Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Ajeet Kumar

Tragedy

4.5  

Ajeet Kumar

Tragedy

गोहन

गोहन

10 mins
95


सडक बन रही थी । गाँव से शहर को जोड़ने के लिए । मंत्री साहेब की मेहरबानी थी, वरना हरेक नेता सिर्फ वायदा करके चला जाता था । हालाँकि कोई जांच पड़ताल करता तो पता चलता कि ठेकेदार, जो मंत्री के भतीजे थे, ने इस सड़क निर्माण में करोड़ो का निवाला किया होगा । पर फिर भी सड़क बन रही थी अच्छी बात है ।


सड़क बनने से गाँव के विकास की आशाएं खुल जाएगी । शहर की पाच घंटे की दुरी अब पौन घंटे में पूरी हो सकेगी । लोग शहर के अस्पताल में अपना इलाज करवाने जल्दी से जा सकेंगे । खाद, बीज लाने के लिए ज्यादा सोचना नही पड़ेगा । बारिश में गाँव शहर से नही कटेगा तो खाने पीने की किल्लत से भी मुक्ति मिलेगी । सब्जियों और अनाज बेचने जाने में आसानी तो होगी ही, मुआ बिजली भी आने के सम्भावना थी । उबड़ खाबड़ रास्ते के अँधेरे में अक्सर कोई जंगली जानवर आकर बिजली के खम्भों को गिरा जाता । इसलिए बिजली विभाग ने गाँव को अँधेरे में ही रखना उचित समझा था ।


सड़क निर्माण में लगे मजदूर भी इस ख़ुशी से अछूते नही थे । सड़क बनने से सबका भला होगा । अब तो शहर की इम्पोर्टेड शराब की बोतलें महीने में एकाध बार जरुर फूटेगी । शहर की आबो हवा अच्छी लगी तो कई मजदूर छोटे मोटे ठेकदार भी बन जायेंगे ।


 सड़क बनने की खुशी में गोहन भी काम में ऐसे ही जुटा था जैसे सड़क उसकी अपनी सम्पति हो । उत्साहित इतना कि दो तीन मजदूरों का काम वो अकेला ही कर रहा था । फिर उमिर भी कहाँ ज्यादा थी उसकी । २२ साल का होगा ।मजूरी से कंधे चौड़े हो गये थे । टाँगे उतनी ही मजबूत । सीमेंट बालू के टोकरे को ऐसे उठाता जैसे मिटटी का काम कर रहा हो । हालाँकि आम मजदूरों में उसका उत्साह मजाक का कारण बन चुका था ।


' क्यूँ बे गूहना थोडा सुस्ता ले, सड़क है निगोडी, बन ही जाएगी ' । गोहन बोलचाल में बचपन से ही गूहन बन चुका था । 


' कैसे सुस्ता ले गूहन ? नयी बहू घी काढती है आजकल इसकी थाली में " कहकर सब हंसने लगते । गोहन की नयी नयी शादी हुई थी । बीवी के आने के बाद सच में उसे नया जोश आया था । बीवी से वह बेहद प्रेम करता था । उसके आने से ही तो वह सम्भला था । पहले काम के बाद अक्सर देशी शराब के ठेके पर मिलता था । पीकर देर रात घर लौटता और अक्सर बिना कुछ खाए सो जाता । अब वह सारे काम तेजी से करता और दिन के ढलने का इन्तेजार करता । शाम होते ही वो दूकान से राशन खरीदकर सीधा अपने घर भागता । फिर उसकी बीवी के अलावा दुनिया में कोई था भी नही । एक सगे चाचा थे जिन्होंने शादी में विध व्यव्हार करवाया था । माई कुछ साल पहले चल बसी थी और बाप का चेहरा तक उसे याद नही । माई ने उसे कितना पढ़ाना चाहा था पर माँ को दुसरे के घर में जाकर कमाना, लात और बात सहना उसे पसंद नही था । पसंद तो उसके कुछ शिक्षकों को ये भी नही था की गोहना पढाई छोड़ दे । स्कूल में अव्वल नंबर का तेज था । यहाँ तक कि पुरे प्रखंड में कई प्रतियोगिताएं जीतकर वह अपने नाम का डंका बजवा चुका था । पर गोहन के मन में स्थिति साफ़ थी । दसवी बाद माँ को घर बैठा खुद कमाने लगा । उसके लिए आत्मसमान और मह्त्वकांछा के बीच में शर्त का यही निर्णय था । जो जवान बेटा साहिब बनने के लालच में माँ को गाली और मार सहते देखे , उसकी जवानी पर धिक्कार है । फिर भी अभी तक उसे उसकी पढाई काम में आ जाती थी । आजकल तो व्हात्सप्प और सोशल मीडिया का जमाना हो गया था । वो कमाई के पैसे से एक स्मार्ट फ़ोन खरीदकर नई दुनिया के विचार और व्यवहार से परिचित था । कुछ लोग से दबी जबान से अब भी कहते थे कि वो आईएएस की परीक्षा की तयारी क्यूँ नही करता । पर वो इसे हंसकर टाल देता । सच लिखा जाए तो उसकी विद्वता किसी से कम नही थी पर उसका शरीर पूरी मजदूरी से उसके पढ़े होने के इल्म को पहचान में नही आने देता था । स्कूल छोड़ते ही गाँव वाले भी गोहन को गूहना बना चुके थे । गोहन भी अपनी जाति और परस्थिति पहचानकर पूरा मजदूर बन चुका था । उसकी पत्नी भी मेट्रिक पास थी । नही होती तो भी गोहन को पसंद आती । मेले में देखा था उसने अपनी बीवी को । देखते ही उसे पसंद आ चुकी थी । नाम, गाँव और जाति पता चला तो वो ख़ुशी से पागल हो गया । लड़की के परिवार वालों को भी कोई एतराज नही था । लड़का पढ़ा था, हट्टा कट्टा जवान और अपनी समाज में भी थोडा बहुत नाम था जो कि उसके दादा की वजह से था । अंग्रेज काल में उसके दादा छोटे वर्ग के होने के बावजूद मेजर साहेब कहलाते थे और सेना में किसी बड़े पद पर थे ।


गोहन मन ही मन सोच रहा था - " सडक बनते ही वह वैज्ञानिक तरीके से खेती करेगा । ... क्या बोलते हैं उसे ... हाँ कुछ औरगानिक खेती । उसने मीडिया में बहुत हल्ला सुन रखा है कि सरकार आर्गेनिक खेती करने वालो को प्रोत्साहन दे रही है । वह अपने छोटे से खेत के टुकड़े पर आर्गेनिक खेती ही करेगा फिर अन्य लोगो को भी जागरूक करेगा । और फिर जब सब्जियों का सीजन आएगा तो वो अन्य किसानो की तरह उसे औने पौने दामो में नही बेचेगा । उसने एक लोकल स्टार्टअप का पता किया है जो किसानो से सही दाम पर सब्जियां खरीदकर उसे बड़े मार्किट में बेचती है । फिर वह धीरे धीरे खेत बटवारे पर लेकर अपने उद्योग को बढ़ाएगा । " फिर सोचता-" ये सब तो होता ही रहेगा सबसे पहले अपनी पत्नी को मोटर पर थिएटर दिखाने शहर ले जाएगा । और उसे बतायेगा कि गोहन कोई एरा गैरा आदमी नही है । फिर उसकी पत्नी कितनी खुश होगी । क्या वह थिएटर के अँधेरे में अपनी पत्नी को चूमने का साहस कर पायेगा । जैसे उसने सुन रखा था कि अक्सर शादी शुदा जोड़े थिएटर में ऐसे करते हैं । फिर क्या ही दिक्कत है अगर वो अपनी पत्नी को चूम नही पाया तो । वो उसे शहर के पार्क में हरेक महीने घुमायेगा । महीने में एक दिन वो गूहन से गोहन बन जायेगा । अपने पत्नी का प्रेमी और कुछ नही । "


शाम में घर लौटता तो बीवी से कई मुद्दों पर बहस होती । तकरार बढती तो गोहन हंसकर पत्नी के गालो को जोर से दबा देता । खाना खाकर दोनों जोड़े प्रेमालीन होकर सो जाते ।


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सड़क छह महीने बाद बनकर तैयार हो गयी । उद्घाटन खुद मंत्री जी ने किया था । आज गोहन तैयार हो रहा था । उसकी जिन्दगी में आज सबसे ख़ुशी का दिन था । आज उसके पास मौका था अपनी पत्नी की नजरो में कुछ बनने का । गोहन की बीवी भी आज खूब सज संवर रही थी । अपने सारे गहनों को चुन चुन कर खुद को सजा रही थी । गोहन से उसने जमाने भर का इतर मंगवा लिया था । चेहरे पर पाउडर भी मलने का शौक पूरा हुआ । फूलों का जोड़ा भी गोहन सुबह ही माली के यहाँ से भाग कर लाया था । स्वयं मजूर गोहन भी आज जींस पहन रहा था । क्या बला की चीज है ये भी । उफ़ इतनी टाइट । पैर न मूड आये । दर्जी से उसने मखमल का कुरता सिलवा लिया था । पहन कर वो बीवी के सामने गया तो वो जोर से हंस पड़ी । जीन्स इतनी टाइट थी और कुरता एक दम ढीला ढाला । गोहन को रोष तो बहुत हुआ पर अपनी सुंदर बीवी का चेहरा देखकर उसके होश उड़े गये । ऐसा तो वो उस मेले में भी नही लग रही थी । आज जरुर वह उसे थिएटर में जोर से चूमेगा । सोचते ही उसके शरीर में सिहरन सी मची ।


उधर किराए का मोटर दरवाजे पर तैयार था । दोनों मिया बीवी बैठे और मोटर सरपट भागने लगी । गोहन बीवी को गाँव के बड़े लोगो के घर दिखाते गया । गाँव का मन्दिर, विशाल पीपल का पेड़ और सिंचाई घर सब पीछे छुट गया । अब मोटर धान के खेतों के बीच से नई नवेली सड़क पर दौड़ लगा रही थी । गोहन बीवी को अपना खेत पहचाने को कह रहा था । उसकी अगली तम्मना । आर्गेनिक खेती के प्लान इन महीनो में उसने बड़ी डिटेल में बनाई थी ।


...........


 मोटर अब शहर से गुजर रही थी । शहर कोई भव्य तो नही था पर गोहन और माया जैसे लोग जो एकाध बार ही शहर घूम पाए थे, उनको जरुर अपने विशाल मकानों और बड़े खेल के मैदानों से अनच्म्भित कर देती थी । मोटर सीधे जाकर थिएटर के गेट पर लगी । वह पत्नी को बाहर ही रहने को कहकर खुद टिकेट लेने पहुचा । वह खिड़की पर पहुचा ही था कि सामने से आकाश बाबु दिखे । आप गोहन के ही गाँव से थे । कड़े सख्त मिजाज के नौजवान आदमी । पश्चिमीकरण के सख्त विरोधी पर फिल्म प्रेमी । गाँव की सभ्यता संस्कृति के पतन से बेहद निराश और उसको हर कीमत पर ठीक करने के समर्थक । संस्कृति संरक्षक दल के नेता । उसे देखते ही गोहन खिड़की से दूर हट गया पर आकाश बाबू दूसरी खिड़की पर चले गये । फिर बोले - ' क्या बे गोहन ! आज मजूरी नही था क्या तो यूँ ही अकेले आये सिनेमा आ गये "


" हाँ बाबु साहेब आज छुट्टी लिए थे, बहुरिया को फिल्म देखने का मन कर रहा था " सुनकर आकाश बाबु चौंके ।


' कहाँ है बहुरिया "


गोहन ने हाथ से थिएटर के बाहर खड़ी बीवी की तरफ इशारा किया । बीवी का बिंदास अंदाज आकाश बाबु के आश्चर्य का कारण बन गया । कैसे खड़ी है बीच बाजार में । न कोई पर्दा, न लाज । गाँव से कितने ही लोग शहर आते होंगे । बड़ी जाति के भी लोग । फिर भी एक दुप्पटा तक नही सर पर ।


आकाश बाबु को गुस्सा आया पर कुछ सोचकर मुस्कुराए । बोले - " बढ़िया किये जो बीवी की भी साथ लाये " ।


गोहन टिकेट लेकर बीवी के पास दौड़ा । कुछ कोल्ड ड्रिंक्स और पानी के बोतल खरीदे और थिएटर में प्रवेश किया । थिएटर का सामान्य दिन था इसलिए कोई भीड़ न थी । गेट से अंदर पैर रखते ही गोहन के सर से कुछ जोर से टकराया । उसने मुड़कर कर देखा । १० -१५ लोग थे भीड़ से और उनके सबसे आगे आकाश बाबू । सर से खून ब्ल्ब्लाने लगा । गोहन को सम्भलने का कोई मौका न देते हुए उसके पैर और पीठ पर जोर से लाठी पड़ी ।


आकाश बाबु उसकी जाति को गाली देते हुए बोले - " तुम लोग कब से सर पर चढ़कर बैठ गये बे ! अपनी औरत को देखो तो ! गाँव के बड़ जाति से है , उम्र में भी तुमसे दो साल बड़े ही है, पर अंचरा भी नीचे नही " । उसकी आवाज में उस शिकारी की बू थी जो घबराया हुआ भी था और शिकार के निहत्था होने का आश्वासन भी । गोहन भी गोहन था । माँ ने यूँ ही नही नाम रखा था । गोहन गोह था सांप का शिकार करने वाला जीव । बीवी को दूर ढकेलकर वह इस संस्कृति संरक्षकों से भीड़ गया । जमीन पर पड़ी पत्थर उठाकर वह उनपर टूट पड़ा । उसका आवेग देखकर संरक्षकों के भीड़ में भगदड़ मच गयी । आकाश बाबु के लिए प्राण देने वाली भीड़ का गोह से सामना हुआ था । वो पीछे हट गये । आकाश बाबु नेता आदमी थे । पीछे भागते तो नाक कट जाती । .... उन्होंने अपने समर्थको को फिर से ललकारा - "वो बुजदिलो, आज तुम्हारी वजह से ही समाज में वर्ण व्यवस्था टूट रही है । अपने ही ग्रंथो को लोग जला रहे है । तुम्हारे डरपोक अंदाज से ही इन कमीनो को वो भी गाँव समाज का चरित्र बिगाड़ने का मौका मिल रहा है । आगे बढ़ो और इनका सह्न्कार करो " । समर्थक इस ललकार से चिल्ला पड़े । उन्होंने अब गोहन को घेर लिया । गोहन घायल जानवर की तरह इधर उधर फुंकार रहा था । पर अब मुस्तैदी बेहोशी में बदल रही थी । खून बहुत बह चुका था । बीवी चीख चीख कर अपने पति के प्राण की क्षमा मांग रही थी । पर क्षमा देने वालो में दिल होता है । भीड़ बिना दिल और आवाज की होती है । कुछ देर में गोहन ने वही दम तोड़ दिया ।


 संस्कृति संरक्षक वहां से गायब हो चुके थे । गोहन की लाश पर पत्नी बैठकर रो रही थी । मरे हुए गोहन के व्हात्सप्प पर उसी के मौत का विडियो का संदेश आ चुका था । आगे नेताओ और मीडिया का शोर था । 


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