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Shakti Srivastava

Abstract

4  

Shakti Srivastava

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मैं बस देखता रहा!

मैं बस देखता रहा!

2 mins
460


कि नज़रें मिली थी जब पहली दफा उससे

तो कुछ होश न रहा बस उसे देखता रहा।

नाराज थी शायद वो मेरे देखने से उसे

फिर भी मै बस उसे ही देखता रहा।


चाहता था बातें करूं उससे मै भी कुछ

कुछ जानू उसके बारे में, और बताऊं अपने बारे में कुछ

दिन ढला, सूरज ढला और वो चली गई

हिम्मत ही ना हुई उस रोज, और मै बस देखता रहा।


किस्मत अच्छी थी जो उससे फिर मुलाकात हो गई

थोड़ी ही सही पर उससे जो बात हो गई

खुशी मिली और जगे दिल के अरमान मेरे

वो मुस्कुरा के चली गई और मै बस देखता रहा।


इश्क़ था उसके दिल में भी, सिर्फ मेरे दिल में ही नहीं

सुकून मुझे ना था, तो रह सकी मेरे बिन वो भी नहीं

इजहार-ए - मोहब्बत किया मैंने तो था इकरार- ए - इश्क़ था उसे भी

अब हक था मुझे उसे देखने का, तो मै बस उसे देखता रहा।


घर वालों ने ना कर दी उसे, मेरे लिए

वो लड़ती रही अपनों से अकेले, बस मेरे लिए

करती रही मिन्नते कोशिश करने को मुझसे भी

मैंने कुछ ना किया, बस खड़ा सब देखता रहा।


और आ गया वो दिन जब हमारी आखिरी मुलाकात थी

रो रहा था आसमान, शायद हमारे इश्क़ में कुछ बात थी

मिले, और लग के रोए गले इक दूसरे के सबके सामने हम

कोन क्या सोचेगा उस रोज हमें इसकी भी ना परवाह थी

जब लौटा घर तो क्या हुआ ऐसा दोस्तों के पूछने पर मैंने कहा..

कि नजरों के सामने वो गाड़ी में चली गई, और मै बस देखता रहा।


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