उड़ान
उड़ान
"बाऊजी.... मुझे आगे पढ़ना है"....आंखों में आंसू लिए सुधा बोली...."बहुत मन है मेरा डाक्टर बनने को...
शुक्ला मैम कह रहीं थीं... मेरा रिजल्ट बहुत बढ़िया है...आराम से पी एम टी निकाल लूंगी "....
"चार--चार बिटियन के बोझ से दबा जा रहा है...बेटवा हमार...और इनको डाक्टर बनना है...दूसरे को भी कुछ बनइ चहहिं.... बियाह तय हो गइल बा...अपने घरे जा..और जेतना बने उड़ा...केऊ रोके के ना आई..." दादी
की बड़बड़ाहट के साथ..
बाऊजी के फीक पड़े चेहरे से सुधा समझ गई कि उनके कर्तव्यों के बोझ तले तितली को उड़ान भरने की आजादी नहीं है....?
बंदिशें नहीं... असमर्थता ही आकाश छोटा कर देती हैं...
वरना तितलियों की उड़ान कौन रोकना चाहता है....!