काश! काश! 0.32...
काश! काश! 0.32...


उस रात पार्टी के बाद वापस लौटते हुए जब ऋषभ कार चला रहे थे और दोनों बच्चों आपस में बातों में मस्त थे तब अपने मन में उठ रहे विचारों में डूबी मैं सोच रही थी कि -
हर पराया पुरुष नारी, पर कामासक्त दृष्टि नहीं रखता है। सृजन और ऋषभ तरह के ऐसे बहुत पुरुष भी हैं जो समाज में नारी को बहन-बेटी की दृष्टि से देखते हैं। मैं सोच रही थी कि हर माँ के गर्भ से जन्मने वाला बेटा सृजन की तरह हो। जिन बेटी का कोई सगा भाई नहीं हो उनका वास्ता ऋषभ-सृजन के तरह के पुरुषों से ही पड़े। यह सोचते हुए मैं अपने पर ही हँसने लगी थी कि सभी में ऐसा आदर्श पुरुष आचरण कैसे संभव है!
नेहा की दी पार्टी को 15 दिन हुए थे। व्हाट्सएप पर नेहा और मेरे संदेशों का आदान-प्रदान कम हो गया था। कारण उसकी अध्यापन कार्य की व्यस्तता थी। अब उनके बीच सब सामान्य हुआ या नहीं जानने की जिज्ञासा में मैंने उसे ऑफिस के ब्रेक के समय में कॉल किया था। आंसर मिलने पर मैंने पूछा - "नेहा, कैसी हो अब?"
नेहा ने हँसकर बताया - "ओह्ह रिया मैम, मैं खुद भी आपसे बात करना चाहती थी। मैं अब के अपने जीवन से संतुष्ट हूँ। कॉलेज में बच्चों की अच्छी टीचर हो पाऊँ, इस हेतु मुझे लेक्चर की अच्छी तैयारी करने के लिए बहुत पढ़ना पड़ता है। ऐसे व्यस्तता बढ़ जाने से चाहकर भी मैं आपसे बात नहीं कर पाई। "
मैंने कहा - "हाँ नेहा, मैं समझ सकती हूँ। आप मुझे आदर देते हुए मैम कहती हो मुझे अच्छा तो लगता है मगर आप रिया कहो यह ठीक होगा। इन दिनों में, मैं आपकी इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प की प्रशंसक हुई हूँ। मुझे गर्व है कि आप मेरी फ्रेंड हो।"
नेहा ने कहा - "मैम, मुझे यह कहने से न रोकें। आपमें मैं अपना वह हितैषी देखती हूँ जो दुनिया में बिरले ही हैं। आपने सदैव मेरी खुशी की चिंता की है।"
मैंने पूछा - "नेहा, अच्छा यह बताओ, आपके हस्बैंड ठीक हैं अब? "
नेहा ने कहा - "हाँ नवीन ने मेरी अपेक्षा अनुसार सुधार लाया है। फिर भी मैं अब भी उतनी सामान्य नहीं रह पाती हूँ। मैंने ऋषभ जी और सृजन जी जैसे पुरुष भी देखें हैं। मैं न चाहते हुए भी नवीन की तुलना उनसे करने लगती हूँ। "
मैंने कहा - "नेहा, ऐसी तुलना अच्छी बात नहीं है। सब लोग एक जैसे स्वभाव और विचार रखने वाले नहीं हो सकते हैं। फिर भी मुझे आशा है, आप जैसी आत्मविश्वासी अच्छी पत्नी की उपलब्धियाँ, नवीन में और परिवर्तन प्रेरित करेंगी। आशा है वह भी कभी, सृजन जी और ऋषभ जी जैसा प्रशंसनीय हो जाएगा।"
नेहा ने कहा -" अगर ऐसा हुआ तो आगे मैं भी अपने को सौभाग्यशाली पत्नी कहूँगी। "
मैंने कहा - "नेहा मुझे आपके जीवन में आगे बहुत अच्छा समय आता दिख रहा है। अच्छे के लिए अब तक किया गया आपका संघर्ष आगे अच्छा फलदायी होगा। "
नेहा खुश हुई थी। तब बाय कहते हुए हमने कॉल खत्म किया था।
3 दिन और बीते थे। वह दिन रविवार था तब हमारे लंच के समय अचानक अश्रुना आई थी। हमने उसे भी साथ लंच करने कहा तो वह मान गई थी। हमारे साथ लंच लेते हुए वह पहले के मुकाबले अधिक प्रसन्न लग रही थी। लंच के बाद मैंने बच्चों से स्कूल से मिली एक्टिविटीज करने के लिए कहा था।
ऋषभ, अश्रुना और मैं बैठक में आ गए थे। अश्रुना ने ऋषभ को एक लिफाफा देते हुए कहा - सर, यह दस हजार रुपए हैं। आपकी दी शेष रह गई राशि, मैं दो तीन महीने में लौटा दूँगी। मैंने नवीन सर के दिए पूरे रुपए भी वाप
स कर दिए हैं।
ऋषभ ने पूछा - इतनी जल्दी तुम्हारे पास इतने रुपए कैसे आ गए हैं?
अश्रुना ने बताया - सप्ताह भर हुए मेरे पापा लौट आए हैं। वे एक छोटे ठेकेदार हैं। पूर्व में किए ठेके के कार्य का भुगतान उन्हें मिला है। मैंने उनसे बताया कि घर का खर्च चलाने और रेनोवेशन कार्य के लिए मुझे कॉल सेंटर के जॉब से अग्रिम राशि लेनी पड़ी है। तब उन्होंने मुझे उसे लौटाने के लिए रुपए दिए हैं। उन्होंने कहा है कि अब जब वे आ गए हैं तब मुझे पार्ट टाइम काम करने की जरूरत भी नहीं है।
ऋषभ ने कहा - "अश्रुना यह तो खुशी की बात है।"
फिर ऋषभ ने अपना लैपटॉप लिया और कहा - रि"या, मुझे कुछ काम करना है। आप, अश्रुना से बात करो।"
कहते हुए वे अपने कमरे में चले गए थे। अब तक मैं अश्रुना और ऋषभ की बातें सुनकर सोच में खोई हुई थी। ऋषभ के जाने पर मैंने कहा - अश्रुना, तुम्हारे पापा के चंचल चरित्र को देखने से लगता है कि आपके परिवार पर से विपत्ति का दूर होना अस्थाई बात है। पता नहीं आगे फिर कब वे इस बार की तरह, फिर महीनों के लिए गायब हो जाएं।
अश्रुना जो अब तक खुश दिखाई पड़ रही थी। मेरी यह बात सुनकर चिंता में पड़ गई थी। उसने कहा - "मैम, यह तो है। उनका ऐसे होने से इस बात की कोई गॉरन्टी नहीं है मगर मम्मी और मैं क्या कर सकते हैं। आगे जब ऐसी मुसीबत फिर आएगी किसी तरह से हमें फिर निबटना होगा।
मैंने कहा - "अश्रुना, हमें चीजों को ऐसे होते जाने से रोकना चाहिए। कोई ऐसा उपाय करना होगा कि आपके पापा, अपने पारिवारिक दायित्वों से यूँ बार बार पलायन नहीं करें। अपनी पत्नी अर्थात् तुम्हारी मम्मी से विश्वासघात और धोखा करते हुए, अपने दो बच्चों को उनकी अकेली ही जिम्मेदारी की तरह छोड़कर फिर न भागें। "
अश्रुना ने कहा -" मैम, पूर्व में मम्मी ने उनसे लड़कर, उनके सामने रोकर और गिड़गिड़ाकर भी उन्हें ऐसा न करने को रोका है। पापा पर हर बात का असर अस्थाई होता है। रह रहकर उन पर उनकी अय्याशी प्रवृत्ति हावी हो जाती है। वे घर से महीनों के लिए बार बार गायब हो जाते हैं।
मैंने कहा - तुम्हारी मम्मी ने उन्हें बुरी बातो से दूर रहने के लिए अपनी तरह से मनाने की असफल कोशिशें कर लीं हैं। अब तुम बड़ी हो गई हो। मैं चाहती हूँ अब बेटी के रूप में तुम उन्हें किसी उपाय से ऐसा करने से रोकने की कोशिश करो। "
अश्रुना ने कहा - "मैम, सोचती तो मैं भी हूँ मगर मुझे कोई समुचित उपाय सूझता नहीं है।"
मैंने कहा - "अश्रुना, तुम और सोचो, बुराई से हमें पराजित नहीं होना चाहिए। बुराई पर जय, ‘हमारी अच्छाई’ की होना चाहिए। मैं भी इन कठिनाई से तुम्हारे परिवार को निकालने का कोई उपाय सोचती हूँ। जैसे ही मुझे ऐसा कोई उपाय या विकल्प समझ आएगा मैं तुम्हें बताऊंगी।"
अश्रुना ने विचार में पड़ी रहकर उदासी से कहा - "मैम, यदि हम पापा की बुराई कम करने का कोई स्थाई समाधान खोज सकें तो इससे अच्छा और कुछ नहीं होगा।"
मैंने उसके कंधों को थपथपा कर उसका मनोबल बढ़ाने के लिए कहा - कोई उपाय निश्चित मिलेगा। हम मनुष्य हैं। हम अगर बुरे समय में हैं तो हमें इसे अच्छा बनाने के लिए आजीवन उपाय करने होते हैं।
अश्रुना संशय में रही थी। यह कहते हुए विदा हुई थी - हाँ मैम, हमें आशा रखनी ही होगी कि हम समस्या का समाधान कर पाएं।
काश! अपने इस मंतव्य में सफल हो पाएं…