टूटे फूटे पेन और डायरी
टूटे फूटे पेन और डायरी


आज घर की सफ़ाई के दौरान कितनी सारी चीज़ें कोने में यहाँ वहाँ पड़ी मिली।दराज़ों में कुछ टूटे फूटे पेन और एक पुरानी डायरी मिली…उस पुरानी डायरी में मेरे मन की कुछ बातें थी…कुछ कहानियाँ और कविताएँ भी थी। मैं उस नॉस्टेल्जिया में डायरी के पन्नों को पढ़ने लगी…उन पुरानी नज़्मों में ढेर सारी कैफ़ियतें दर्ज थी…किसी नज़्म में शिकायतों को लेखाजोखा था तो किसी नज़्म में न जाने कितनी सारी यादों का हिसाब किताब था…ऐसा नहीं था की उस डायरी के हर पन्नों पर शिकायतें ही लिखी थी…बल्कि कुछ पन्नों में ख़ुशगवार ज़िन्दगी के रंग भी बिखरें थे…मैं डायरी की उन नज़्मों में खो गयी…वे सारे मेरे उस वक्त के ख़यालात थे…
लेकिन अब? अब वक़्त काफ़ी बदल गया हैं .…आज की मैं और उस वक़्त की डायरी में नज़्म लिखने वाली मैं हम दोनों में कितना फ़र्क़ था…
उस वक़्त डायरी में अपने मन की बात लिखने वाली मैं एक कच्ची उम्र की अनुभवहीन व्यक्ति थी। आज की कॉर्पोरेट वर्ल्ड में इंटर्नल पॉलिटिक्स और गलाकाट कॉम्पीटिशन में प्रोफेशनल और सोफ़िस्टिकेटेड तरीकों से डील करने वाली मैं…दोनों एकदम अलग पर्सनैलिटी थी। उस वक्त के मेरे वे सारे सवाल न जाने क्यों कही खो गये हैं…क्योंकि आज की मेरी लाइफ में कोई सवाल ही नहीं हैं…मैं बस अपने सेल्स, मार्केटिंग और टार्गेट्स अचीव करने के लिए काम करती हूँ और अपने टार्गेट्स पर ही ध्यान देती रहती हूँ।अपने टारगेट्स को अचीव करने के लिए बिना किसी सवाल जवाब के बस थैंक यू, येस… येस , नो प्रॉब्लम… शूअर, हो जाएगा, डोंट वरी जैसे लफ़्ज़ ज़्यादा बोलने लगी हूँ…
ज़िन्दगी इंसान को कितना बदल देती हैं, नहीं? हाँ…अब मैं डायरी नहीं लिखती हूँ और ना ही कोई कविता और कहानी भी…