Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Abstract

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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यशस्वी (7)

यशस्वी (7)

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असफलता जनित अवसाद में लगभग 3 वर्ष पहले, यशस्वी ने आत्महत्या की कोशिश की थी। ऐसे समय यह विश्वास दिलाया जाना कि जीवन होता है तो उसमें, अपार संभावनायें, विद्यमान होती हैं, जैसे विचार देने वाले की जरूरत थी।

सुखद बात थी कि मेरे द्वारा, उसे यह विश्वास दिलाया जा सका था। साथ ही यशस्वी के जीवन में अब बिखर रहे, इंद्रधनुषी रंगों ने उसके समक्ष, इसे सिद्ध भी कर दिया था।

हुआ यूँ था कि रात्रि भोजन के बाद प्रिया ने, मुझसे बताया कि आज, उन्हें यशस्वी ने कॉल किया था।मेरे लिए यह कोई नई सूचना नहीं थी, ड्रेस डिजाइनिंग को लेकर, यशस्वी एवं प्रिया में प्रायः बात हुआ करती थी। आज के कॉल में यशस्वी की कही बात को जानने में इसलिये मुझे, कोई विशेष उत्सुकता नहीं थी। तब भी मैंने प्रिया से पूछ लिया - क्या कहा, यशस्वी ने ? तब प्रिया ने बताया - यशस्वी के मन-मस्तिष्क में प्रेम का, अंकुरण हो रहा है। यह बात प्रिया एवं यशस्वी के मध्य होती बातों से, बिलकुल जुदा थी। सामान्यतः डिजाइनिंग से विलग तरह की बातें यशस्वी, प्रिया से नहीं, मुझसे किया करती थी। अतः यह सुनते ही, मेरी जिज्ञासा बढ़ी।

मैंने रूचि लेते हुए पूछा- कहिये, क्या बताया है, यशस्वी ने?  तब प्रिया ने बताया कि - यशस्वी की बुटीक में, सामान्यतः महिलायें एवं लड़कियाँ आया करती हैं। पिछले दो तीन महीनों से, एक नौजवान लड़का प्रायः (फ्रीक्वेन्ट्ली) आ रहा है। वह कभी अपनी मम्मी या कभी अपनी बहन के साथ, वस्त्र खरीदने के बहाने आता है। उस लड़के ने बोलकर तो नहीं, मगर आँखों की भाषा में यशस्वी से, अपना प्रेम होना दर्शाया है। 

इसे यशस्वी समझ भी रही है लेकिन प्रत्यक्ष में वह, उस लड़के के सामने अनजान होना दिखा रही है। यशस्वी ने यह भी बताया है कि उस लड़के की, इन कोशिशों से लड़के के लिए, यशस्वी के मन में गुदगुदाता सा स्थान बन गया है। 

मैंने तत्परता से पूछा - यशस्वी के बताने का प्रयोजन क्या था? उसे इसको लेकर कोई सलाह चाहिए थी ? 

प्रिया ने उत्तर दिया - यशस्वी ने कहा है, वह इसे बहुत गंभीरता से नहीं अपितु सहज में ले रही है। यह बताने का उसका प्रयोजन, मन की बात शेयर करना है। उसने किसी एक से, यह कहने के लिए, मुझे उपयुक्त माना है। 

मैंने कहा - इस उम्र में, ऐसा हम दोनों में भी हुआ था। यशस्वी, कॉलेज पढ़ने नहीं गई है अन्यथा ऐसा उसके साथ पहले ही हो जाता। 

फिर हमने एक दूसरे को प्यार से देखा था और दोनों, खुल कर हँस पड़े थे।

फिर मैं सोचने लगा था, यशस्वी को अपनी किसी समस्या में, पहले मैं याद आता हूँ। अपनी इन कोमल भावनाओं का राज यशस्वी ने मगर, प्रिया से शेयर किया है।

शायद वह, समझ रही होगी कि मैं कठोर एक पुलिसिया, प्यार की मधुर-कोमल अनुभूतियों को, नहीं जानता होऊँगा। मैंने धैर्य रखा सोचा कभी, मुझसे भी यशस्वी इस बारे में बताएगी। तब इस पर से ध्यान हटा कर, मैंने अपने विभागीय काम के लिए लैपटॉप खोल लिया था।

तत्पश्चात् कुछ दिन बीते थे। एक रात दस बजे, मोबाइल पर इनकमिंग कॉल आया, देखा तो, यशस्वी की तस्वीर थी। सोचते हुए कि आज, उस नौजवान से प्रेम की बात, यशस्वी मुझसे कहेगी। मैंने कॉल आंसर किया। यशस्वी ने कहा - नमस्ते सर, कृपया और एक मार्गदर्शन कीजिये।

मैं बोला - नमस्ते यशस्वी, बताइये किस बात के लिए।

यशस्वी ने बताया - आज जब मैं, बुटीक बंद कर घर पहुँची तो मुझे, हमारे दूर के रिश्ते के चाचा, हमारे घर से विदा लेते दिखे। माँ उन्हें बाहर तक आकर, विदा कर रहीं थी। मैंने अंदर, जाकर माँ से पूछा, ये किस लिए आये थे? तब, माँ ने बताया कि चार महीने पहले, उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गई है। उनके दो बेटे, क्रमशः 13 एवं 11 साल के हैं। कह रहे थे, आप तैयार हो तो शादी करना चाहते हैं। तब मैंने पूछा, माँ आपने, उनसे क्या कहा है? माँ ने बताया, मैंने कहा कि बेटियों से बात करने के बाद बताऊँगी। यह सुनने के बाद मैंने उनसे कुछ और नहीं पूछा है। इसी के बाद आपसे, पूछने के लिए कॉल किया है।

मैंने पूछा - माँ और चाचा की उम्र, कितनी-कितनी है?

यशस्वी ने बताया - माँ 43 की हैं, चाचा 2-3 साल, माँ से छोटे हैं। 

मैंने कहा - माँ ने सीधे मना नहीं किया होने से, लगता है कि वे दूसरे विवाह को तैयार हो सकती हैं। उन्हें, इस उम्र में जीवन, पति के बिना, कठिनाई का लग सकता है। अतः मेरी समझ से यह शादी उपयुक्त हो सकती है। आप, निर्णय लेने के पहले दो बातों पर विचार कर लीजिये कि चाचा नशेलची न हों और उनकी आर्थिक स्थिति कम से कम आप जैसी हो। दूसरी बात, माँ के जाने के बाद बहनें, आप पर निर्भर हो जायेंगी। क्या, यह जिम्मेदारी आप ले सकेंगी। 

यशस्वी ने उत्तर दिया - ये चाचा, किसी सरकारी विभाग में क्लर्क हैं और उनमें कोई बुराई नहीं सुनी है। उनका 50 किमी दूर, कस्बे में खुद का घर है। जहाँ तक बहनों की बात है तो मैं, 5 वर्ष शादी न करूँगी, तब तक वे दोनों पर्याप्त बड़ी हो जायेंगी।

मैंने तब कहा - तब कोई समस्या नहीं है। माँ की शादी कराओ और 'बेटी द्वारा माँ का कन्यादान करने' का अनूठा उदाहरण समाज के समक्ष रखो।

यशस्वी ने कहा - सर, पूछते हुए मुझे, आपका उत्तर पता था। हाँ, इस कार्य को 'बेटी द्वारा माँ का कन्यादान करना', आपका हमेशा की तरह नया तरह का निरूपण है। यह सब सुनकर, अब यह कार्य, मैं पूरे उमंग-उल्लास से करुँगी। 

फिर यशस्वी हँसी थी।

मैंने भी हँसते हुए कहा - यशस्वी, अपने पिछले कुछ वर्षों पर विचार करो। क्या कभी सोच सकती थी कि तुम, इतना और ऐसा सब कुछ कर सकोगी। यशस्वी ने तब गंभीर होकर जबाब दिया - सर, यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप मिले। मुझे, आपने ना केवल अवसाद से निकाला बल्कि अपने सकारात्मक विचारों से, मुझमें हमेशा उत्साह एवं आत्मविश्वास का संचार करते रहे हैं। मैंने पिछले तीन वर्षों में ऐसी अविश्वसनीय तरह की उपलब्धियां हासिल की हैं जो मैं, पहले कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी। 

मैंने कहा - यशस्वी, तुम एक मनुष्य हो। साथ ही तब किशोरवया और अब युवा भी हो। मैं मानता हूँ कि तुम जैसी प्रत्येक बेटियों (और बेटों में भी) ईश्वर अनंत क्षमता एवं संभावनायें प्रदान करते हैं। 

आवश्यकता मात्र, युवाओं को, उनकी ऐसी योग्यताओं का अहसास कराने वाले मार्गदर्शन की होती है। मैं, इसे मेरा सौभाग्य कहूँगा कि उस चरम अवसाद के दिन के बाद से, तुमने मेरी हर बात मानी है। तुमने, मुझे ऐसा अवसर सुलभ कराया है जिसमें मैं, अपने को एक शिल्पकार अनुभव कर रहा हूँ जो, एक पत्थर में भगवान तराश दिया करता है। 

उस दिन, अंत में यशस्वी ने कहा - सर, आप प्रथम श्रेणी के तथा एक वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप अपने विभागीय दायित्व ही नहीं वरन, अपने सामाजिक दायित्व भी, पूर्ण गंभीरता एवं अनुकरणीय जिम्मेदारी से निभाते हैं। अगर ऐसा दायित्वबोध आप के तरह के, सभी वरिष्ठ व्यक्तियों में हो तो, हमारे समाज में अवसाद अस्तित्वविहीन हो जाएगा।

फिर यशस्वी ने कॉल खत्म किया था।

बाद में मैं सोच रहा था कि यशस्वी ने प्रिया को तो बताया था मगर उस नौजवान लड़के से, अपनी प्रेम अनुभूति की बात मुझसे नहीं कही थी। वह अपनी बहनों एवं माँ के भविष्य को प्राथमिकता देते हुए, अपना विवाह पाँच वर्ष तक नहीं करने जा रही थी।

ऐसा, सिर्फ मनुष्य के जागृत विवेक के अवलंबन से ही, संभव हो सकता था।


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