Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

काश! काश! 0.35...

काश! काश! 0.35...

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नेहा जब तक आर्थिक रूप से अन्य पर निर्भर थी तब भी वह क्रमशः अच्छी किशोरी, युवती एवं गृहिणी रही थी। उसने महाविद्यालय में छोटे पद पर जॉब की शुरुआत की थी। अब जब लेक्चरर के आदरयुक्त पद पर पदासीन होने के साथ वह आत्मनिर्भर हुई तब अच्छी गृहिणी और छात्र-छात्राओं की चहेती मैम भी थी।

यह नवीन का भाग्य था कि इतनी प्रतिभाशाली युवती उसकी पत्नी थी। उसने सहकर्मी युवती रिया से छेड़छाड़ करने की चूक की थी। रिया के केस नहीं करने से उसे विभागीय दंड संहिता या न्यायालय के चक्कर में उलझना नहीं पड़ा था। वह सोचता था कि उसे लोग भाग्यशाली मानते होंगे कि उसकी यह समस्या (या अपराध) अधिक क्षति पहुंचाए बिना टल गई थी। तथापि यह नवीन ही जानता था कि यह भूल उसे महँगी पड़ी थी। 

नवीन ने साढ़े चार महीने अपनी पत्नी नेहा के तिरस्कार में, उससे और अपने बच्चों से दूर रहकर सजा जैसे बिताए थे। इस दंड भुगतने की प्रक्रिया में भी उसने और भूलें कीं थीं। जिनसे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुँची थी। वह अपने आस-पड़ोस में शराबी और कॉलगर्ल से संबंध रखने वाले बुरे आदमी की तरह बदनाम हुआ था। 

नवीन सोचता था, इन सब के बीच एक बात अच्छी हुई थी। उसने कॉलगर्ल को घर बुलाया था। यह नेहा के द्वारा उस पर निर्मित मानसिक दबाव था जिससे वह, कॉलगर्ल से निंदनीय माने जाने वाले संबंध से बच पाया था। उसकी छवि पास पड़ोस की दृष्टि में बुरी भी हुई थी। तथापि नेहा के द्वारा उसकी सच्चाई पर विश्वास कर लेने से, वह खुद अपनी और कुछ हद तक पत्नी की दृष्टि में और गिरने से बच गया था। 

नवीन ऐसा भी सोचता था कि स्वयं और पत्नी की दृष्टि में इतना ही गिरा था कि यदि उठ कर संकल्प सहित सही पथ पर चलने की कोशिश जारी रखेगा तो वह फिर अपना सम्मान बना पाएगा। 

अब जब नेहा और बच्चे, उसके साथ वापस आ गए थे तब नवीन सोचा करता था कि उसकी सुयोग्य पत्नी नेहा यदि आज जैसी लेक्चरर होती तो वह उसकी परिणीता ही नहीं बनी होती । यदि वह उससे विवाह के पहले ही आत्मनिर्भर एवं जॉब करने वाली लड़की रही होती तो उसका उससे विवाह ही नहीं हो पाता। नेहा को निश्चित ही उससे अच्छा और योग्य पति मिला होता। 

नवीन ने सबक के रूप में चार माह जिए थे। अब नेहा के स्वरूप में हुए परिवर्तन के बाद वह सहम गया था। वह मन ही मन अपने दोनों कान पकड़ कर अपनी पूर्व की बुरी प्रवृत्ति तज देने का संकल्प दोहराया करता था। 

वह, नेहा के लेक्चरर के पद पर चयन के बाद दी गई पार्टी में, उसे मिल रहे आदर का साक्षी हुआ था। उसकी यह गलतफहमी भी मिट गई थी कि उसकी आश्रिता पत्नी, नेहा का स्वागत उसके भाई के परिवार में नहीं होगा। उसने देखा था चार माह के लंबे समय नेहा के गौरव-गर्विता के साथ रहने के बाद भी जब वह वापस आ रही थी तब भी वे दोनों उसे विदा करते हुए कितने दुःख में थे। 

वह समझ रहा था कि नेहा वापस आने के बाद अंतरंग पलों में उसका साथ तो देती थी मगर उनके संबंध में टूटन के पहले वाला जैसा साथ वह नहीं दे पाती थी। नवीन सोचता था कि काश! उनके रिश्ते में यह दरार कभी आई ही न होती। उनके संबंध को पुनः जोड़ने वाली गाँठ अस्तित्व में नहीं आई होती तो कितना अच्छा होता। 

नवीन अब बदल रहा था। पूर्व की भाँति घर का मुखिया बनकर अपनी ही चलाने की प्रवृत्ति अब वह छोड़ रहा था। अब वह घर में नेहा का हाथ बराबरी से बँटाया करता था। वह पछतावे से भरा रहता था कि उसने करतूतें करके न केवल अपने सुख की हानि की थी बल्कि अपनी निर्दोष पत्नी के जीवन सुख को भी नष्ट किया था। अब वह उत्सुक रहता था कि अपनी ओर से उसकी अधिकतम भरपाई कर पाए। 

इन्हीं सबके बीच एक दिन उससे अश्रुना मिली थी। उसने नवीन की उसे दी हुई सहायता राशि धन्यवाद सहित लौटाई थी। उस रात नेहा के सामने अपनी अच्छाई रखने के लिए नेहा से कहा - नेहा पता है मैंने अपने किए पाप के प्रायश्चित में एक भला काम किया है। 

नेहा ने पूछा - वह क्या?

नवीन ने कहा - जिस अश्रुना को मैंने कॉलगर्ल के रूप में अपने घर बुलाने की गलती की थी उसे देखकर मुझे तुमसे अपने कमिटमेंट स्मरण आ गए थे। फिर मैंने उसे अपनी बहन-बेटी की दृष्टि से देखा था। उसे यह काम छोड़ने को प्रेरित करते हुए उसकी आर्थिक जरूरतों में सहायता देने का वादा किया था। उसे मैंने उस रात और उसके बाद दो बार सहायता राशि भी दी थी। 

नेहा ने कहा - हाँ, यह बात आपने गौरव को बताई थी। गौरव से मुझे भी यह बात पता चल गई थी। 

नवीन ने कहा - नेहा इसके आगे खुशी की बात यह है कि आज अश्रुना मुझसे मिली थी। उसने सधन्यवाद मेरे दिए रुपए लौटाए हैं। उसने देह व्यापार का पेशा भी छोड़ दिया है। 

नेहा के मन में गाँठ थी वह नवीन से अधिक प्रेम अनुभव तो नहीं कर पा रही थी। तथापि वह सोच रही थी कि यदि कोई व्यक्ति अच्छाई की तरफ प्रवृत्त हो रहा हो तो उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए। उसने कहा - 

हाँ, नवीन अगर ऐसे अच्छे कार्य आप निरंतर करते रहे तो मैं अपनी मन में हमारे संबंधों में जो गाँठ पड़ गई है उसका आकार, छोटे से छोटा कर पाऊंगी। 

कुछ दिन और बीते थे एक दिन कॉल पर गर्विता ने बताया - दीदी मेरा वजन काफी बढ़ गया है। समीप आते प्रसव के इन दिनों में मेरी न केवल शारीरिक परेशानियाँ बढ़ी हैं अपितु मुझे मानसिक सहारे की जरूरत भी है। दीदी मुझे लगता है कि आपसे बेहतर यह सहारा मुझे कोई और नहीं दे सकता है। क्या आप 2-3 महीने हमारे साथ आकर रह सकती हैं?

नेहा सोच रही थी, गर्विता का यह कहना, उसकी अच्छी ननद सिद्ध होने का प्रमाण है। भाई-भाभी के जरूरत पर काम आने का अवसर नेहा तरह की ‘श्रेष्ठ नारी’ भले कैसे चूकती, उसने अपनी वाणी में वात्सल्य की मधुरता सहित कहा - गर्विता, हाँ-हाँ मैं अवश्य ही आऊँगी। मैं कभी नहीं भूलूँगी कि मेरे कठिन दिनों में तुम भाभी-भाई ने आदर और स्नेह से मेरा साथ दिया था। 

गर्विता ने कहा - दीदी, फिर ठीक है, गौरव रविवार को आपको लिवा लाने के पहुँचेंगे। 

नेहा ने कहा - ठीक है मैं तैयारी रखूँगी। 

रविवार को नेहा, पुनः एक बार लंबी अवधि के लिए घर से जा रही थी। अबकी परिस्थितियाँ पूर्व से भिन्न थी। नवीन उदास तो था मगर अब उसे नेहा और अपने बच्चों से जब मर्जी हो तब गौरव के घर जाकर मिलने की अनुमति थी। 

इस बार नेहा जब भाई के घर पहुँची तब उसके साथ सामान पहले से भी अधिक था। दरवाजे के सामने इतना सामान देखकर गर्विता बहुत प्रसन्न हो रही थी। वह अपना बड़ा हुआ पेट बचाते हुए नेहा दीदी से गले लग कर उनका स्वागत कर रही थी। वह हर्ष अतिरेक में हँस रही थी। नेहा के गालों को चूमते हुए वह कह रही थी - दीदी, बता नहीं सकती कि मुझे कितना अच्छा लग रहा है। मेरी दीदी अब बहुत दिनों तक मेरे साथ रहने के लिए आई है। 

नेहा ने कहा कुछ नहीं था। हँसकर, दुलार करते हुए गर्विता के पेट पर चुम्मी ली थी। तब गर्भस्थ शिशु ने अपनी बुआ को पहिचाना था। उसने अंदर से हलचल करते हुए, अपने ढंग से नेहा का अभिवादन किया था ….  


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