जिन्दगी की उड़ान
जिन्दगी की उड़ान
सुधा एक साधारण से परिवार की तीसरी सन्तान थी। राम प्रसाद एक प्राइवेट नौकरी करते थे। दो बड़े भाई दोनों ही सुधा बहुत समझदार तथा पढ़ने में भी बहुत होशियार थी। वह पढाई के साथ साथ ट्यूशन करती थी। उसने कम्प्यूटर सीखा हुआ था। जब समय मिलता राम प्रसाद जी कुछ काम उसे ला देते जिससे वह कम्प्यूटर द्वारा पूरा करती। राम प्रसाद जी को अपनी इस बेटी पर बहुत गर्व था। वह कहते थे कि इन नालायक बेटों से तो मेरी यह बेटी बहुत अच्छी है। वह हर तरीके से अपने मां पापा का सहयोग करती थी। धीरे धीरे करके उसने पोस्ट ग्रेजुएशन कर लिया। बच्चो को वह शुरू से ही ट्यूशन देती थी। वह अपने विधार्थियों को बहुत मेहनत से पढ़ाती थी। धीरे धीरे उसका नाम बच्चों के मां बाप दूसरे अन्य लोगों को उनके बच्चो को ट्यूशन के लिये बताने लगे।
देखते देखते विधार्थियोंं की संख्या बढ़ने लगी। उसने नौकरी ना करके एक कोचिंग सेन्टर डालने का मन बना लिया। अपने साथ के ही दो बेरोजगार मित्रों के साथ कोचिंग सेन्टर की शुरुआत की आज उसका कोचिंग सेन्टर ऊंचाईयों को छूरहा है। सरलता से छात्रों को स्थान नहीं मिलता। राम प्रसाद बहुत प्रसन्नता से कहते हैं मेरी बेटी ने मेरी बाकी जिन्दगी को पंतग की तरह ऊँचाई पर ला दिया है। सुधा भी अपने मां पापा से कहती मै आपका तीसरा बेटा हूँ आप बस खुश रहिये इसी में मुझे सन्तुष्टि होती है। सुधा बाहर खड़ी होकर आसमान में उड़ती पंतगों को देख रही थी और उन हिचकोले खाती पतंगों की तुलना अपनी जिन्दगी से कर रही थी। सोचा अब जाकर पंतगों की तरह मेरी जिन्दगी ने भी उड़ान भरनी शुरू कर दी।
