क्यों आवश्यक है नशे की बढ़ती प्रवृत्ति का विरोध?वास्तव में नशा होता क्या है?
क्यों आवश्यक है नशे की बढ़ती प्रवृत्ति का विरोध?वास्तव में नशा होता क्या है?
वास्तव में नशा होता क्या है? नशा एक मानसिक स्थिति होती है, जिसमें मनुष्य का अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण नहीं रह जाता है। इसके दुष्प्रभाव में मस्तिष्क सही तरह से काम नहीं करता है। इससे नशेड़ी व्यक्ति का अपने शारीरिक अंगों पर से नियंत्रण छूट जाता है। उसके हाथ काँपने लगते हैं। वह लड़खड़ाते हुए चलता है। उसके मुख से निकलने वाला स्वर विचित्र हो जाता है। वह कुछ भी अटपटा, भला बुरा कहने लगता है। ऐसी मानसिक और शारीरिक स्थिति में नशेड़ी व्यक्ति बैठने उठने का विवेक भी खो देता है। वह नाली एवं ऐसी ही गंदी जगहों पर भी नशे की स्थिति में लोट पोट होने में संकोच नहीं करता या अपने को रोक नहीं पाता है। नशे की अवस्था में वह जी तो रहा होता है मगर उसे स्वयं पता नहीं होता है, वह कैसे जी रहा है।
स्पष्ट है, जो व्यक्ति अधिक नशे में रहने का आदी हो जाता है उसे अनेकों दिन अपने जीने का पता नहीं होता है। ऐसे में उसके जीवन के दिन, यदि 30000 रहे हैं और उसने 3000 दिन नशे की उपरोक्त वर्णित स्थित में बिताएं हैं तो उसका वास्तविक जीना 27000 दिनों का रह जाता है। अर्थात् 80 वर्ष के स्थान पर, वह 70 वर्ष ही जी पाया होता है। मनुष्य को यों भी बड़ा जीवन नहीं मिलता है, किंतु नशे की बुरी प्रवृत्ति में वह अनायास ही अपना जीवन उससे भी कम कर लेता है। यह काल्पनिक बात तो उदाहरण के लिए लिखी गई है जबकि नशे का यथार्थ इससे भी बुरा एवं विकराल होता है। वास्तविकता यह है कि नशे के अत्यंत अधिक आदी हुए व्यक्ति, वृद्धावस्था आने के पहले ही अपना स्वास्थ्य खराब कर बैठते हैं। वे मनुष्य की सामान्य आयु भी जी नहीं पाते हैं। 80 वर्ष तक जी सकने वाला मनुष्य नशे की अधिकता से अस्वस्थ होकर, अनेक बार 50-60 वर्ष का जीवन भी नहीं जी पाते हैं।
नशे को अच्छा मानने वाले या उसमें आनंद मानने वाले, स्वयं पर, अपने परिवार पर या अपने समाज और राष्ट्र के साथ, अनायास ही अन्याय करते हैं। सरल शब्दों में लिखें तो 80 वर्ष का गुणवत्ता एवं फलदायक जीवन जीने वाला मनुष्य, नशे के प्रभाव में 40-50 वर्ष का ही प्रभावशाली जीवन जी पाता है। उसने स्वयं तो अपने जीवन के 30-40 वर्ष खो दिए होते हैं, साथ ही वह अपने परिवार को भी अनावश्यक पीड़ा पहुँचाने का दोषी हो जाता है। ऐसा व्यक्ति, जिस समाज और राष्ट्र के अप्रत्यक्ष सहयोग से बड़ा हुआ होता है, वह बड़े होने पर इसका ऋण उतार सकने वाले, समाज और राष्ट्र की सेवा के कार्य करने में असमर्थ रह जाता है।
नशे का अत्यंत बुरा एक और पक्ष होता है। अनेकों व्यक्ति होते हैं जो नशा किए बिना अपना पूरा जीवन जी लेते हैं। जब ऐसे नशा नहीं करने वाले व्यक्तियों के जीवन खर्च से, किसी नशेड़ी व्यक्ति के खर्चे की तुलना की जाए तो देखने मिलता है, अपने पर 10 हजार रुपए मासिक खर्च करने वाले सामान्य व्यक्ति की तुलना में, नशा करने वाला व्यक्ति 15 हजार रुपए तक मासिक खर्च कर रहा होता है। इसका कारण यह होता है कि जिन कृत्रिम/अकृत्रिम पदार्थों से नशा किया जाता है वे सब अत्यंत महँगे मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है, नशा करने वाला व्यक्ति अपने परिवार, बच्चों के जीवन-यापन के लिए, नशा नहीं करने वाले व्यक्ति की तुलना में कम सहयोगी होता है। अन्य शब्दों में लिखें तो वह अपने पारिवारिक दायित्वों की उचित तरह से पूर्ति नहीं कर पाता है। अगर वह नशा नहीं करने वाले व्यक्ति, जितना आर्थिक सहयोग करना चाहे तो नशे पर खर्च करने के लिए उसे भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती या ठगी करना होता है। नशेड़ी व्यक्ति यदि पुरुष होता है तो वह प्रायः अपनी पत्नी से झगड़ता और ग्रह हिंसा भी करता है। नशे के पदार्थों के सेवन से व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने की संभावना भी होती है। नशे करने वालों में सामाजिक नहीं रहने, आत्महत्या, अराजकता और अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
उपरोक्त सभी तरह के कृत्य समाज में अच्छे नहीं माने जाते हैं इसलिए नशेड़ी व्यक्ति का समाज में तिरस्कार भी होता है। संक्षिप्त में लिखें तो मनुष्य जीवन में जो सुख, आनंद, सामाजिक प्रतिष्ठा होती है, व्यक्ति उसे नशे में मिलते आनंद के भ्रम में खो देता है।
यों तो मनुष्य समाज में तम्बाखू, भाँग एवं मदिरा का नशा प्राचीन समय से होता है मगर पिछले कुछ दशकों से विश्व में मैथ, एमडीएमए (3,4-मेथिलीनडाइऑक्सी-मेथामफेटामाइन), गांजा, अफीम (ऑपियम), ब्राउन स्मैक, एफआईएनयू (फेंटेनल), ब्लैक टोप (हेरोइन), कोकेन, सिंथेटिक ड्रग्स (स्पाइस और बैथ सैलोर) एवं मारिजुआना आदि का प्रयोग अत्यंत अधिक बढ़ गया है।
कुछ देशों की युवा पीढ़ी तो बुरी तरह से इसकी चपेट में आ गई है। इससे पढ़ने वाले छात्र पढ़ने में एकाग्रता खो रहे हैं। परिवार वाले इन नशों से मुक्ति दिलाने के लिए, जब उनके उपचार कराने जाते हैं तो उन्हें अत्यधिक धन व्यय करना होता है।
जो व्यक्ति लंबी अवधि तक नशा करते हैं, उन्हें कई तरह के घातक रोग हो जाते हैं। स्मोकिंग करने वालों में से 25 प्रतिशत लोग कैंसर का शिकार हो रहे हैं। उनमें कई प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। जिनमें से मुख कैंसर, फेफड़े का कैंसर, किडनी का कैंसर, गला कैंसर आदि शामिल होते हैं।
इन नशीली दवाओं/पदार्थों और ड्रग्स के सेवन से मानसिक और भावनात्मक समस्याएँ हो सकती हैं। इनमें मानसिक रूप से अस्थिरता, उदासी, डिप्रेशन, अवसाद, चिंता, विक्षिप्तता और भयानक विचार आने का खतरा होता है। इतना ही नहीं, मैथ, एमडीएमए, ब्राउन स्मैक, एफआईएनयू, ब्लैक टोप और कोकेन जैसी नशीली दवाओं का सेवन, मेमोरी लॉस, कोशिकाओं में क्षति और निरंतर मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं की संभावना उत्पन्न करता है। इसके साथ ही नशीले दवाओं का सेवन दिल, किडनी, लिवर, फेफड़ों और अन्य शरीर के अंगों को खराब कर सकता है, जिससे हृदय के रोग, श्वसन संबंधी समस्याएँ, किडनी विफलता और अन्य समस्याएँ हो सकती हैं।
इन नशीली दवाओं के सेवन से व्यक्ति का व्यक्तिगत ही नहीं, सामाजिक और पारिवारिक जीवन भी प्रभावित हो सकता है। जैसे कि उसे, मित्रों और परिवार से अलग होना, असामाजिक व्यवहार, आर्थिक समस्याएँ, और नौकरी या शिक्षा के संबंध में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। एक ही समय में इन नशीली दवाओं का अत्यधिक मात्रा में सेवन प्राणघातक हो सकता है। बीड़ी-सिगरेट के रूप में गांजा का सेवन करने से फेफड़ों के संक्रामक रोगों और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
जिस नशे की प्रवृत्ति से, मनुष्य के जीवन में इतनी सब समस्याएँ और आशंकाएँ उत्पन्न हो सकती है उस संबंध में सामाजिक चेतना उत्पन्न करना अत्यंत आवश्यक है। नशे के कारोबार में किसी ने सहयोग नहीं करना चाहिए और इसका व्यापक विरोध होना चाहिए।
हम सभी को शपथ लेनी चाहिए कि ‘हम कभी कोई नशा स्वयं नहीं करेंगे और ना ही किसी को नशा करने के लिए प्रेरित करेंगे’।
नशा का विरोध इसलिए भी होना चाहिए कि जीवन के लिए नशा किसी तरह से आवश्यक नहीं है। जो आवश्यक नहीं है, उसके लिए हमें अपना धन, प्रतिष्ठा एवं प्राण गँवाने का खतरा नहीं लेना चाहिए। अगर हम जान बूझकर नशा करते हैं तो हम मूर्ख नहीं तो क्या कहलाएंगे?
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