अपने तो अपने होते हैं
अपने तो अपने होते हैं


सविता आज बहुत थकी हुई थी । 15 दिन से सफाई अभियान चल रहा था । तीन दिन बाद दीपावली है। अब उम्र ने भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था । नकुल ,तरुण और मानवी तीनों बच्चे अब बड़े हो गये थे । तीनों अच्छी सर्विस में थे । तीनों मां से कहते क्यों तुम पापा का इन्तजार 20 साल से कर रही हो । जब हम इतने छोटे छोटे थे तब ही उन्हें हमारे ऊपर प्यार नहीं आया और छोड़ कर रत्ना मौसी के साथ रहने लगे । मां तुमने कितनी मेहनत करके हमको पाला है शिक्षा दिलाई आज हम सब इतनी अच्छी पोस्ट पर हैं अब आप आराम करो पर सविता अनूप को नहीं भुला पाई । उसका बस इतना कसूर था कि वह खूबसूरत नहीं थी । जब ससुराल में आई तब ही सब कहते इसे अनूप ने कैसे पसंद कर लिया पर अपने मधुर व्यवहार से उसने सबका मन मोह लिया । एक साल के अन्दर नकुल का जन्म होगया परिवार में सब खुश थे फिर तरुण भी आगया और उसके बाद मानवी । सब सही चल रहा था । रत्ना उसकी चचेरी बहन थी वह इसी शहर में पढ़ने को आगयी । रत्ना बहुत सुन्दर व आधुनिकता में रंगी हुई लड़की थी पता ना कैसे अनूप पर उसका दिल आगया । अनूप का पापा का बहुत बड़ा व्यापार था । सब अनूप ही संभालता था । चाचाओं के अलग व्यापार थे । अचानक अनूप के पापा का देहान्त हो गया । बस अनूप बिलकुल स्वतंत्र हो गया और धीरे धीरे रत्ना के साथ रंगरेलियां मनाने लगा । सविता ने बहुत समझाया और बच्चों की दुहाई दी पर वह तो रत्ना के रंग में रंगा हुअ था । मां भी लाचार थी और एक दिन सविता और अनूप में रत्ना को लेकर अधिक कहा सुनी हो गयी और वह घर छोड़ कर चला गया । सासु जी और तीनों बच्वो को लेकर इस घर में अकेली रह गयी । परिवार के खर्च की भी समस्या सामने थी उसने में ही एक छोटी सी दुकान खोल ली । वह तो घर उसके ससुर ने उसके नाम कर दिया था । हर दीपावली पर वह अनूप का इन्तजार करती कि शायद वह बच्चो से और अपनी मां से तो मिलने आयेगे । अभी कुछ दिन पहले पता लगा कि रत्ना किसी और धनवान के साथ रह रही है क्योंकि अनूप का व्यापार धीरे धीरे खत्म होगया । चार दिन से मां अनूप की बहुत याद कर रही थी । सविता को लग रहा था शायद मां का अन्तिम समय नजदीक है तीन दिन बाद दीपावली भी है शायद अनूप आजाये ।
आज दीपावली है सुबह से सब तैयारी में लगे थे अचानक एक पुलिस का सिपाही आया और उसने कहा मि.अनूप. का घर यही है। नकुल ने कहा जी बताये क्या काम हैं उसमे कहा कि मेरे साथ चलो वहाँ जाकर देखा कि एक एक्सीडेन्ड हुआ है और एक आदमी बहुत घायल अवस्था में है। जाकर देखा ये उसके पापा हैं वह उन्हें लेकर तुरन्त हास्पिटल पहुंचा । घर पर सूचना दी । सविता तो बिलकुल पागल सी होगयी । डा. ने कहा घबड़ाने की जरूरत नहीं बस थोड़ा समय लगेगा । तीन दिन बाद आज अनूप को घर जाने को कह दिया ।अनूप सविता से आंख नहीं मिला पा रहा था । जब वह घर आया तो तीनों बच्चे उसके पास खड़े थे । मां बोली बेटा अपने तो अपने होते हैं चलो बस कल भूला आज अपने घर आगया वह भी इस जगमगाती दीपावली पर।