Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Nisha Singh

Abstract

4.5  

Nisha Singh

Abstract

टाइम ट्रेवल (लेयर-4)

टाइम ट्रेवल (लेयर-4)

3 mins
23.5K


नहीं, ये नहीं हो सकता था। कैसे हो सकता था कि मैं बीच रास्ते में ही कहीं और पहुँच जाऊँ वो भी हस्तिनापुर जबकि मैं निकली तो कहीं और के लिये थी।

“आप मज़ाक कर रहे हो ना ?” मैंने पूछा।

“नहीं, ये सच है। तुम हस्तिनापुर में हो।”

“पर ऐसा कैसे हो सकता है ?”

“क्यों नहीं हो सकता? बिल्कुल हो सकता है। जब तुम घर से निकलीं थी तो यही सोच के निकलीं थीं ना कि तुम्हें उन लोगों से बात करनी है जिनको लेकर तुम्हारे मन में कुछ प्रश्न हैं तो कुछ शंकायें। अब जब वही लोग तुम्हारे आस पास हैं तो तुम बेकार की बातों में भटक रही हो।”

“पर वो लोग तो इस दुनियाँ में ही नहीं हैं। बिना किसी की मदद के मैं मरे हुए लोगों से बात कैसे कर सकती हूँ? कहीं मैं मर तो नहीं गई?”

मेरी बात सुन के वो हँस पड़े।

“नहीं बिल्कुल नहीं। तुम जीवित हो। अब खुद को शांत करो और अपने प्रश्नों पर आओ। अधिक समय नहीं है तुम्हारे पास।”

मुझे उनकी बात पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं था। ये क्या कम था कि यहाँ लोग बिना बताये ही सब जान लेते हैं कि उस पर ये बम और फोड़ा जा रहा था कि मैं हस्तिनापुर में हूँ और मेरे आस पास मरे हुए लोग हैं। मैंने खुद को चिमटी काट के देखा। दर्द हुआ। मतलब मैं ज़िंदा थी। ये जानने के लिये कि उनकी बात में कितनी सच्चाई है मैंने सवाल पूछने शुरू कर दिये।

“मैं यहाँ तक कैसे आई?”

“अपनी दृण इच्छाशक्ति से। इसके बारे में तो तुम भी जानती हो।”

सच कह रहे थे वो। मैंने विलपॉवर के बारे में काफ़ी पढ़ा था। सच कहूँ तो इस फ़ितूर की शुरुआत वहीं से हुई थी। मैं अपनी विलपॉवर की मदद से उन बातों के बारे में जानना चाहती थी जो हज़ारों साल पहले बीत चुकी हैं। पर यहाँ आ कर तो मैं अपने सारे सवाल भूल गई। अब तो ये जानना था कि ये सब चल क्या रहा है। पर इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती उन्होंने कहना शुरू कर दिया।

“लगता है सारी बातें विस्तार से बतानी पड़ेंगी राजकुमारी जी को।चलो शुरु से सुनो। जिस पेड़ के नीचे तुम बैठी थीं वहाँ से हस्तिनापुर की सीमा शुरू होती है। वहीं प्रमुख द्वारपाल ने तुम्हें देखा पर पहचान नहीं पाया और जिन्होंने तुम्हें पहचाना उन्हें तुमने पहचान नहीं पाया।”

“आप उन सफेद कपड़ों वाले बाबाजी की बात कर रहे हो? कौन थे वो?”

“आचार्य द्रोण।”

“मतलब वो द्रोणाचार्य थे।”

“और वो दोनों ?”

“वो... महारानी कुंती और महारानी गांधारी।”

“नहीं वो नहीं, वो जिन दो लोगों की मैंने रास्ते में आवाज़ सुनी। शायद दो ही थे। मैं डर भी गई थी उनकी बात सुन के।”

“कौन थे? क्या बात कर रहे थे?”

“कुछ निशाना लगाने के बारे में बात कर रहे थे। अंधेरे में निशाना कौन लगा सकता है?”

“वो दो नहीं तीन थे। अभिमन्यु, लक्ष्मण और दुर्योधन। अवश्य ही दोनों मिल कर दुर्योधन को परेशान कर रहे होंगे।”

“अभिमन्यु और दुर्योधन एक साथ? और ये लक्ष्मण कौन है?”

“क्यों नहीं... दुर्योधन अभिमन्यु का ताऊ है एक साथ क्यों नहीं हो सकते? और लक्ष्मण, वो दुर्योधन का पुत्र है। अवश्य ही दुर्योधन उन्हें अभ्यास करवा रहा होगा और वो दोनों उसे सता रहे होंगे।”

“तो क्या महाभारत का युद्ध...”

“वो तो कब का समाप्त हो चुका। अब तो यहाँ कोई युद्ध के बारे में बात भी नहीं करता। युद्ध कोई अच्छी बात नहीं होती।”

“अब बात नहीं करते तब तो युद्ध किया था ना। अब क्या फायदा इन सब बातों का? तब समझ में नहीं आता था कि युद्ध अच्छी बात नहीं होती? कैसे विद्वान थे आप लोग? बस कहने भर के...”

मेरी बात सुन के उनके माथे पर दुःख और चिंता की रेखायें उभर आईं। लेकिन मुझे अपना जवाब चाहिये था ये बदले हुए भाव नहीं। 


Rate this content
Log in

More hindi story from Nisha Singh

Similar hindi story from Abstract