मां की अमूल्य धरोहर
मां की अमूल्य धरोहर


वह भी क्या दिन थे । नींद थी की आंखों में सीमेन्ट की तरह जमी रहती थी और मां थी कि सुबह उठाने के लिये सर पर सवार हो जाती थी । मै दो मां और दो पिताओं के बीच पली क्योंकि बड़ी मां जिनको हम ताई कहते थे उन पर कोई बच्चा नहीं था वह हमारे साथ ही सम्मिलित रहते थे क्योंकि पिताजी और ताऊजी का व्यापार भी सम्मिलित था । सब भाई बहन बहुत लाड़ले थे पर मै सबसे छोटी थी तो सबसे अधिक खोटी थी । दोनों दीदीओं की शादी होगयी भाईयों की भी शादी हो गयी थी बस फिर तो मस्ती ही मस्ती । मां चाहती थी कि उनकी बेटी सर्व गुण सम्पन्न बन जाये पर हम भी एक नमूने थे । एक दिन कबड्डी खेलने में पूरा ड्रेस का कुर्ता और दुपट्टा फाड़ लाये बस आकर बड़ी मां के पास जाकर व्यथा सुनाई पता था वही बचा पायेगी छोटी मां के क्रोध से बच तो गये पर मां घोषणा कर दी कि इसे अब शाम का आधा खाना बनाना पड़ेगा क्योंकि अब इसकी शादी करनी है। 12 वीं की परीक्षा दी थी उस समय यही पढ़ाई बहुत थी । बस आनन फानन शादी भी तय होगयी । ससुराल पहुँचे बड़ा परिवार था हम शहर के थे । बहुत मुश्किल हुई । मां मिलने ससुराल गयी तब हमारी जिठानी जी ने नमक मिर्च लगा कर कहा कि खाना बनाना नहीं आता और बच्चों के साथ ऊंटपटागं खेल खेलने में मस्त है। मां शिक्षित महिला थी वहां कुछ नहीं बोली । उन्हें बहुत दुख हुआ क्योंकि उस समय भी मैने कढ़ाई सिलाई बुनाई में डिप्लोमा किया हुआ था । इतनी गृहस्थी का खाना नहीं बना पाती थी पर सब आता था । बस घर आकर बड़ी मां से कहा बड़ी मां को बहुत दुख हुआ । दोनों ने ठाना कि वह अपनी बेटी को किसी के आरोप नहीं सुनने देंगी और जब हम विदा होकर आये पाक कला में तो निपुण किया ही बल्कि पति देव को बुला कर कहा कि बच्ची अभी आगे पढ़ाई करेगी । पति देव भी यही चाहते थे और मै शादी के बाद भी पढ़ती रही ।इन्टर पास लड़की बी. एड , पी- एच डी , एल. एल. बी कर लियाऔर साथ में अपने बच्चो को भी डा. इंजीनियर लाइन में भेज दिया । ये उन दोनों मांओ की दी हुई हिम्मत और प्रेरणा थी ।
बस तब पता लगा मां एक बट वृक्ष है जबकि हमारी तो दो मां थी । दोनों हर मुश्किल परिस्थितियों से कैसे बचाती थी । आज मै भी उम्र के आखिरी पड़ाव पर आगयी पर मां और बड़ी मां का ज्ञान मैने अपनी दोनों बेटी और बहू के अन्दर समाहित कर दिया । मां का दिया ज्ञान और संस्कार" अमूल्य धरोहर "