टूटे पति को सँभालना
टूटे पति को सँभालना
बात लगभग 28 वर्ष पुरानी है। मैं असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में जहाँ पदस्थ था, वहाँ मुझ पर कार्य की अधिकता एवं कर्तव्यपालन में चुनौतियाँ अत्यंत अधिक थीं। मुझे अपने परिवार - अपने नन्हे नन्हे बच्चों के साथ, तसल्ली से बिताने के लिए समय का अभाव रहता था। मेरी कामना परिवार में प्रसन्नता से रहने की होती थी, यह अवकाश के दिनों में भी पूरी नहीं हो पाती थी।
वास्तव में मुझ पर मेरे कार्यक्षेत्र में विद्युत वितरण के सुचारु रखने के दायित्व थे। विद्युत व्यवधान हर दिन चौबीस घंटे में कभी भी हो सकते थे। विद्युत व्यवधान दिन रात, मौसम या अवकाश का दिन, कुछ नहीं समझते थे। मुझ पर विद्युत प्रदाय सामान्य रखने के लिए, कार्य पर उपस्थित होने की आवश्यकता किसी भी समय आ जाती थी।
मेरे विवाह को तब आठ वर्ष हुए थे। स्पष्ट है मेरी पत्नी को भी अपने पति, अपने बच्चों के पापा, अर्थात् मेरा साथ और घर में रहना प्रिय लगता था।
इन सब विकट परिस्थितियों में, मैं अपना ट्रांसफर अन्य स्थान पर करा लेने की कोशिश करता था। यह हो नहीं पाता था। मैं व्यथित रहता चिड़चिड़ा रहा होता था। तब मेरी ऐसी मानसिक/शारीरिक स्थिति देखकर, मेरी पत्नी रचना ने एक दिन मुझसे पूछा - आपके पहले भी यहाँ कोई असिस्टेंट इंजीनियर काम करता था?
मैंने कहा - हाँ, तिवारी साहब करते थे।
रचना ने फिर कहा - आपके यहाँ से ट्रांसफर के बाद भी, कोई असिस्टेंट इंजीनियर यहाँ काम करेगा या नहीं?
मैंने कहा - बिलकुल करेगा, क्षेत्र का विद्युत प्रदाय तो मेरे बाद भी विभाग को सुचारु रखना होगा।
अंत में उस दिन रचना ने मुझसे कहा - जब आपके पहले भी कोई यह दायित्व निभाते रहा था, आपके बाद भी कोई आकर यह दायित्व निभाएगा। वे दोनों ही आपके जैसे ही इंजीनियर होंगे। जब अन्य इंजीनियर, यह काम कर सकते हैं तो आप क्यों नहीं?
रचना मेरे से साढ़े तीन वर्ष छोटी और तब 29 वर्ष की थीं। उन्होंने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए थे। मुझे लगा था रचना इंजीनियर नहीं मगर विवेक-बुद्धि में मुझसे कम नहीं।