हाट पर बिटिया
हाट पर बिटिया
राम ऊंघावन बाबू अपने नाम को चरितार्थ करते हुए सोफे पर बैठे बैठे ऊंघ रहे थे। कूलर की ठंडी और तेज हवा से गंदा चिकन कुरता बार बार तोंद से उठकर विशाल शरीर के भू भाग का दर्शन दे जाती थी। सामने तश्तरी पर मिठाइयां और पकवान रखी थी, जिसे वो हरेक झपकी के बाद जगते और बड़े चाव से मिठाई अपने समुद्रकाय मुंह में रख लेते। सुबह से चार तश्तरियां खा चुके थे। खैर उनकी बेज्जती ज्यादा न करूं, क्या पता वो बुरा मान जाएं। शादी विवाह के मामले में उन्हें जरूर बुलाया जाता था और उनकी राय ब्रह्मा की बात के समान होती थी। दीक्षा में भोग पाते और खुश रहते थे। हाट लग चुकी थी। दोनों पार्टियां पूरी तरीके से तैयार होकर मोल भाव करने आ चुके थे। दलाल ने अपना तय स्थान ग्रहण कर लिया था। मेरी मौसेरी बहन सज संवकर परीक्षण के लिए बैठ चुकी थी। जिस तरह जानवरो को जब हाट पर ले जाया जाता है, मैंने देखा है वो कितनी भी टेढ़ और शरारती क्यों न हो, गौ की तरह शांति से ही हाट पर जाती है कुछ ऐसा ही हाल था उसका। खैर परीक्षण शुरू हुआ। पहला चरण था - मुँह दिखाई का। लड़का चाहे भैंस कपूर ही क्यों न हो, लड़की हेमामालिनी ही चाहिए होता है। मुझे पता है वो लफंदर जरूर अपना मुँह लेकर इधर उधर भटक हो रहा होगा, और उसकी शायद भावी पत्नी यहां अग्निपरीक्षा दे रही थी। फिर रामजी ने भी तो सरलता से सीता की अग्नि परीक्षा ली थी फिर मैं इन मायावी प्राणियों को दोष क्यों दूँ। लड़की ने घूंघट हटाया। चेहरे का एक्स रे हुआ तो रिपोर्ट भी आने लगे। सामने बैठी भावी सास ने पूछा बेटी नाक पर लगा दाग क्या है। लड़की घबरा गयी। प्रश्न मुहावरा था या यथार्थ। मेरी मौसी ने जवाब दिया अभी कुछ दिन पहले ही एक घाव हो गया था। तो भावी ननद भावी सास के कान में फुसफुसाई -' कितना गरीब परिवार है मॉम , मेकअप के पैसे भी नहीं थे क्या, चाँद ठीक है पर चाँद के दाग कौन पसंद करता है। मेकअप से छुपा लेना चाहिए था न !' इधर की आवाज शांत हुई तो लड़के के एक दूर के रिश्तेदार जिनकी खुद की शक्ल अष्टावक्र को मात देती थी फुसफुसकार बोले - ' हमको लगता था गोलुआ को गोल शक्ल वाली बहु मिलेगी, बहु की शक्ल कितनी लम्बी और पतली हैं न !' भावी सास ने अंतिम बात सुनकर दबे होंठो से उन्हें चुप करवा दिया | भक्क ! जिस तरह भारतीय कानून में बिना सिद्ध किये हुए कोई हत्यारा भी निर्दोष ही कहलाता है वैसे ही हाट पर बैठी बिटिया पूरी रिपोर्ट आने तक निर्जीव जानवर ही होती है। अभी तो उसे काटने और जांचने का सुख बाकी था। हाँ और शब्द और पद ही तो भारतीय हाट व्यवस्था के प्राण है। थोड़ा जबान और शब्द इधर उधर हो जाये तो मोल भाव पर व्यापक असर होता है। ये मोल भाव जीरो सम गेम ही है। एक काधा किसी का ज्यादा तो किसी की दहेज या रेट कम हो जाती है।
दूसरा चरण था - शरीर परीक्षण का। अच्छा समझाता हूँ इस चरण में बिटिया को दहेज लेकर भी खरीदार कहलाने वाली पार्टी चेहरे से संतुष्ट होकर ये परिक्षण करता है कि घर में आने वाला शरीर लूंला लंगड़ा तो नहीं। हालाँकि इसमें बड़ी सावधानी बरतनी होती है। बॉर्डर पर बैठे सैनिको से भी जयादा। इसलिए छोटे उम्र के लोगो को इसमें भागीदार बनने की आजादी नहीं थी। भावी सास के बगल में बैठी राम ऊंघावन बाबू से मिलती जुलती महिला युग्म दिखावटी फीकी हंसी से बोली - ' बेटी इतनी लम्बी साड़ी ! तुम्हारा पैर तो कुछ दिख ही नहीं रहा, जरा उठाना बेटी '। ये उस कसाई की तरह बोला गया था जो वध करने से पहले अपने भगवान को दिखाने के लिए जानवर पर दया दिखाता है। लड़की ने अपनी बड़ी बहन की साडी पहन रखी थी जिससे उसका घुटना ढक जा रहा था। अब एक अच्छा निरीक्षक इस बात को कैसे अनदेखा कर देता। लड़की ने पैर उठाया तो कई लक्ष्मणो की निगाहे सीता माता के पैर पर पड़े। संतोष नहीं हुआ तो चलकर दिखाने को पूछा गया कहीं सीता मैया लंगड़ी तो नहीं। मुझे लगा अरे भाई ! घुटने का एक्स रे रिपोर्ट भी मंगवा देते है। फिर लड़की को एक रस्सी पर चलकर सर्कस भी करवा लो। किस कम्बख्त शायर ने लिख दिया है - इश्क़ आग का दरिया है और कूदकर जाना है। मैं तो कहता हूँ खाक ऐसी शायरी को। भारतीय शादी प्रकिया से बढ़कर आग का दरिया ढूंढ लो तो जाने, जिसमे आज नहीं तो कल लड़की को डूबकर ही जाना है।
चेहरे के बाद हाथ, कोहनी इत्यादि भी दिखाने को बोला गया। हाथ की लकीरे भी उस महिला ने लोमडिन की तरह तेज आँखों से देखी और संतोष से सोफे पर लुढ़क गयी और तश्तरी से मिठाई का एक टुकड़ा उठा लिया। जैसे माखनलाल चतुर्वेदी जी ने फूलो की अभिलाषा लिखा है वैसे ही क्या कहीं किसी भारतीय कवि का ह्रदय इन भारतीय शादी में कुर्बान होने वाली मिठाइयों के लिए कुछ पंक्तिया नहीं लिख पाता है। मिठाई की अनभिलाषा। अब राम ऊंघावन बाबू के उदर में जाकर उन्हें क़ुरबानी का कौन सा फल मिलता है। एक कोने में कूचक कर क्या सुख मिलता होगा।
अगला चरण प्रश्नोत्तरी का था। इस चरण में लड़की लड़खड़ाई तो शादी तो होने से रही। कभी आप ऐसे नौकरी के लिए साक्षात्कार दिया है जिसमे जाने का आपका रत्ती भर भी मन नहीं था। प्रश्नो का रेंज घर गृहस्थी से लेकर देश देशांतर तक क़ी होती है। कहीं से रटा रटाया प्रश्न आया- ' बेटी एक किलो दाल में कितना नमक पड़ेगा'। इसके उत्तर के संबध में मेरी मौसेरी बहन ने बाद में बताया कि उसका मन कह रहा था वो बोले कि मुँहझौंसे ( यानी जला मुँह वाला आदमी ) तुम्हे कितना नमक चाहिए बोल, ढाई किलो भी खाकर तू मरेगा तो हैं नहीं। भावी ननद ने खुद पढाई में गोल मटोल होने के बाद भी कागज में लिखकर प्रश्न लायी थी और उसके उत्तर भी। उत्तरो का मिलान न होता तो उसकी नाके सिकुड़ आती। कसम से ऐसे ही लोग जब परीक्षक बनकर कॉपी चेक करते है और हमारा जी और भविष्य दोनों जला देते है। खैर इसमें आप लोग भी अपना दर्द टटोल सकते है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था से बढ़कर आलोचना और भविष्य सोखने वाला कोई और चीज मिले तो मुझे जरूर बताइयेगा। भावी सास ने इधर गजब का दर्शन और सांसारिक प्रश्न पूछ लिया - 'बेटी टिकटॉक के बारे में तुम्हारी क्या राय है '। टिकटॉक के प्रति अपार श्रद्धा के कारण मैं लगभग रो पड़ा। मन किया उनकी आरती उतारूं। वो मेरे देवता ! देख इंसान ने कितनी तरक्की कर लिया है। वो महिला अंतिम इंसान होगी जो जिससे मैं इस मानवी तरक्की से अनजान मानता पर अब तू भी इंसानो का लोहा मान ले। तूने हमे आखिर बनाकर ही क्या भेजा था गुफा में रहने वाला अधनंगा प्राणी। पर हाँ मैंने अपनी भावनाये छुपा कर रखी। पता नहीं था कि भावी सास टिकटॉक के पक्ष में है या नहीं।
प्रश्नोत्तरी ख़तम हुआ। लड़की अंदर आ गयी। दो घंटे एक मुद्रा में बैठकर उसकी गर्दन और कमर अकड़ गयी थी। अब मोल भाव का राउंड था। हाट का दलाल दोनों पार्टियों में संतुलन करवाने की कोशिश करवाने लगा। ये दलाल दुनिया के सबसे भूल में जीने वाले आदमी है। इनको लगता है कि दो जीवो को मिलकर इन्होने इतना पुण्य संचय कर लिया है कि अब यमराज स्वर्ग के द्वार पर बिना पास के अंदर जाने दे देंगे। राम को सीता से मिलवा कर पुण्य मिल सकता है पर सीता को वनमानुष से मिलवाकर क्या पुण्य बे ! खैर इस समय लड़के वाले दहेज का एक और गुच्छा मुँह में डालने की कोशिश करता है तो लड़की वाले कुत्ते की अंदाज समझकर इन्हे ललचाकर कौर दूर ले जाने की कोशिश करते है | हाट का ये खेल या तो तुरंत खतम हो जाता है या फिर घंटो तक चलता है जैसे राष्ट्रीय , अंतर्राष्ट्रीय और कॉर्पोरेट की मीटिंग चलती है जिसमे मिनटों की बातें घंटो चलती है और घंटो की बातें सालो, और फिर घंटा कुछ नहीं होता है।
