काश काश ! 0.36...
काश काश ! 0.36...
ऋषभ के कैलिफोर्निया गए होने से, बच्चों के सो चुकने के बाद का रात का मेरा समय एकाकी में रहने का होता था। मेरे विभागीय एवं पारिवारिक दायित्वों के बाद, मुझे इसमें समय की अनुमति मिलती थी कि मैं, मेरे सामाजिक विषयों एवं दायित्वों पर मनन-चिंतन कर पाऊँ।
मेरे दिमाग में ऐसे ही विचारों के होने पर, एक रात मैं पुनः अपनी डायरी लेकर बैठी थी। पिछले बार जब मैं लिख रही थी तब मेरा लिखने का क्रम भंग हुआ था और मेरा लिखना अधूरा रह गया था। अतः मैंने अपने लिखे गए पिछले कुछ पृष्ठ पढ़े थे। उसके बाद डायरी पर मेरी लेखनी चलने लगी थी -
मैं समझती हूँ कि भारत में पारिवारिक नारी-पुरुष युगल का दांपत्य, तीन प्रकार में से एक होता है -
पहला प्रकार, उस पति-पत्नी (युगल) की तरह का होता है जिसने परिवार परंपरा की बुनियाद रची एवं अपने जन्में बच्चों के साथ रहने की प्रथा चलाई थी। उस परिवार में पति (पुरुष), इस बात को साक्षी रहा था कि उसकी पत्नी ने, अपने माँ एवं भाई बहन के बीच से अपरिचित परिवार में आने का साहस दिखाया था। उस पत्नी ने, अपनों को छोड़कर पति से प्रेम में पड़कर परायों के बीच रहने में, खतरा हो सकता है इस तथ्य को दरकिनार किया था। ऐसे परिवार में अपनी पत्नी के साहस हेतु, पति (पुरुष) उसके प्रति श्रद्धानत रहा था। वह अपनी पत्नी को अपने से श्रेष्ठ मानव अनुभव करने और प्रकट करने में संकोच नहीं करता था।
मैं सोचती हूँ ऋषभ और मेरा, पति-पत्नी का रिश्ता और परिवार, उस युगल के प्रकार का है। मेरे पतिदेव, मुझ (अपनी पत्नी) को उस प्रथम पति की तरह वाला आदर और प्यार देते हैं। वे मुझे अपने से अधिक प्रोमोट करने को उत्सुक रहते हैं। उन्हें इस बात में कोई आपत्ति नहीं होती है कि मेरी पहचान उनसे अधिक रहे। अपितु वे अपने से ज्यादा मेरी पहचान और उपलब्धियों का होना, देखने को व्यग्र रहते हैं। वे इस हेतु हर संभव सहयोग और प्रयास करते हैं।
मुझे लगता है हमारे समाज में दूसरी तरह का युगल, पुरातन समय में बन गई पति-पत्नी और परिवार की परंपरा को निभाने वाले उस युगल के प्रकार का है, जिसमें पति (पुरुष) ने, कई स्त्रियों से संबंध की पाषाण युगीन प्रवृत्ति भुलाई नहीं है। ऐसा वाला पति, नारी का अपनों को छोड़कर परायों में आ बसने के साहस एवं त्याग को विस्मृत कर चुका होता है। वह पत्नी का मायका छोड़ आना सामाजिक रीति मात्र जानता है। सामान्यतः वह अपनी पत्नी के सामने अच्छा दिखने को प्रयत्नशील रहता है मगर पत्नी से छुपा कर अन्य स्त्रियों से संबंध करने, उनसे सुख भोगने को उत्सुक रहता है।
मुझे लगता है नवीन-नेहा के बीच का रिश्ता, उस तरह के युगल का उदाहरण है।
मैं सोचती हूँ हमारे समाज में तीसरे तरह का युगल, वैसा प्राचीन कालीन युगल की तरह का है जिसमें पत्नी, पुरापाषाण काल से चलती आई पुरुष प्रवृत्ति का शिकार होकर अनेक पुरुषों की वासना पूर्ति को लाचार होने के बाद, पत्नी के रूप में उनमें से एक को पति स्वीकार करती और उसके घर में रहने आती है। यद्यपि ऐसे परिवार में पति भी अनेक औरतों से संसर्ग सुख ले रहा/चुका होता है। तथापि वह पत्नी के इतिहास को भुला नहीं पाता है। वह अपने और अपनी पत्नी के लिए दो अलग मानदंड मानता है। वह स्वयं तो अनेक युवती से संसर्ग अभिलाषी होकर स्वयं के लिए अनेक से संबंध को उचित मानता है तथापि अपनी पत्नी से अपनी (एक की) होकर रहने को बाध्य करना चाहता है। वह अपनी पत्नी की पूर्व की भूलों को जो उसने पुरुष के बलपूर्वक या धूर्तता से बाध्य होकर कीं हुई होतीं हैं, के लिए उससे शिकायत रखता है।
मैंने विचार किया कि अश्रुना का जब विवाह होगा तब संभवतः वह इस प्रकार का युगल होगा।
मैं सोच रही थी नेहा, अश्रुना और मैं, लगभग एक ही तरह की लड़कियाँ/युवतियाँ हैं मगर हमें मिले पुरुष (पति) अलग अलग इन तीन प्रवृत्तियों वाले होने से हमें जीवन सुख अलग अलग स्तर के मिलते हैं। एक मैं परम सुखी, दूसरी नेहा ठीक ठीक सुखी और तीसरी अश्रुना सुख कम और दुःख अधिक प्राप्त करती है।
नींद आने से मैंने डायरी साइड टेबल पर रखी थी और मैं सो गई थी।
आठ दिन बाद ऋषभ कैलिफोर्निया से लौट आए थे। तब एक दिन ऋषभ, मेरी डायरी पढ़ रहे थे। मुझे यह देखकर अच्छा लगा था। ऋषभ और मेरे, सभी तरह के अकाउंट/आईडी एवं पासवर्ड, हम आपस में जानते थे। हमारे संबंध में पूर्णरूपेण पारदर्शिता थी।
कुछ दिन बीते थे। एक दिन ऋषभ ने मुझे बताया - रिया, कंपनी मुझे कैलिफ़ोर्निया ट्रांसफर कर रही है।
मैंने कहा - इससे तो मेरा जॉब चला जाएगा। यह मैं कैसे कर पाऊंगी।
ऋषभ ने कहा - आप भारत में रहकर तीन तरह के युगल और स्त्री-पुरुष का होना अनुभव करती हैं। वहाँ आपको चौथी तरह के अनेक स्त्री-पुरुष भी मिलेंगे। जो असभ्य (पाषाण कालीन) पुरुष और तत्कालीन ‘मजबूर नारी’ के, एकाधिक से खुले यौन संबंधों की परंपरा, आज के इस सभ्य कहलाते समाज में चला रहे हैं।
मैंने कहा - ऋषभ क्या आप ऐसा व्यभिचार दिखलाने के लिए मुझे कैलिफ़ोर्निया ले जाना चाहते हैं।
ऋषभ ने हँसकर कहा - नहीं रिया, मैं ऐसा नहीं चाहता हूँ। आजकल भारत के स्त्री-पुरुष पाश्चात्य देशों में पहुँच रहे हैं। मैं चाहता हूँ आगे के जीवन में तुम वहाँ की समाज संस्कृति भी देखो जिसमें नारी-पुरुष को समानता दी जाती है। यद्यपि वहाँ नारी प्रकट में दिखलाई पड़ती समानता में जीती है मगर वहाँ भी अनेक पुरुषों द्वारा धूर्तता से नारी को, जीवन के मजे लेने के नाम पर उकसाया जाता है। वहाँ अति आधुनिक नारी का नाम देकर, उसे पुरा पाषाण कालीन नारी अर्थात् ‘मात्र उपभोग की वस्तु’ की तरह प्रयोग किया जाता है।
मैंने कहा - यह तो मैं नेट पर यहीं देख और समझ पा रही हूँ। इसके लिए मुझे वहाँ जाने की आवश्यकता नहीं है।
ऋषभ ने हँसकर उत्तर दिया - रिया, आप उसके लिए नहीं अपितु इसके लिए मेरे साथ चलो कि वहाँ आप, अपने भारतीयों सहित अन्य में, हमारी समाज संस्कृति की अच्छाइयों को एक मसीहा की तरह प्रवर्तन करो। आप, नारी-पुरुष की वहाँ की वास्तविक समानता को देखो और उसके जो लाभ हैं, उसे वहाँ से परिष्कृत रूप में हमारे यहाँ के समाज के सामने लाओ। ताकि हमारी और उनकी दोनों ही संस्कृति में से अच्छी प्रथाएं लेकर एक वास्तविक अच्छी जीवनशैली की परंपरा की शुरुआत हो सके। जिसमें नारी-पुरुष साथ साथ समानता में चरम जीवन सुख का लाभ ले पाएं।
मुझे ऋषभ की बातें समझ आईं थीं। मुझे ऋषभ पर विश्वास एवं उनके प्रति पूर्ण श्रद्धा थी।
इसके पंद्रह दिन बाद हम महानगर के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से, कैलिफोर्निया के लिए जाने वाली उड़ान में थे। वहाँ के जीवन का आनंद लेने की कल्पनाओं को लेकर ऋषभ से अधिक, हमारे बच्चे और मैं उत्साहित थे ….
(कहानी अभी के लिए समाप्त, यद्यपि जीवन कहानी कभी समाप्त नहीं होती है)