Manju Saraf

Tragedy

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Manju Saraf

Tragedy

व्यथा डायरी 21 दिन

व्यथा डायरी 21 दिन

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दिन पर दिन निकले जा रहे हैं ,कही पुरुषों का मन उचाट हो रहा छुट्टियां बिताते घर ,कहीं महिलाओं का दर्द उभर रहा न किटी पार्टी ने भजन ,न मंदिर ना आपसी गप शप सहेलियों से ।बच्चे भी घर रहकर अब कुछ बोर हो रहे हैं ,गर्मी की छुट्टियों की बात ही अलग है तब धूमधड़का रहता है ,गलियों में कॉलोनियों में बच्चे देर शाम तक खेलते हैं ना मम्मी की डांट पढ़ने को ,डांट तो अभी भी नही पर बाहर कहाँ खेल पा रहे हैं ,घर के अंदर मन भर कहाँ खेल पाते हैं ,न दोस्तो से मिल पा रहे ,ये कोरोना महामारी ने तो हमारी स्वतंत्रता छीन ली ।ऊपर से सरकार का एलान आठवी तक जनरल प्रमोशन और नवमींऔर ग्यारहवीं का भी ,अब तो बच्चे पूरी तरह से पढाई से बच गए ।

ओह कब तक लॉक डाउन रहेगा ।


ऐसे में सुबह छ बजे घर की डोर बेल बजी ,कोई उठकर देखने तैयार नहीं , मुझे तो उठना ही पड़ेगा कौन आ गया अब इतनी सुबह ,आजकल तो तो कोई आ जा भी नहीं रह सब अपने घरों में बिना जुर्म की सजा काटते कैदी बन गए हैं । अपनी जान सबको प्यारी कही बाहर निकले और जुर्म उन्ही के सर ना आ जाये ,की तुम्ही निकले थे घर से बाहर न जाने किस्से मिल आये हो।

खैर ,दरवाजा खोला सामने कामवाली खड़ी थी अंदर खुशी की लहर उठी, इतने दिनों से बर्तन धोते और झाड़ू पोंछा करते शरीर के साथ मन भी जो थकने लगा था पर अगले ही पल वायरस का ध्यान आते डांट लगाई उसे "तुझे तो छुट्टी दी है ना अभी फिर क्यो आ गई ।"

"घर पर मन नहीं लगता दीदी ,और फिर कब तक घर पर बैठ कर रहूंगी , खाने का क्या होगा ।"

"मैंने तो एक माह की तनख्वाह एडवांस दी है ना तुझे ।"

"वो तो घर पहुँचते ही पति ने छीन ली और दारू में उड़ा दी ,अब बच्चों का पेट भी भरना है मुझे और उसकी मार से भी बच जाती हूँ ,काम मे निकलकर ।"

उसकी पीड़ा आँखों से बह रही थी , और मुझे लग रहा था ये दिन उसके भी कितने मुश्किल से कट रहे हैं ।



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