जाओ मेरे बच्चों, भरो अपनी उड़ान, कर लो मंज़िल को फतह। जाओ मेरे बच्चों, भरो अपनी उड़ान, कर लो मंज़िल को फतह।
सोचा अब जाकर पंतगों की तरह मेरी जिन्दगी ने भी उड़ान भरनी शुरू कर दी। सोचा अब जाकर पंतगों की तरह मेरी जिन्दगी ने भी उड़ान भरनी शुरू कर दी।
अपनी कमाई से पूरा खर्च चलाती है और उन के भी सपनों को साकार कर रही है। अपनी कमाई से पूरा खर्च चलाती है और उन के भी सपनों को साकार कर रही है।
उड़ने के उसके पंख नहीं फिर भी ऊंची उड़ान बड़ी। उड़ने के उसके पंख नहीं फिर भी ऊंची उड़ान बड़ी।
पर एक सुबह पाखी की ख्वाहिशें अधूरी दस्तान में सिमट सी गयी पर एक सुबह पाखी की ख्वाहिशें अधूरी दस्तान में सिमट सी गयी
जिस प्रकार परिंदे सुबह घर से निकलते हैं परन्तु साँझ भले घर लौट आते हैं। इस प्रकार मन का लौट आना ही ब... जिस प्रकार परिंदे सुबह घर से निकलते हैं परन्तु साँझ भले घर लौट आते हैं। इस प्रका...