हाल-ए-दिल!
हाल-ए-दिल!
कि आरजू है हमारे इक होने की,
उसे पाने की नहीं
ये इश्क़ है मेरी जां, कोई हवस नहीं
ना आयेंगे बार बार ये समझाने को
जो समझ सको तो इश्क़,
वरना कुछ भी नहीं।
ढूंढती है उसे निगाहें मेरी अक्सर,
राहों पे चलते चलते
मायूसी ही मिलती है इन्हे,
और कुछ भी नहीं।
बेचैनी सी रहती है दिल में,
अक्सर ना जाने क्यों
आखिर दिल है मेरा,
कोई पत्थर तो नहीं।
कि वफ़ादारी भी है,
और मोहब्बत भी, काम से अपने
सब भूल के इश्क़ में डूब जाऊँ,
ऐसे मेरे हालात नहीं।
अरे इश्क़ भी है,
और कुछ जिम्मेदारी भी
मतलबी मैं बन जाऊँ,
ऐसा मैं इंसान नहीं।
कमी लगती है उसकी,
अक्सर जिंदगी में मेरे,
पर कहूं किससे
आखिर जज्बात है ये मेरे,
कोई बताने वाली बात नहीं।
कोशिशें तो बहुत की हमने,
पर क्या करते साहेब
लकीरों में सब था हाथों की हमारे,
बस इस जनम में हमारा साथ नहीं।
कि ढूंढा करता था उसको,
अक्सर दिल के बाहर अपने
जो झांका दिल में,
तो ऐसा कोई पल ना था,
जब वो साथ नहीं।
मिलेंगे इक रोज़, कहीं किसी जगह
फिर से हम, भरोसा है हमारा
और जो टूट जाए, ऐसा हमारा विश्वास नहीं।
कि आरजू है हमारे इक होने की,
उसे पाने की नहीं
ये इश्क़ है मेरी जां, कोई हवस नहीं।