Rani Sah

Tragedy

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Rani Sah

Tragedy

मनोकामना

मनोकामना

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मनोकामना एक शब्द जो तृप्त करती है, हर व्यक्ति के साथ सोच बन कर चाहत का रूप ले लेती है। परन्तु यह याचना हर किसी की जिंदगी में शुरुआत ले कर आये ये जरूरी नहीं कभी कभी खात्मा भी लेकर आती है । 

ऐसा ही कुछ पाखी के साथ हुआ था लेकिन बदकिस्मती से वक़्त की बेरुखी भी निःशब्द गुजरी थी। कभी ऐसा भी वक़्त पाखी की जिंदगी में था जब उसने खुद की पहचान पाने की खातिर मुश्किलों से सामना करने का पक्का इरादा किया था ।

हर रूप से सच्चे दामन का हाथ थाम कर पाखी ने इस जमीन पर उस आसमान में उड़ने का ख्वाब देखा था, मंजिलों को पाने की एकाग्रता और निष्ठा उसमें कूट कूट कर भरी थी ।

पर एक सुबह पाखी की ख्वाहिशें अधूरी दस्तान में सिमट सी गयी वो जो सफर उसका उड़ान का था ठहर सा गया,

पाखी की हित के लिए उसके घरवालों ने उसकी शादी करा दी! पाखी ने भी कुछ संस्कारों का कुछ माँ बाप के अरमानों का मान रख लिया। पर हक़ीकत यह था हमसफर मिला पर साथ नहीं? मानो पाखी किसी भीड़ में उम्मीद का हाथ पकड़ना तो चाहती है पर हर शख़्स बेगाना है अपना कोई नहीं ।

आज पाखी अतीत के पन्ने में अपने आज का लिखा देखती है और इस समाज रीत रिवाज से एक ही सवाल करती है - क्या मेरा शादीशुदा होना मेरी मनोकामनाओं का अधूरा होने की एक मात्र वजह है?    


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