वो भी क्या दिन थे ।
वो भी क्या दिन थे ।
वो भी क्या दिन थे ।
जब वो उम्र भर साथ निभाने की बातें हमें सुनाया करते थे ।
वो भी क्या दिन थे ।
जब वो मेरी हर तस्वीर को अपने फोन का वालपेपर बनाया करते थे ।
वो भी क्या दिन थे ।
जब-जब तकलीफ़ होती थी मुझको,
मेरे हर दर्द के आंसू उनकी आंखों से छलक जाया करते थे ।
वो भी क्या दिन थे ।
जब वो हमारे फ़ोन से अपनी सुबह और रातें जगाया करते थे ।
और जब उनसे बातें करते हुए लम्हें यूं कट जाया करते थे।
वो भी क्या दिन थे ।
जब हर शख्स था गै़र उनके लिए,
मसलन, वो हमसे ही अपने सारे राज़ बताया करते थे ।
वो भी क्या दिन थे ।
जब मेरी हर खामोशी वो आंखों में समझ जाया करते थे ।

