उजालों के अंधेरे
उजालों के अंधेरे


क्या कभी आपने पर्दों को बिलखते देखा है ?
आप कहेंगी क्या लिखती रहती है ये लेखिका भी ?
पर्दें क्यों बिलखते फिरेंगे भला ?
वो तो बड़ी ही खूबसूरती से अपना काम करते है। उनको पता होता है क्या दिखाना है, क्या छिपाना है और कैसे छिपाना है?
पर्दें अपने काम को बखूबी अंजाम देते है। वे अपने मालिक़ की मर्जी और उनके इशारों को जानते है और जरुरत के मुताबिक खुलते है और बंद होते रहते है।
हाँ, मालिक़ की मर्जी के भी क्या कहने ? वह तो पानी जैसी होती है। जैसे कोई बहाता है वैसे बहता जाए।राह में कोई पत्थर आये तो रास्ता मोड़ ले। वह उस रास्ते के पत्थर को न तो सवाल करता है और न ही उससे अपने रास्ते से दूर करता है। बस अपनी मालिक़ की मर्जी के मुताबिक बहते जाता है।ये जो पानी होता है इसका वजूद बड़ा मतलबी होता है। अपने मतलब के अनुसार रंग बदल लेता है। जैसे मालिक़ की मर्जी चाहे। अगर मालिक़ चाहे मीठा तो मीठा और मालिक चाहे नमकीन तो नमकीन ....
पर्दों का ये हुनर अपने मालिक के खेल के साथ खिल उठता है। दुनिया को दूर से पर्दों की खूबसूरती ही नज़र आती है। उसे पता ही नहीं चलता है की पर्दें के पीछे वाली चौखट तो बुरी तरह टूट चुकी है और कभी भी वो दरवाज़ा उसकी दीवार के साथ गिर सकता है।
मालिक अपने अहंकार और अपनी मर्जी वाले खेल में पूरी तरह डूबता उतरता है।
पर्दें तब दिल में अंदर ही अंदर बिलखते रहते है। उनको पता चल जाता है की उनकी खूबसूरती के चर्चे हो रहे है वह बस कुछ दिनों की मेहमान है। पर्दों ज्यादा जोर से बिलखने लगते है जब वह देखते है उस चौखट की मरम्मत के बारे में मिस्त्री की राय को भी अनसुना करके मालिक अपनी मर्जी वाले खेल में और दंग हो जाता है......