते है कि,

समय बहुत बदला सा नजर आ रहा है,

ऐसे लोग ये नहीं समझते कि,

लोगों की अब सब्र करने की सीमा टूट चुकी है,

इनमें वे लोग भी शामिल है,

जो यह मानते है कि,

सब्र का फल मीठा होता है,

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लेकिन ऐसे लोग ही सब्र ही समय है,

नहीं मानते,

और घड़ी में समय देखने लगते है,

इसे क्या कहेंगे,

मैं तो यही कहूंगा कि मैं बदला नहीं हूं,

लोगों को घड़ी पल का,

अहसास करवाते हुए बताता हूं कि,

लोगों के पास सब्र करने का,

वक्त ही नहीं बचा है,

लेकिन मैं तो समय हूं,

जो प्रकृति के तय नियमों से चलता हूं,

सब्र करने वालों का इंतजार करता हूं,

उन लोगों को सबक देता हूं,

जो दीवारों पर टंगी घड़ियों को,

या मोबाइल की चमचमाती मशीन को,

टाइम मानते है,

वो लोग समझ नहीं पा रहे है,

जो कहते है की वक्त की कीमत करना चाहिए,

वो ही लोग मोबाइलों में फिजूल के मैसेजो को,

देखने के लिए,

निहायत सब्र के साथ,

घंटों आंखें गड़ाएं नजर आते है,

मैसेज में पल भर की देरी होने पर,

यह कहते है कि कैसा समय है,



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