काश ! काश ! 0.33...
काश ! काश ! 0.33...


कुछ दिन बीते थे। नेहा के कॉलेज में एनुअल डे पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन था। नेहा के माध्यम से मुझे भी इसका आमंत्रण मिला था। मुझे बॉलीवुड सिनेमा या टीवी से अधिक ‘स्टेज’ आकर्षित किया करता था। उस दिन मैं ऑफिस से आधे दिन का अवकाश लेकर कॉलेज पहुँच गई थी।
आत्मविश्वास से भरी नेहा के द्वारा स्टेज पर कार्यक्रम का संचालन करना देखकर मैं आश्चर्यचकित थी। मैं सोच रही थी यह युवती कितनी गुणी है। इसके जीवन में, पति नवीन के द्वारा चुनौती निर्मित नहीं कर दी गई होती तो नेहा की प्रतिभा, गृहिणी के दायित्व में घर में लगे रहकर, कभी भी लोगों के सामने नहीं आ पाती। स्टेज पर अब छरहरी हुई नेहा को हल्के मेकअप में देखना, मुझे किसी तारिका को देखने जैसा लग रहा था।
जब हम किसी को पसंद करने लगते हैं तो वह हमें अधिक सुन्दर, अधिक योग्य लगने लगता है तथा अधिक ही आकर्षित करता है। कदाचित् मेरे साथ भी यही हो रहा था।
उस दिन स्टेज पर कॉलेज के छात्र छात्राओं ने एक नाटक का मंचन किया था। यह नाटक ‘नारी-पुरुष के समान देखने की आवश्यकता’ और उसमें नारी का पक्ष प्रस्तुत कर रहा था। आज के ज्वलंत विषय वाले इस नाटक में मुख्य नारी पात्र के मुँह से कुछ डायलॉग्स सुनना मुझे पसंद आए थे। उसके कहे कई संवाद में सार यह था -
अपने देश एवं समाज में हम, जब जब नारी को समान अवसर देने की बात करते हैं तब तब हमारी परपंरागत विचार शैली के समर्थक लोग पाश्चात्य विश्व का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं पाश्चात्य संस्कृतियों में नारी को मिली समानता ने, वहाँ दांपत्य जीवन का स्थायित्व खत्म कर दिया है। वहाँ की नारी विवाह पूर्व और विवाहेतर संबंध में लिप्त होकर मर्यादाहीनता का उदाहरण बन रही है। इस कारण उनमें विवाह विच्छेद हो रहे हैं।
नाटक में ही उसने प्रश्न रखे थे - ‘हमारे समाज में नारी को अपने अधीन रखने की परपंरागत विचार शैली के समर्थक, विशेषकर पुरुष वर्ग से मैं आज यह पूछना चाहती हूँ कि क्या वे स्वयं विवाह पूर्व या विवाहेतर यौन संबंध को उत्सुक नहीं रहते हैं?’
‘एक लड़की जब सोशल साइट पर अपनी आईडी बनाती हैं तो क्या वे उसकी गरिमा का विचार किए बिना उससे अश्लील संदेश और उत्तेजक चित्रों से उसे दुष्प्रभावित करने की कोशिशें नहीं करते हैं?’
अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें, पाश्चात्य नारी का तर्क देकर नारी में दोष देखने और बताने का व्यर्थ प्रयास नहीं करना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि नारी का चरित्र या समाज में दांपत्य जीवन पर आज आता संकट नारी को समानता या उसे वर्किंग होने के अवसर से उपस्थित नहीं होता है। अपितु यह सब पुरुष की कलुषित सोच और मानसिकता से होता है। पुरुष अपनी अनियंत्रित कामुकता में नारी से सुख की चाहत में, उसको अपनी वासना का शिकार बनाने के उपाय में लगा रहता है।
अगर पुरुष यही करता रहता है तब नारी को गृह सीमा और पर्दों में रहने पर भी दांपत्य बंधन पर संकट उपस्थित होता है। समाज में, मनुष्य चरित्र में बिगाड़ अकेले नारी की लिप्तता से नहीं होता है। इसमें निश्चित ही पुरुष
कृत्य प्रमुख कारण होता है। नारी संकोची और लज्जाशील है। ऐसे किसी बिगाड़ की पहल उसकी ओर से नहीं होती है। अतः आवश्यकता नारी की समानता में अड़ंगा डालने से अच्छा, पुरुष का चरित्रवान होना है।
यदि पुरुष चरित्रवान होगा तो नारी का चरित्र सती सावित्री से कम नहीं होगा।
मुझे यह नाट्य मंचन बहुत भाया था। मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था नाटक कथा लिखने वाले ने जैसे मेरे मन को पढ़कर यह सब लिखा और मंचित किया है।
कार्यक्रम खत्म होने को आया तब अश्रुना ने मुझे वहाँ देख लिया था वह मेरे पास आई थी। वह मेरे बगल में अभी ही रिक्त हुई कुर्सी पर आ बैठी थी। शिष्टाचार की बातों के बाद उसने मुझसे कहा -
रिया मैम, आप की प्रेरणा से मैंने उपाय सोचा था और उस अनुसार, पापा से एक दिन बात भी कर ली है। अब मुझे आशा हो गई है कि मेरे पापा परिवार के लिए अधिक दायित्व का परिचय दे सकेंगे।
मैंने प्रसन्न होकर कहा - अश्रुना यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं तुमसे इस बारे में विस्तार से सुनना पसंद करुँगी, क्या इस रविवार तुम दोपहर के भोजन पर मेरे घर आ सकती हो?
अश्रुना ने कहा - रिया मैम, डेफिनेटली आई विल कम फॉर लंच देट डे। मुझे एक बार फिर आपके साथ लंच लेने में खुशी होगी।
अश्रुना और मुझमें यह तय हो जाने के बाद, मैं विदा लेने के लिए नेहा के पास गई थी। नेहा ने मुझे देखकर खुश होते पूछा - रिया मैम, आप कब आईं, आपने आज का पूरा कार्यक्रम देखा है?
मैंने कहा - हाँ पूरा देखा भी है और इसका पूरा आनंद भी उठाया है। सच कहूँ तो अगर आज मैं यहाँ नहीं आती तो मुझे कभी पता ही नहीं चलता कि मैंने कितना अच्छा और सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम मिस कर दिया है।
नेहा यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। आत्मविश्वास से भरी आज की नेहा ने मुझे गले लगा लिया था। हम में ऐसा पहली बार हुआ था। आज के पूर्व मुझे लगता था कि वह मुझे अपने से श्रेष्ठ मानकर कभी मेरे साथ बराबरी से नहीं मिलती है। नेहा के लेक्चरर हो जाने ने उसका वह हीनता बोध मिटा दिया था। उसके बराबरी से मुझसे मिलने पर मैं अत्यंत प्रसन्न थी।
नेहा और मेरे यूँ आलिंगनबद्ध होने से, हम आसपास के कुछ लोगों के आकर्षण और उत्सुकता के केंद्र हो गए थे। तब मैंने नेहा का फ्रेंड होने का कर्तव्य पूरा किया था। हमें देख रहे लोगों और नेहा के सह-अध्यापकों को सुनाते हुए मैंने कुछ ऊँचे स्वर में कहा -
नेहा मैम, आज का महाविद्यालय में मंचित सांस्कृतिक कार्यक्रम बेजोड़ था। इसकी प्रस्तुतियों में आपके कुशल कार्यक्रम संचालन से चार चाँद लग गए हैं।
नेहा ने गौर कर लिया था कि मैंने प्रथम बार उसे मैम का संबोधन किया है। वह अपनी प्रशंसा से गदगद होकर और अधिक आकर्षक लग रही थी। फिर उसने पूछा - क्या सचमुच, रिया मैम?
मैंने उसी की लय में कहा - हाँ सचमुच, नेहा मैम!
फिर हम दोनों आनंद विभोर होकर जोरों से हँसने लगे थे। हमारे पास के लोग जिन्होंने हमारा वार्तालाप सुना था, उनमें से कुछ हमारा हँसकर साथ दे रहे थे और कुछ मंद मंद मुस्कुरा रहे थे ….