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Ajeet Kumar

Abstract Romance Fantasy

3  

Ajeet Kumar

Abstract Romance Fantasy

उसके आने के बाद -२

उसके आने के बाद -२

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सुबह हुई तो बिस्तर पर से दो मैं उठे। सपने वाला मैं अभी सपने में था। सपने देखने वाले मैं का सपना खत्म हो चूका था।

मैं उठा और कॉलेज चला गया। सपने वाला मैं बिस्तर से उठकर सपने को नोटबुक्स में लिखने लगा।

अगले कुछ दिनों तक -

मैं भारी भारी लेक्चरस के बीच दबा हुआ आने वाले कॉलेज प्लेस्मेंट्स के बारे में सोच रहा था। सपने वाला मै नोटबुक्स की दुकान के चक्कर कांट रहा था। मैंने अपने नोटबुक्स बाँट रखे थे - पढ़ाई और सपने के बीच। सपने वाला मैं हर जगह अपने सपने में उसके आने के बारे में लिख रहा था। वो मेरे पढ़ाई वाले नोटबुक्स के बीच भी हाल-ए-दिल बयां कर रहा था। इससे कभी कभी मुझे प्रोफसरों से डांट पड़ती और दोस्तों के बीच मजाक का विषय बनता।

मै उसके लिखे को सावधानी से हटा सकता था पर कई बार मुझे मालूम नहीं होता कि ठीक मेरे नोटबुक्स जाँच करने के बाद वो उसमें शायरी चिपका देता था। मेरे आने वाली परीक्षाओं के लिए बनाये गए नोटबुक्स भी उसने अपनी शायरी में रंग दिए थे।

मुझे सतर्क रहना पड़ रहा था। मैंने नोटबुक्स की दुकान जाना बंद कर दिया था। पर इस बात का ख्याल रहता कि कहीं वो भी गहनों की दुकान आना बंद कर दे तो ! 

पर एक चीज अच्छी थी कि मैंने सपने वाले मैं को सपने देखने की छूट दे रखी थी ताकि मैं पढ़ सकूं। हालाँकि ये मुश्किल काम था। कभी कभी सपने वाले मै मेरे स्टडी लैंप के नीचे आकर शायरी पढ़ने लगता था।

मैंने देखा कि मेरे कपड़ों से कुछ कपड़े गायब हो जाते थे। नोटबुक्स गायब होना तो कॉमन सी बात थी। वो सपने में उन्हीं नोटबुक्स से उसे अपनी लिखी शायरी सुनाता होगा। एक दिन मेरे कप्बोर्ड से मेरा धूपचश्मा, सबसे अच्छी जीन्स और रुमाल गायब थे। मुझे समझने में देर नहीं लगी की माजरा क्या है ! 

पर सपने वाले मैं का लिखा पढ़ने का लालच मुझे भी खूब था। उसके लिखे से पता चला कि मैं अब रोज सपने में उसके घर जाता हूँ। वो हमेशा हवाएं न आ जाये इसके चलते दरवाजा धीरे से खोलती थी। सपने वाला मैं फिर थोड़ी देर खामोश बैठता। और वो अंदर से सारे श्रृंगार करके। जिस दिन उसके श्रृंगार कम होते उस दिन सपने वाला मैं और वो गहनों की दुकान पर जाते। पर जिस दिन उसके श्रृंगार पूरे होते सपने वाला मैं और वो बादलों की सैर करते। बादलों पर दुकानें होती थी और वहां गहनों की भी कई दुकानें थी। पर उसको धरती के गहने ज्यादा सुंदर लगते है तो वो इधर आ जाती। सपने वाला मैं की शायरी उसे भी खूब अच्छी लगती जिससे मुझे अचरज हुआ। सपने वाला मै उसके घर चोरी छुपे ही जाता क्यूंकि उसे धरती के लोगों से मित्रता बनाने की इजाजत नहीं थी। यह जानकर मुझे आपत्ति नहीं हुई पर डर जरूर लगा कि सपने वाला मैं पकड़ा न जाऊं।

एक दिन वो मुझे आती दिखी। मुझे लगा मैं सपना देख रहा था। पर मैं गणित का कोई प्रश्न कर रहा था जिसे साधारणतः लोग सपने में नहीं करते तो मुझे लगा शायद यह सपने में नहीं है।

" तुम यहां कैसे " 

मुझे लगा अब वो सोचेगी कि मैं किस बात पर हैरान हूँ उसके मुझे ढूंढ लेने पर या उसके मेरे हॉस्टल आने के ख्याल पर।

" तुम आजकल नोटबुक्स की दुकान पर नहीं दिखते " 

मुझे यकीन हुआ मैं सपना नहीं देख रहा था क्यूंकि ये सपने में न होने वाली सच थी। सपने में तो मैं रोज उससे मिल रहा था।

" हाँ, मेरे कॉलेज की पढ़ाई अभी बढ़ गयी है " 

" ओह ! तो तुम सचमुच में उपन्यास नहीं लिखते " 

" हाँ तुम्हें ऐसा सच में लगता था ? "

" हाँ " वो उदास सी बोली।

" हाँ, पर मैं कुछ कवितायें और शायरी लिख लेता हूँ जिसे तुम .." 

" ओह ! मुझे पढ़ाओगे " 

" तुम तो सुन चुकी होगी " 

" कब "

"मेरे सपने वाले मैं से "

वो जोर से हंस पड़ी।

" तो तुम मेरे सपने देखते हो "

मैं कहना चाहा कि नहीं वो सपने वाले मैं हूँ।

" नहीं मेरे सपने वाले के सपने में तुम आ जाती हो " 

" पहेलियाँ मत बुझाओ, कवि साहेब ! "

" तुम्हारा क्या मतलब " 

" कुछ नहीं, चलो दिखाओ वो सपने वाला तुम क्या क्या लिखते हो " 

मैंने उसे अपने पढ़ाई और सपने दोनों वाले नोटबुक्स दिखाए।

वो उसे पढ़ने लगी। उसके चेहरे पर कई भाव आए गए होंगे।

मैं उन्हें समझने की कोशिश कर रहा था। पर ये बेकार प्रयास था।

" तो तुम इसलिए नहीं आ रहे नोटबुक्स की दुकान पर ? "

" मतलब "

" मतलब कि तुम पकड़े गए "

" वो कैसे " 

" अच्छा छोड़ो, तुम कभी बादल के मेरे घर पर चलना चाहोगे " 

" हाँ पर तुम मुझे वहां तक उड़ा कर ले जा सकती हो " 

" हाँ " 

" क्या तुम्हारे घर वाले धरती के लोगों को घर पर लाने से नाराज होते है " 

" शायद होंगे पर अभी तक मुझे मालूम नहीं " 

" तो रहने दो, मेरे चलते तुम्हें मुसीबत उठानी पड़ेगी "

" ऐसा कुछ नहीं है " 

" नहीं मैं नहीं जाऊंगा "

वो कुछ देर चुप रही।

" मेरे घर के बगल में एक कॉफ़ी की दुकान है " 

" मुझे नहीं पता " 

वो फिर हंसी।

" मैं बता रही हूँ न ! तुम वहां तक चलकर मेरा घर देख सकते हो " 

" अच्छा ठीक है पर आज तो मुझे पढ़ना है " 

" सपने में ? " 

" नहीं सच में " 

" ठीक है मुझे भी जाना है अभी तो, पर सपने में मिलते है " 

" शायद " 

" एक और नोटबुक्स खरीद लेना " 

हवा का झोंका आया और वो चली गयी।

उस रात मैं और सपने वाले मैं दोनों ने एक ही सपना देखा।



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