ज़माने को दिखाना ही पड़ता है
ज़माने को दिखाना ही पड़ता है
वो झूठ भी इतनी खूबसूरती से कहते हैं,
कि मान जाना ही पड़ता है।
वो कहते हैं पानी को आब-ए-आईना,
फिर भी उनको आईना दिखाना ही पड़ता है।
पत्थर की मूरत में वो तलाशते हैं ख़ुदा,
तो ख़ुदा को भी ऐतबार जताना ही पड़ता है।
इंसान अपने गिरेबान में खुद झांकता नहीं,
उसको अक़्सर बतलाना ही पड़ता है।
मुकम्मल नहीं होती हर शख़्स की मोहब्बत,
कभी-२ भूल जाना ही पड़ता है।
और कई रंग मिले हैं इस ख़ुदग़र्ज़ ज़माने में।
कि ज़माने से ही सीखा है, ज़माने को दिखाना ही पड़ता है।