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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Abstract

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

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नसीबा

नसीबा

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राशियों की चाल पर ग्रह थिरकते रहे 

सुब्ह होती रही रात ढलती रही ।।


हमने वादे निभाए वचन न दिए 

हमने वादे निभाए वचन न दिए ।।


इक भरोसा था जिसपे चलते रहे ।।

सुब्ह होती रही रात ढलती रही ।।


नब्ज़ की चाल बदली या के यकसाँ रही 

हम यथावत असूलों के पाबंद रहे ।।


राशियों की चाल पर ग्रह थिरकते रहे 

सुब्ह होती रही रात ढलती रही ।।


तुम तो मजबूर थे और  सितम भी सहे 

हम तो आशिक थे तुम माशूक़ थे ।।


बचपने की मोहब्बत ज़बाँ हो गई 

आस सोई नही दिल सुलगते रहे 

जख्म सीने में तिल तिल सुबगते रहे 


नब्ज़ की चाल बदली या के यकसाँ रही 

हम यथावत असूलों के पाबंद रहे ।।


हार मानी नहीं क़ोशिश जारी रही 

राशियों की चाल पर ग्रह थिरकते रहे 

सुब्ह होती रही रात ढलती रही ।।


अश्क़ आये मग़र नयनों से ढुलके नहीं 

ज़ब्त ज़ज़्बात घुट घुट के पीते रहे ।।


राशियों की चाल पर ग्रह थिरकते रहे 

सुब्ह होती रही रात ढलती रही ।।



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