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Arunima Thakur

Abstract Inspirational

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Arunima Thakur

Abstract Inspirational

यशोधरा / सिद्धार्थ

यशोधरा / सिद्धार्थ

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चलिए आज यशोधरा

और सिद्धार्थ की बात करते हैं

सिद्धार्थ, जी हां सिद्धार्थ !

बुद्ध नहीं, बुद्ध तो चेतना है

चेतना से पहले, जब वे सिद्धार्थ थे

जब वे तीन हत्याओं के गुनाहगार थे

यशोधरा का सुहाग, माँग का श्रृंगार

राहुल का बचपन, बाप का दुलार

और स्वयं सिद्धार्थ की हत्या

कितनी आसानी से लोगों ने मान लिया

बुद्ध होना बलिदान मांगता है,

त्याग मांगता है I

पर इस त्याग की कीमत किसने अदा की ?

बलिदान की कसौटी पर कौन कसी गई ?

आसान है सिद्धार्थ का बुद्ध हो जाना

पर बहुत मुश्किल है

यशोधरा का बुद्ध होना I


आज हर पुरुष सिद्धार्थ है

पर बुद्ध नहीं बन सकता

पर हर नारी यशोधरा है

सिद्धार्थ निकल जाता है दिन, दोपहर,

रात बिरात, आधी रात में

दुध मुँहे लाल के साथ

रसोई में अकेले खटती,

घर की जिम्मेदारियों से जूझती

यशोधरा को छोड़कर

आज के पुरुष ने सिद्धार्थ से सीखा है,

जिम्मेदारियों से भागना।

पर वह इतना ही सीख पाया

उसने कभी बुद्ध बनना नहीं चाहा

पुरुष यशोधरा भी नहीं बन सकता

स्त्रियां भी बुद्ध नहीं हो सकती

क्योंकि

सीता का हरण किया गया था

वह अपनी मर्जी से नहीं गई थीI

फिर भी त्याग दी गई। 

क्या वह बुद्ध हो पाती ?

नहीं ! उनके ऊपर जिम्मेदारी थी

बच्चों की, अयोध्या के राजकुमारों की

गर यशोधरा रात के अंधेरे में

सोते परिवार, दुध मुँहे बच्चे को छोड़कर

घर के बाहर निकल जाती तो ?

क्या स्वीकार करते उसे ?

क्या उसे बुद्ध बनने की राह पर भी चलने देते ?

कुल्टा, निर्लज्ज, बदचलन नहीं कहते उसे

चलो उसे इन सब की परवाह ना भी हो तो !

दुध मुँहे बच्चे को छोड़कर बुद्ध जा सकते थे

यशोधरा ना जा पाएगी


बाप जिम्मेदारियों से भाग सकता है

माँ ना भाग पाएगी

सिद्धार्थ विचार नहीं करता

कि क्या बीतेगी पत्नी पर गर

सुबह उठकर वह उसे ना पाएगी

पर यशोधरा पति की परेशानियों के

विचार से ही डर जाएगी

बार-बार सोचेगी घर की जिम्मेदारियाँ

रिश्ते नाते, माँग का सिंदूर,

आंचल का दूध बाँध लेगा उसे

संभव नहीं यशोधरा का बुद्ध होना

असंभव है बुद्ध का यशोधरा होना।



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