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Ajeet Kumar

Abstract Romance Fantasy

4  

Ajeet Kumar

Abstract Romance Fantasy

उसके आने के बाद -1

उसके आने के बाद -1

4 mins
324

वो बादलों से आयी थी । हवाओ का हाथ पकड़े पकड़े । आकर गहनों की दूकान पर रुकी थी । मैं बगल के स्टेशनरी दुकान से कुछ नोटबुक्स खरीद रहा था । मैंने देखा वो चूड़ियां पसंद कर रही थी । उसको और श्रृंगार खरीदने नहीं होंगे क्यूंकि उसने और सारे श्रृंगार पहन रखे थे । 

मैं नोटबुक्स पसंद कर था पर कुछ देर के लिए गहनों की दुकान की तरफ तरह देखने लगा जैसे मुझे भी कुछ खरीदना था । नोटबुक वाले दूकानदर ने जब मुझसे पैसे पूछे तो मैं उसको पैसे देकर बिना नोटबुक लिए दूकान से बाहर निकल गया। और गहनों की दूकान के सामने खड़ा हो गया। 

वो चूड़ियां देखना बंदकर मुझे देखने लगी। आँखों से पूछा - तुम्हे भी चूड़ियां खरीदनी है ? मै उसकी आँखों मे ठिठक गया। मैंने जवाब मे कहा नहीं बस मैं देखना चाहता हूँ कि वो किन चूड़ियों को पसंद करती है। उसने उत्तर में कुछ नहीं कहा। उसने नीली रंग की चूड़ियां खरीदी जो वाकई मे उसके हाथो मे सबसे ज्यादा जंच रहे थे।उसने चूड़ियां पैक करवा ली और हवाओ को बुला लिया। 

मैंने उसे आसमान मे ओझल होते देखा।

अब मैं जानबूझकर उस स्टेशनरी की दूकान के पास जाता। आदमियों का भी श्रृंगार अगर उस दूकान में होता तो मैं उसी के पास जाता। वो हमेशा उसी तरह से आती पर मुझे दिशाओ के बदलने का भरम होता। आसमान में कोई दिशा नहीं होती है ऐसा मैंने जाना। वो हमेशा वही श्रृंगार खरीदती जो वो पहनकर नहीं आती। मेरा मन होता कि उससे पूछूं वो किधर से आती है कहां घर है उसका। पर नहीं पूछता। लगता अगर बादलों में उसका घर हुआ तो पूछकर भी क्या फायदा। क्या वह मुझे अपने साथ उड़ा कर अपना घर दिखा देगी। मै इस संशय से नहीं पूछता।

एक दिन उसके जाते जाते मैं दूकान से निकला। वह उड़ने ही वाली थी पर मुझे देखकर रुक गयी। 

" तुम उपन्यास लिखते हो ? "

" नहीं तो "

"फिर इतने नोटबुक्स का क्या करते हो " 

" मैं उसमे सपने लिखता हूँ "

" क्या तुम खूब सपने देखते हो "

" हाँ " 

" अच्छा, तुमने कभी सपने में सपना देखा है और फिर सपने में सपने को लिखा है "

" शायद " 

" ओह ! मैं भी सपने में सपना देखती हूँ पर तुम्हारी तरह लिखती नहीं " 

" तुम क्या करती हो ? " 

वो कुछ देर सोची फिर बोली - " मैं उसे भुला देती हूँ ताकि दूसरे सपने देखूं " 

" पर क्या भुलाने के बाद ही दूसरे सपने आते है " 

इसे पहले वो कुछ बोलती, तेज हवा आयी और वो उड़ गयी।

उस रात मैंने उसका सपना देखा। मुझे सपने में बादलो का उसका घर नजर आया। मैं दरवाजे तक गया। उसने मुझे पहचान लिया। उसने दरवाजे को इतने धीरे से खोला जिससे हवा न घुसे। उसने बताया कि हवा उसे सोने नहीं देती है। फिर एकाएक उसे याद आया और उसने चुप रहकर पूछा - तुम कैसे आ गए। मैं समझ नहीं पाया कि वो मेरे उसके घर ढूंढ लेने पर हैरान है या उसके पास आने के ख्याल से। मैं कुछ नहीं बोला। मैं कुछ देर खामोश बैठा। वो भी। फिर वो अंदर चली गयी। आयी तो सारे श्रृंगार करके आयी थी सिर्फ नाक में नथिया नहीं था। 

" चलो, गहनों की दूकान चलते है " 

मैंने पूछना चाहा कि बादलो पर दुकाने नहीं होती। पर मेरा उसके साथ जाने की इच्छा उस प्रश्न के उत्तर जानने की इच्छा से ज्यादा थी। 

सपने के गहनों की दूकान दिन के गहनों की दूकान से बहुत ज्यादा सुंदर लग रही थी। सपने में स्टेशनरी की दूकान नहीं था। उसके बदले एक बड़ा सा तालाब था। जिसके चारो तरफ सीढियाँ लगी थी। 

" भैया, नथिया दिखाना " 

" आप पहनेंगे " 

वो हंसने लगी। फिर उसने बड़े गौर से ढेर सारे नथिया देखे। मैं पायलो में परफेक्ट वृत्त ढूंढ रहा था। वो क्या देख रही थी मुझे मालुम नहीं पड़ा। पर उसने एक बहुत सुंदर नथिया खरीदी और पहन ली। उसके बाद हमलोग तालाब के पास बैठे। चाँद निकल आयी थी। मैंने उससे पूछना चाहा कि क्या वो चाँद तक उड़ सकती है | पर फिर मुझे लगा वो वहां तक मुझे उड़ाकर ले जाएगी तो थक जाएगी। हम दोनों चाँद को निहारने लगे।

जब सर ऊपर किये किये थक जाते तो तालाब के चाँद को देखने लगते। तालाब का चाँद दूसरा था। तालाब का आसमान दूसरा था। मुझे तैरना आता था। मुझे लगा क्या मैं उसके साथ तैरकर चाँद के पास जा सकता हूँ। पर मैं बैठा रहा।

फिर सपने में सुबह हुई। उसने ऐसे जताया जैसे पूरी रात बाहर रहने से घर वाले परेशान होंगे। पर वो कुछ बोली नहीं। हवा का एक झोंका आया। वो उड़ गयी। 

मैं सपने में अपने घर आया। और उसी बिस्तर पर लेट गया जिसपर लेटकर मैं सपना देख रहा था। अब उस बिस्तर दो मै सो रहे थे। 


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