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Ajeet Kumar

Abstract Children Stories Tragedy

4  

Ajeet Kumar

Abstract Children Stories Tragedy

यादों से जुदाई

यादों से जुदाई

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दरवाजे पर एक दो बार दस्तक हुई। कोई जवाब नहीं आया। फिर जोर से एक लात पड़ी। दरवाजा भन्न से खुल गया। अंदर सोया बच्चा जोर जोर से रोने लगा। आने वाले शख्स ने गालियों की बौछार कर दी। ' कहाँ मर जाती हो , खाना जल्दी से लगाओ और इस को चुप करवाओ, मेरा दिमाग खराब हो रहा है '

बबिता दीदी को पता नहीं चला कि वो पहले क्या करे। डरते हुए दरवाजा बंद किया और फिर बच्चे को गोद में उठाते हुए खाना निकाल ही रही थी कि एक लात पीठ पर पड़ी। ' इतनी देर, जब मोहल्ले की और सब रंडियो के साथ गुलछर्रे उड़ाने मेले जाती हो तब तो बड़ी फुर्ती रहती है।' 

 बबिता दीदी मुँह के बल पर गिर पड़ी। बिजली गुम था। सामने घर बनने के लिए आया हुआ ईंट और छड़ रखा था। माथे और मुँह से खून फेंकने लगा। बच्चा गोद से छूटकर पास में ही लुढ़क गया और रोने लगा। पति आराम से अपनी जगह पर बैठा रहा। बबिता दीदी ने खाना निकाला, पानी रखी और भगाते हुए पास के झोला छाप डॉक्टर के पास गयी। टिका पट्टी हुई। खून बंद हुआ तो घर आयी। पति बेफिक्र सोया था। शायद डर से बच्चा भी सो गया था। सुबह हुई। उसने बिना किसी को इत्तला किये हुए नैहर भाग आयी थउन्ही दिनों जब वो सामने से जा रही थी तो मैंने हाल चल पूछा। वो पहले सकुचाई क्यूंकी मेरे दादाजी और उनके पिताजी में उनदिनों अनबन चल रही थी। मैंने मुस्कुरा क़र उन्हें आश्वाशन दिया। वो बिफर पड़ी और मेरा हाथ पकड़कर रोने लगीमेरे चचेरे दादा की एकमात्र बेटी थी बबिता दीदी। बचपन में जब मैं गलती से लगाने वाली दवा पी गया था, माँ बताती है मैं पीला पड़ रहा था। माँ ने घबराकर आसपास सबको बताया। पुरुष सब काम पर चले गए थे। तब बबिता दीदी लेकर मुझे भागी इतनी तेज भागी थी कि आवाज सुनकर आये कई पुरुष भी पीछे रह गए थे। बबिता दीदी ने मुझे नया जीवन दान दिया था। उनकी ये हालत देखकर मैं काँप गया।' कैसे बताई रे बौआ ! उ कउनो दोसर के चक्कर में अपना काम धंधा सब छोर चुकल है , खली दारु रोज पीतौ आ हमरा मारतौ '

वो अंतिम बात स्त्री स्वभाव से दुहराने लगी। और शुरू वाली बात सुनकर मेरा चेहरा लाल उठा। सहज रिश्ता होते हुए भी मैंने शर्म से अपना चेहरा नीचे क़र क़र लिया।बबिता दीदी की शादी की यादें मेरे बचपन की यादों में से प्रिय था। तब मैंने होश संभाला ही होगा। बालमन में भारतीय शादी के सारे रीती रिवाज सहेज क़र रखे हुए थे। वेपर लाइट से पूरा टोला जगमगया था। उस जमाने में ८० हजार तिलक ( दहेज़ ) और कई तरह के आभूषण भेंट चढ़े थे। पूरी शादी का अल्बम बना था, जो की उस पुरे इलाके का प्रथम था। बड़ी ठाठ बाट से बरातियों को ठहराया और खिलाया गया था। हम बच्चो ने मड़वा सजाने में कोई कसार नहीं छोड़ी थी। कपड़ो से भरे चॉकलेट्स, झूठी आमे ( जिसे हमने पानी से भरकर सील दिया था और सीले स्थान को बांस की छड़ी में लटकाकर मड़वे में बांध दिया था ) और कई सारी चीजे थी। 

बारातियों को खाने से लेकर उन्हें तंग करने और उन्हें भुतहा बगीचा न जाने की सलाह गंभीरता पूर्वक दिया था। हमने पानी में कोको कोला डालकर पिया था और उसके झूठे नशे में रात तक नाचे थे। फिर जो गिरे, सुबह विदाई समय ही उठे। जब बबिता दीदी की विदाई होने लगी, तो मैं खूब रोया था। मैं कितना नौटंकी था बचपन में, और उस दिन पूरा टोले ने इस बात का सबूत देखा था। लोग मुझे बार बार पकड़ रहे थे और मैं उनसे छूटकर बबिता दीदी क़ी कार क़ी दिशा में भाग रहा था। जब सबको लगा, कार बहुत दूर चली गयी तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं कम से कम २ -३ किलोमीटर रोते बिलखते दौड़ा था। लौटकर मैं भूतवा बगीचा में बैठा रहा था। फिर मैं पूरे दिन घर नहीं आया था। शाम में जब भूतवा बगीचा के भूत मुझे बुलाने लगे, तो मैं दौड़ा दौड़ा माँ के आँचल मेआज बबिता दीदी की ये हालत देखकर मुझे उन यादो से मोह भंग हो गया था। यादों से जुदाई का प्रथम अध्याय। 

बहुत दिन बाद जब मैं दिल्ली में नौकरी क़र था तो पता चला बबिता दीदी पति को छोड़कर दादाजी क़ी खेती बाड़ी देख रही थी। मैं अगली छुट्टी का इंतजार करने लगा।  


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