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Shakti Srivastava

Abstract

4.4  

Shakti Srivastava

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इस तरह जीना अब अच्छा नही लगता!

इस तरह जीना अब अच्छा नही लगता!

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639


दिन तो कट रहे है, किसी तरह मगर

इस तरह जीना अब अच्छा नहीं लगता।


वो बचपन भी कितना मासूम था, परवाह ना थी किसी चीज की

खेल खेल में लड़ते थे, फिर कस्मे खाते थे दोस्ती की

पर अब यू बेपरवाह होना भी अच्छा नहीं लगता

और इस तरह से जीना भी अब अच्छा नहीं लगता।


कुछ बड़े हुए तो जाना, जिम्मेदारी अपनी

पढ़ने लिखने में भूल गए, दुनियादारी अपनी

कुछ सफलता पाके लगा, हमने बहुत नाम कमाया

समझ ना सके कि हमने था क्या क्या गवाया

सपनों के लिए, मां बाप को छोड़ जाना भी अब अच्छा नहीं लगता

इस तरह से जीना भी अब अच्छा नहीं लगता।


वो भी क्या दिन थे, जब हम कॉलेज में होते थे

हर पल में मस्ती थी, जब दोस्तों के संग होते थे

इश्क़ के मामले में, साली किस्मत ही फूटी थी

ऐसा कोई बात नहीं, जिनमें गालियां ना होती थी

अब इस तरह यूं सुधर जाना भी अच्छा नहीं लगता

इस तरह से जीना भी अब अच्छा नहीं लगता।


हाल तो अब ऐसा है, ना मौज है, ना मस्ती है

घर से ऑफिस, ऑफिस से घर, बस यही जिंदगी चलती है

अब साथ में ना दोस्त है, ना प्यार है

क्या कहा ऑफिस, वहां तो बस मतलब के यार है

जब भी मिलता है वक़्त, पुरानी यादों में खोए रहते है

और कैरियर के लिए, इधर उधर भटकते रहते है

बार बार शहर छोड़ जाना भी अब अच्छा नहीं लगता

इस तरह से जीना भी अब अच्छा नहीं लगता।


कभी सोचता हूं क्यों ना जिंदगी में कुछ ऐसा करें

कुछ इश्क़ करें, कुछ काम करें, कुछ सुधरे रहें, कुछ बिगड़े रहें

कुछ अच्छा करें, कुछ गलती करें, अपनों के संग जिंदगी, जीतें रहें

कभी सुख भी हो, कभी दुःख भी हो, कभी उत्साहित तो कभी बेबस रहे

बस एक सा ना हो कभी, थोड़ा बहुत ही सही पर बदलाव होता रहे

अरे पर ये तो सपने है, और केवल सपनों में ये

सब होना भी अब अच्छा नहीं लगता 

क्या करें साहेब, इस तरह से जीना भी अब अच्छा नहीं लगता।

इस तरह से जीना भी अब अच्छा नहीं लगता।


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