मन मुटाव
मन मुटाव


अनु बहुत उदास थी । आज रक्षा बन्धन का पावस दिवस था । सब भाई बहन रंग बिरंगे परिधानों में नज़र आ रहे थे । उसका कोई भाई नहीं था । बस वह दो बहन थी । अब तक सब संयुक्त परिवार में रहते थे । चाचा जी और ताऊ जी के दो बेटे तुषार ,कर्ण, पुलकित और अमन उसके भाई थे । सब में इतना प्यार था कि अब तक कभी पता ही नहीं चला कि वह उसके सगे भाई नहीं हैं । अभी कुछ समय पहले वक्त ने ऐसा मोड़ लिया कि सब में सम्पत्ति को लेकर मनमुटाव होगया और सम्पत्ति बंटवारे के साथ साथ दिलों के भी बंटवारे हो गये ।
अब आकर अनु को पता लगा कि उसके चारों भाई अब राखी नहीं आयेंगे । आज सुबह से अनु बहुत उदास थी । उसकी आंखों में बार बार आंसू आजाते थे । वह मां से बोली मां क्या मैं भाईयों से नहीं मिल सकती । मां ने कहा अगर तुम्हारे भाईयों को तुम्हारी याद आती तो क्या वह तुमसे मिलने नहीं आ सकते थे । अनु आकर खिड़की में खड़ी हो गयी और सामने दरवाजे की ओर देखती रही । उसी समय उसने देखा कि बड़े भाई तुषार और कर्ण दोनों उसकी ओर बहुत उदास नज़रों से देख रहे हैं।
उसी समय मोबाइल की रिंग सुनाई दी । उसने देखा अमन का नं. था । जब उसने हलो कहा तो उधर से आवाज आई क्यों छुटकी तुझे हमारी याद नहीं आ रही क्या ? हम सबने आज खाना भी नहीं खाया और आवाज सिसकियों में बदल गयी । अनु भी रोने लगी बोली भाई बड़ो की गलतियाँ हम क्यों झेलें । मैं और छुटकी नीचे आरही हैं तुम सब आजाओ । अनु अपनी बहन और राखी लेकर नीचे भागी । चारों भाईयों के दोनों बहनों ने राखी बांधी । इतना शोर सुनकर तीनों घरों से सब बाहर आगये । यह देख कर तीनों भाई पहले तो कुछ सकुचाये पर बच्चों का आपस में उल्लास देख कर सब मनमुटाव दूर हो गया और सबने आपस में अपनी गलतियों के लिये माफी मांगी और बच्चों के साथ त्यौहार की खुशी में शामिल हो गये ।