AMAN SINHA

Romance Tragedy Fantasy

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AMAN SINHA

Romance Tragedy Fantasy

तीन कहानियां -भाग २ - तानिया

तीन कहानियां -भाग २ - तानिया

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बात २००७ की है मुझे कालेज खत्म किये दो साल हो चुके थे और मुझे पहली बार किसी कोर्पोरेट कम्पनी मे काम करने का मौका मिला था। वैसे नौकरी तो मैं २००२ से ही कर रहा था मगर उसे मैं नौकरी मानता नहीं था। कलकत्ता के बड़ा बाज़ार में आपको मजदूरी का काम थोक के भाव में मिल जाता है। और मेरी भी शुरुआत ऐसी ही एक मजदूर के हैसियत से ही हुई थी। मैं उस काम को छोटा या बड़ा नहीं कर रहा हूँ मगर मेरा मन उस काम में लगता नहीं था तो इसी कारण मैं उसे नौकरी नहीं मानता था। खैर जब मुझे पहली बार किसी बड़े कम्पनी में काम करने का मौका मिला तो लगा जैसे ज़िंदगी अब संवर जायेगी। लेकिन हम जैसा सोचते है वैसा होता नहीं है। ज़िंदगी हर मोड़ पर हमें चौंकाती रहती है लेकिन हम कभी भी उसके लिये तैयार नहीं रहते। राखी वले किस्से के बाद मैंने सोच लिया था की चाहे जो भी हो जाये मैं कभी दोबारा प्यार के चक्कर में नहीं पड़ने वाला। अपने इसी फैसले के कारण मैंने अपनी बाके की पुरी स्कूल के दिन और कालेज के दिन बिना इस बला के नजदीक गये ही बिता दिये। बस एक गुस्सा था खुद के अंदर की मैं जिसे चाहा उसने मुझे कभी नहीं चाहा तो अब मैं फिर किसी को भी नहीं चाहूंगा। मेरे दोस्तों की ना जाने कितने प्रेम प्रसंग रहे और कितनों को मिलाने में मेरे अहम भूमिका भी रही मगर मैं खुद कभी इस दलदल में पड़ना नहीं चहता था तो कभी पड़ा भी नहीं। सोचा जब किस्मत में शादी होना लिखा होगा तो मुझे भी मेरा साथी मिल ही जायेगा। मुझे याद नहीं पड़ता की मैंने खुद से कभी भी किसी लड़की को प्रपोज किया हो। पूरे कालेज के समय में मेरी एक भी लड़की दोस्त नहीं हुई। एक बार जो ठान लिया वो ठान लिया। हालांकि मेरी शकल भी कुछ इतनी बुरी नहीं थी की मैं कोशिश करता तो निराश हो जाता मगर राखी के जाने के बाद खुद पर से मेरा भरोसा भी डगमगा गया था। कुल मिलाकर सख्त लौंडा बने रहने की भरपूर कोशिश करता रहा। आलम ये रहा की अक्सर मेरे बाकी के दोस्त हरेक छुट्टियों वाले दिन अपने साथी के साथ मौज करते थे और मैं अक्सर घर पर ही रहा करता था। मेरे दोस्त भी गिन चुनकर तीन से चार ही थे और वो भी अपनी प्रेमिका के साथ ही रहना पसंद करते थे। तो मेरे हिस्से में बस अकेलापन ही था जो मैं ये खुद ही चुना था। कभी कोई दोस्त कहता भी की किसी लड़की से मेरा परिचय करवा देगा तो भी मैं मना ही कर देता था। राखी के बाद किसी और के लिये उस तरह के भाव मेरे मन मे जागे ही नहीं। वो कब की जा चुकी थी मगर मैं उसे भुला नहीं पा रहा था। किसी और से रिश्ता जोड़ना मेरे लिये राखी के प्यार को धोखा देने के समान था। मैं कभी राखी को धोखा नहीं दे सकता था चाहे वो मेरे साथ हो ना हो।

हरेक आदमी की जीवन मे एक दुसरा मौका जरूर आता है जब वो अपने किसी अधूरे काम को पूरा कर सके। वो काम कुछ भी हो सकता है चाहे कोई गलती सुधारनी हो, चाहे कोई बात पुरी करनी हो या फिर चाहे अपना प्यार पूरा करना हो। ये मौका कब और कैसे आयेगा वो किसी को नहीं पता होता। मुझे भी नहीं था। समय बदल चुका था और अब मोबाइल सेवा अपने पांव पसार रहा था। नोकिया के ३३१० मोडल को भला कौन भूल सकता है। मुझे याद है मैंने जो पहला फोन खरीदा था वो ३३१० ही था। और साथ में हच का सिम कार्ड। शायद ये वो पहली चीज़ थी जो मेरे पास मेरे दोस्तों से पहले आयी थी। बाकी मामलों में मैं उनसे बहुत पीछे छूट चुका था। उस समय मोबाइल सेवा आज के तरह दुरुस्त नहीं थी अक्सर ही गलत नम्बर से आपके पास फोन आ जाया करते थे। एक ऐसा ही फोन मेरे ऑफिस के एक साथी के पास आया। उसका नाम कृष्नेंदू था। कोई लड़की थी जो किसी रबि से बात करना चाह रही थी। जिसके पास फोन आया था वो सिर्फ एक ही रबि को जानता था, मुझे, पर मैं उस लड़की को तो जानता जी नहीं था। उसने मुझसे पुछा की क्या मैं किसी तानिया को जानता हूँ तो मैंने ना में सर हिला दिया। कृष ने पहले तो उसे मना कर दिया पर जब उसे तीन से चार बार फोन आया तो उसने पहले तो उसे बहुत जली कटी सुनायी और बाद में मुझ पर भी बिफर गया। मैं उससे इस गुस्से का कारण पूछा तो बोला एक तो वो लड़की तेरे बारे में पूछ-पूछ कर परेशान कर रही है और उसपर तू है जो जाने क्यों उसे मेरा नम्बर दे दिया है। मैंने कहा मगर भाई अभी तक तो मुझे तेरा भी नम्बर नहीं पता तो मैं उसे तेरा नम्बर दे कैसे सकता हूँ। ये बात उसे भी समझ में आ गयी तो वो बोला भाई लगता है उस लड़की को किसी लड़के ने गलत नम्बर दे दिया होगा या फिर अभी जो नम्बर मेरे पास है वो पहले उस रबि का होगा तभी वो रबि से बात करना चाहती है। बेचारी परेशान लगती है, मैं एक काम करता हूँ अगर इस बार उसका फोन आयेगा तो मैं उसे तेरा नम्बर दे दूंगा तो एक बार बात करके देख शायद उसका कुछ भला ही हो जाये और हो सकता है की तेरा भी कुछ भला हो जाये। मैं बात करूंगा वो भी एक अंजान लड़की से तेरा दिमाग तो सही है ना- मैं बोला। इस बात पर उसने मुझे समझाया की मुझे उससे मिलकर तो बात करना है नहीं जो मैं संकोच में हूँ। मुझे उससे फोन पर बात करना है और अगर मुझे सही ना लगे तो दोबारा उससे बात नहीं करूं तो भी उसे या मुझे क्या फर्क़ पड़ने वाला है। बात तो उसकी सही थी और इसी लिये मैं भी बात करने को तैयार भी हो गया। मैंने सोचा चलो अब जो होगा देखा जायेगा।

मैं बात करने को राज़ी तो हो गया मगर क्या बात करनी है ये तो मालूम ही नहीं है। एक तो मैंने पहले कभी किसी अंजान लडकी से बात नहीं की है और उसपर भी फोन पर बात करने का भी कोई अनुभव नही था। लेकिन भैया हम लडको की तो लडकियों से बात करने के नाम पर ही पेट के अंदर खलबली मची जाती है। उसे हाँ करने के बाद जाने क्युं मैं अब तानिया के फोन का इंतज़ार करने लगा था। दोपहर से शामहो  गयी और शाम से रात मगर मेरे फोन की घंटी नही बजी। रात को जब हम सभी घर के लिये रवाना हुए तो कृष्नेंदु ने मुझसे पूछा भाई कोई फोन आया क्या? मैने बडे उखडे अंदाज़ मे कहा, कहाँ कोई काल आया, तु तो बस मेरी टांग खिचने मे लगा रहता है। और उसी बात पर चार गालियां भी सुना दिया। गाली सुनकर वो थोडा हंसा और बोला तु तो कह रहा था की तुझे उससे बात ही नहीं करनी है मगर अब तो ऐसा लग रहा है की जैसे तुम उससे बात करने के लिये तडप रहा है। घबरा मत वो लडकी भी किसी से बात करने के लिये मरी जा रही है। शायद तुम दोनों की जोडी सही बैठ जायेगी। यही सोच कर मैंने तुम्हे उससे बात करने को कहा है। ऐसा बोलकर वो तो चला गया और मुझे फिर से उसके फोन के लिये तडपता हुआ छोड गया। मैं पुरे रास्ते बस मे बैठे हुए उसके फोन आने की राह देखता रहा मगर कोई फायादा नहीं हुआ। जब घर आया तो सोचा की अब अगर फोन आ भी गया तो अब उससे बात कर पाना आसान नहीं हो पायेगा। खाना खाकर मैं अभी सोने वाला था की मेरे फोन की घंटी बजी। नम्बर अंजान था तो तो मेरे बडे भाई ने कहा की नाम नहीं दिख रहा है इसमे मैं झट से खाने से उठा और भाग कर फोन पकड लिया। दुअरे तरफ से किसी ने कहा क्या मैं विकाश से बात कर सकता हूँ? ये सुनकर मेरे अंदर हेराफेरी के परेश रावल की आत्मा जाग गयी " फोन रख, तु फोन रख रे बाबा" बस यही कहना चाहता था मैं मगर फिर खुद को रोक कर कहा रोंग नम्बर है। 

मेरी खुशी एक झटके में गम मे बदल गयी। दिल की धडकन जो बढी थी एक ही बार मे रुक गयी। भाइ ने मेरे तरफ देखा तो बोला सब कुछ ठिक तो है? मैं ने हाँ मे सर हिला दिया मगर कुछ बोल नही पाया। अब मैं खुद को ही समझाने मे लगा रहा की मैं बच्चों जैसी हरक़त क्युं कर रहा हूँ? जब फोन आना होगा आ जायेगा। भला मुझे क्युं इतनी बे सबरी हो रही है? मगर दिल बेचारा जिसे आज तक किसी लडकी ने खुद से आगे बढकर बात नी की हो उसे किसी के फोन का इंतज़ार करते हुए बेसब्र हो जाने मे कोई गुरेज नही थी। इसी तरह दो दिन बीत गये मगर कोई भी फोन नही आया। किसी भी चीज़ के इंतज़ार की एक सीमा होती है और जब वो सीमा पार हो जाती है तो व्यक्ति का मन उससे उठने लगता है। पहले दो दिन के इंतज़ार के बाद अब मेरा ध्यान उससे हटने लगा था। उस दिन दोपहर को हम सब लंच ब्रेक पर खाना खाने बैठे ही थे तभी मेरे फोन की घंटी बज ऊठी। फिर एक अंजान नम्बर देखकर मैं उसे लेने के मूड मे बिल्कुल भी नहीं था। उसी समय कृषनेंदू मेरे पिछे आकर कहता है, भाई फोन ले ले ये उसी का है अभी अभी उसने मुझसे तेरा नंबर लिया है। पहले बार उसने तेरा नंबर खो दिया था। तो आज फिर से मुझसे तेरा नंबर लेकर फोन कर रही है। मैं तो खाना पिना सब छोडकर भागा। सीधे ओफिस के बाहर जाकर फोन उठाया। दुसरी तरफ से एक बहुत ही मिठी सी आवाज़ मे कोई लडकी बोली, क्या मैं रबी से बात कर सकती हूँ। ये मेरे लिये आश्चर्य जनक बात थी कि कोई लडकी जिसे मैं जानता तक नही उसे मेरा नाम पता था। 

मैंने उससे पूछा आप किस रबि से बात करना चाहती है क्युंकी मौन तो आपसे पहले कभी मिला ही नहीं हूँ। बस यही से हमारी बातों का सिल सिल चल पडा। तब मोबाईल पर बात करना कोई सस्ता काम नहीं था। हरेक मिनट के २५ पैसे लगते थे। लेकिन उस दौर मे भी हम कई कई घंटो तक मोबाईल पर बात करने लगे थे। कभी वो फोन करती तो कभी मैं फोन करता था। उसने कभी भी मुझसे अपना नम्बर रिचार्ज करवाने क एलिये नहीं कहा। जब भी बात करते तो बहुत सारी बात हुआ करती थी। मुझे पता नहीं था कि वो किस रबि को खोज रही थी। बस पहली बार और आखिरी बार ही मैंने उससे उस ररबि के बारे मे पूछा था और उसका जवाब भी नही मिला। मैं इस कदर उसके प्यार मे गिरने लगा था की बिना उससे बात किये ना तो मेरे सुबह होती और ना ही रात ही होती। मैं एक बार प्यार मे हार चुका था मगर इस बार ऐसा लग रहा था की मैं किसी और्के लिये बना ही नहे था। मुझे तो बस तानिया से ही मिलना था। कुछ दो तीन महिने बीत चुके थे हमें फोन पर बात करते हुए मगर आज तक हम कभी मिले नहीं थे। ना तो उसने कभी मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की और ना ही मैंए कभी उससे मिलने को कहा। मुझे अपने चेहरे पर इतना तो भरोसा था की जिस भी दिन वो मुझसे मिलेगी अगके दिन से बात करना ही छोड दे। तो मैंए सोच लिया था की जबतक वो खुद से मुझे मिलने को नही कहेगी तबतक मैं भी उससे मिलने की ज़िद नही करुंगा। प्यार बढता जा रहा था उअर मेरा डर भी बढता जा रहा था। मैं उससे मिलना तो चाह रहा था मगर उसके कहने का इंतज़ार कर रहा था। इस बार मैंने ना हारने की कसम खाई थी। इस बारे मे मेरे अलावा और किसी को पता ही नही चलने दिया। बचपन मे एक बार पुरे मोहल्ले क्प पता चल चुका था जिसके वजह से रायता फैल गया था मगर इस बार मैंए ये बात अपने जिगरी यार से भी छुपा कर रक्खा था। 

मगर वो कहते है ना बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी, वो ही हाल मेरा भी था। स्कूल से लेकर कालेज और फिर कालेज से लेकर नौकरी तक मेरे जीवन मे बस तीन ही दोस्त रहे थे। "थे" इस लिये क्युंकि अब कौन कहाँ है कोई नहीं जानता। कम से कम मैं तो किसी के बारे में कुछ भी नहीं जानता हूँ वो तिनों कहाँ है और नाहीं आज के दिन मे मैं जानना ही चाहता हूँ। क्युं? खैर वो कहानी कभी किसी और दिन के लिये छोड देता हूँ । तो जबतक तानिया वाली बात बस मेरे और तनिया के बीच थी सब कुछ सही चल रहा था। मैं मिलने की कामना रखे हुए उससे बात किया करता था मगर खुद से उसे मिलने को बुला सकूं इतनी हिम्मत अभी तक मुझमे हुई नही थी। ऐसे में अक्सर दोस्त ही काम आते है। मगर किसी और को अपने प्यार के बीच आने देना बिल्कुल वैसा हीं है जैसे अपने हिस्से की ज़मीन पर किसी और को घर बनाने की इज़ाजत दे देना। समय बितता जा रहा था और मेरी बेकरारी भी बढती जा रही थी। मगर उसने अभी तक मिलने की बात कभी नहीं कही। 

कहीं ऐसा तो नही कि मैं उसके लिये सिर्फ एक मन बहलाने की चीज़ हूँ? मैं खुद से कई बार ये सवाल किया करता था। लेकिन इसका जवाब हमेशा ना में ही पाता था। क्युंकि आम तौर पर लडकियां आप से तब तक ही बात करती है जबतक की उन्हे आपमे कुछ मनोरंजक मिलता रहता है। मैं जब भी उसे फोन लगाता था वो झट से उठा लेती थी जैसे वो भी मेरे फोन का हीं इंतज़ार कर रही हो। वो कभी भी मेरी बातों से बोर नहीं हुई। मुझसे मेरे घर के बारे में बात करती थी, अपने घर के बारे मे बताती थी। आज उसने क्या किया, कल वो क्या करने वाली है, मां ने क्या कहा, घर मे क्या चल रहा है ये सब बात मुझे बताती थी। वो मेरे संग हसती थी, रोती थी, मुझसे रुठ जाती थी और मुझे मनाती भी थी। ये सब हो रहा था मगर सब फोन पर हो रहा था। सामने मिलकर नहीं। जब मैंने उसे अपने नौकरी के बारे मे बताया तो उसने मेरा हौंसला बहुत बढाया। वो हमेशा मुझसे कहती थी रबि देखना एक दिन तुम्हे बहुत अच्छी नौकरी मिलेगी। तुम्हारी सारी तकलिफें भी मिट जायेंगी सब कुछ तुम्हारे मन का होगा। उसकी बातें सुनकर मुझे लगता था जैसी की मुझे सारी दुनिया की खुशी एक साथ मिल गयी हो। हम दोनों एक दुसरे के सुख-दू:ख के साथी जैसे बन गये थे। 

अभी सब कुछ सही चल रहा था तभी एक दिन मुझे मेरे दोस्त का फोन आया। उसकी हाल फिल्हाल में ही एक बडे से ट्रंस्पोर्ट कम्पनी में नौकरी लगी थी। लगभग छ: महिने पहले हीं उसे इस नये नौकरी के लिये बुलावा आया था। वो जानता था मैं अच्छी नौकरी के लिये कितनी छटपटाहट में हूँ तो इसिलिये जब उसके हीं ब्रांच मे एक बहाली निकली तो उसने मुझसे वहा चले आने को कहा। उन दिनों मैं अच्छे नौकरी का मतलब नहीं समझता था। बस मुझे इस बोझ ढोने वाले काम से छुटकारा चाहिये था। तो मैं वहां जाने को तैयार हो गया। घर से मुझे बाहर जाकर काम करने की स्विकृति चाहिये थी जो कि मिलने वाला था नहीं क्युंकि मैं घर का सबसे छोटा बच्चा था। जैसे तैसे करके मैंने अपनी मां को और बडे भाई को समझाया ताकी वो मुझे जाने दे। किसी तरह सबको राजी कर लिया मगर तानिया का क्या? उसे तो मैंने कुछ भी नहीं बताया था। लेकिन उससे बिना बताये चले जाना भे तो सही नहीं होता ना। अगर उसने जाने से रोकना चाहा तो? या फिर मेरे जाने के बाद उसे किसी और से प्यार हो गया तो? ऐसा तो पहले भी हुआ था ना? मैं भी तो उए किसी और के हीं गलत फहमी के कारण मिला था। यही सब सोचते हुए मैं उलझा हुआ था। फिर आखिर में मैंने तय कर लिया की उसे बता देना हीं सही है। फिर उसकी मर्ज़ी चाहे तो दूर के प्यार को चलाये या किसी पास वाले को अपना बना ले। 

यही सब सोचते हुए मैंने उसे फोन किया और अज पहली बार उसका फोन बंद आया। ऐसा पहले तो कभी हुआ नहीं था तो आज ही क्युं हुआ? तीन बार उसका नम्बर लगाने पर भी जब फोन नहीं लगा तो मैंने सोचा की शायद उपर वाला भी मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहा है। फिर मैंए सोचा की अब जब वो मुझे फोन करेगी तभी मैं बात करुंगा। लेकिन ये दिल है ना साला कभी भी आपको दिमाग की सुनने नहीं देता है। वो हमेशा ही अपको अपने वश मे किये रहता है। और जब आप प्यार में होते है तब तो दिमाग आपका काम करता ही नहीं है। पहले दो घंटे मे मैंए उसे लगभग पंद्रह बार फोन किया मगर एक भी बार उसका फोन लगा नहीं। मेरी बेचैनी बढती जा रही थी। दोपहर के दो बजे से उससे बात नहीं हुई थी और अब तो रात के दस बज रहे थे। मेरा ध्यान सिर्फ उसके ही तरफ था। जब घर लौटा तो मां ने मेरा चेहरा देखते हुए कहा क्या बात है? तेरा रंग इतना उतराहुआ क्युं है? काम मे तो सब ठिक है ना? अब मां को क्या बताता की उसके बेटे का दिल तो उसकी होने वाली बहु के फोन नहीं उठाने से बैठा हुआ है। मैंने कहा कोई बात नहीं है मां बस वो बाहर जाने की तैयारी करने मे जुटा हुआ हूँ इसिलिये जरा सा थक गया हूँ। तुम खाना लगा दो। मां ने बडे ध्यान से मेरी तर देखा और कहा, नहीं बात तो कुछ और है। तु मुझे सच-सच बता की बात क्या है? तु कहीं किसी परेशानी मे तो नही है ना? मैंने मां के कंधे पर सर टिकाते हुए कहा, सब कुछ ठीक है मां कोई चिंता वाली बात नहीं है। मैं ठिक हूँ, काम भी ठिक है। तुम जाकर खाना लगाओ मैं मूंह-हाथ धोकर आता हूँ। मा ने कहा, तु अकेले खा लेगा, बडा तो अभी तक आया नहीं है। और इसी बात पर मां ने मेरे तकलिफ को और भी ज्यादा भांप लिया। 

मैं लाख छुपाने की कोशिश करता रहा मगर मा ने मेरी एक ना सुनी और मेरे पिछे लगी रही थक कर मैने उनसे झूठ कह दिया की मेरे जेब से ३०० रुपये गिर गये है मैं उसी कारण उदार हो रहा हूँ। एक बार के लिये मां ने मेरी बात मान ली। मगर अब भी मेरा दिल किसी काम मे लग नही रहा था। रात के डेढ बजे तक मै उसके फोन की आस मे जगा रहा मगर उसका फोन नहीं आया। जाने कब मेरी आंख लगी और मैं सो गया। सुबह जैसी हीं जागा तो देखा मेरा मोबाईल बंद पडा हुआ था। मैं भागते हुए बिस्तर से ऊठा और फोन का चार्जर तलाशने लगा। उस समय मेरी हालत ऐसी थी जैसे रेगिस्तान में मृग कस्तूरी की तलाश में इधर उधर बेसुध होकर भागता रहता है। कभी इस दिशा तो कभी उस दिशा में। उसे लगता है जैसी कस्तूरी उसके निकट हीं कही है मगर उसे देख नही पाता और पुरे रेगिस्तान मे भटकता रहता है। ठिक उसी तरह मै हर उस जगह अपने फोन का चार्ज़र खोज रहा था जहाँ मुझे लगता था कि उसे होना चाहिये। मगर वो कहीं दिख ही नही रहा था। मैं थक कर हारने लगा था तभी मुझे मां की आवाज़ आयी। क्या तु इसे ढूंढ रहा है? मैंने मां की तरफ देखते हुए पूछा हाँ, पर तुम्हे ये कहाँ मिला? मां ज़रा हंसी और फिर बोली जब तु सो गया था तब मैंने इसे तेरे सिरहाने के निंचे रख दिया था ताकि जब तु उठे तो सारा घर अपने सिर पर ना उठा ले, मगर देखो वही हुआ जो मैं नहीं चाहती थी कि हो। चार्ज़र लेकर मैं तेजी से कमरे के तरफ भागा। मानो मेरा जिगरी यार अपने जीवन के अंतिम सांसे ले रहा हो और उसे आक्सिजन की दरकार हो। मैं उसे मरने के अकेला तो नहीं छोद सकता था ना? एक वही तो मेरा साथी था जो मेरे हर अच्छे-बुरे सही गलत और सुख दु:ख का साथी था। फोन को चार्ज़ मे लगाने पर जो बैटरी बढती हुई दिखाई देती थी ना उसे देखकर मुझे इतना संतोष मिल रहा था जैसे कि मैंने किसी मरते हुए इंसान को नई ज़िंदगी दे दी हो। 

लगभग आधे घंटे के बाद जन मैंने फोन ओन्न किया तो पाया रात के ३ तानिया के पांच मिस्स काल थे और एक मेसेज भी था। झट से इंबोक्स खोल कर मेसेज पढना चाहता था लेकिन... लेकिन... लेकिन.... अगर कोई काम आपके लिये बहुत ज़रुरी हो तभी आपका मोबाईल आपसे अपनी सारी दुश्मनी निकालने पर तुला रहता है। जितनी बार मेसेज बोक्स खोलने की कोशिश कर रहा था फोन हैंग हो जाता था। गुस्सा तो इतना आ रहा था कि मन किया फोन को उठाकर पटक दूं मगर उसके अलावा और कोई दुसरा चारा भी तो नहीं था उस वक़्त मेरे पास। तीन बार फोन को रिस्टार्ट किया तब कही जाकर मेसेज बोक्स खुला। मेसेज तनिया का ही था। लिखा था -  सौर्री, कल से मेरा फोन काम नहीं कर रहा था, पापा ने दुकान मे रख छोडा था, आज रात को आते समय पापा इसे वापस लेते आये है। मैं जानती हूँ तुम परेशान हो रहे होगे, जब जागो तो एक बार फोन कर लेना। मैं मोबाईल लेकर घर से बाहर भागा। दौडते हुए ही उसका नम्बर मिलाने लगा। घंटी बजी उसने फोने ऊठाया और मेरे कुछ बोलने के पहले ही बोल पडी सौर्री सौर्री सौर्री सौर्री सौर्री सौर्री सौर्री सौर्री सौर्री मैं तुम्हे बता नहीं पायी। मुझे मांफ कर दो। मैं बोला मै तुमसे नाराज़ नही हूँ, हाँ मगर जरा डर जरूर गया था की तुम सही तो हो या नही। चलो जब तुम ठिक हो तो बाके सब भी ठिक ही होगा।

सुनो तुमसे एक बात  कहनी है  मुझे एक बहुत अच्छी नौकरी मिली है लेकिन उसके लिए मुझे  कलकत्ते से बाहर जाना पड़ेगा।   नौकरी बहुत अच्छी है और मैं जाना भी चाहता हूं लेकिन जाने के पहले तुमसे कुछ पूछ लेना और समझ लेना चाहता हूं पूछना यह क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो देखो हम दोनों को एक दूसरे से बात करते हुए लगभग 3 महीने हो चुके हैं लेकिन आज तक  ना तुमने मुझसे मिलने  की इच्छा जताई और ना ही मैं तुमसे मिलने की बात ही कर पाया लेकिन अब क्योंकि मैं   यह नौकरी  कर लेना चाहता हूं और अपने पांव पर ढंग से खड़ा होना चाहता हूं तो तुमसे एक बात पूछनी है।  क्या तुम मेरा इंतजार कर पाओगी।  क्या  हमारा यह प्यार दूरियों में भी  रह पाएगा?  और सबसे बड़ी बात कि क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगी?  मैं जानता हूं कि यह बातें तुम्हें अटपटी लग सकती है लेकिन इसके पहले कि मैं यह शहर छोड़ कर जाऊं और दूसरे शहर में अपना आशियाना जमाने की सूची क्या मैं तुम्हें उस आशियाने में अपने साथ रखने की गुस्ताखी कर सकता हूं?  वह सिर्फ सुनती रही कहा कुछ नहीं  जब मैं अपनी बात बोल चुका तब उसकी खनक दार हंसी मेरी कानों में पड़ी वह अचंभित थी कि मैंने उससे सीधे-सीधे शादी की बात कर  ली अभी तक तो हम दोनों एक दूसरे से मिल भी नहीं पाए थे और एक दूसरे को ढंग से समझ भी नहीं पाए थे  और एक मैं हूं कि बिना सोचे समझे उससे शादी की बात कर रहा था । मुझे लगा था कि शायद वह मेरे  बात से नाराज हो जाएगी  लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा उसने झट से मुझे हां कर दी।  उसने कहा कैसा फिल्मों में ही मैंने देखा था सुना था कि सच्चा प्यार का दिल से होकर आंखों तक पहुंचता है लेकिन यह मेरे साथ हो जाएगा मैंने कभी सोचा नहीं था चलो एक बार इसे मौका देकर देखते हैं वैसे कितने दिनों के लिए तुम जाने वाले हो  महीने 2 महीने साल भर  या फिर पूरी जिंदगी के लिए?  अगर पूरी जिंदगी के लिए भी जाता हूं तो भी क्या ही फर्क पड़ेगा मैं तुम्हें अपने साथ लेकर जाना चाहता हूं मैं तुम्हें अपने साथ रखना चाहता हूं मैं अपनी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं लेकिन उसके पहले मैं यह कहना चाहता हूं कि क्या तुम भी मेरे साथ जिंदगी का यह  सफर पूरा करना चाहती हो या नहीं।  मेरे एक नया जोश मैंने सोच लिया कि अब मैं जितनी जल्दी हो सके यहां से बाहर निकल कर खुद अपने पैरों पर खड़ा होकर उसके घर वालों से बात करूंगा और शादी के लिए उसका हाथ मांग लूंगा।  कहानी यहीं खत्म नहीं होती इतना ही आसान होता और सच्चा प्यार आसानी से मिल जाता तो फिर वो प्यार नहीं होता ऐसा सिर्फ अरेंज मैरिज नहीं होता है लव मैरिज में कभी नहीं लव मैरिज की बात ही अंतिम चरण होती है। 

हम जिस जेनेरशन से आते है उस जेनेरशन मे लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप का कोई कौंसेप्ट नही होता। मुझे जाना हीं था ईसी लिये मैंने तानिया से वादा ले लिया की वो मुझसे शादी करना पसंद करेगी या नहीं। मुझे पता था की मेरे जाने के बाद उसका मन बदल जाना कोई बडी बात नहीं होगी। जब उसने हाँ कह दी तो मेरे दिल का डर थोडा कम गया। अगली सुबह मैं घर चला तो साथ में मोबाईल भी लेता चला। उस फोन में सिर्फ तीन हीं नम्बर थे। एक घर का, दुसरा मेरे दोस्त का जिसने मुझे काम के लिये बुलाया था और तीसरा तानिया का। आज मुझे घर से दूर जाने का कोई दू:ख नहीं था। बल्कि मेरे आंखों में सपने थे जिसे मैं जल्द से जल्द पुरा करना चाहता था। मुझे मालुम था कि मैं बहुत जल्द यहाँ  लौटने वाला नहीं हूँ। एक बार काम मे फंस गया तो फिर जाने कब मौका मिलेग आने का मगर लौटुंगा जरूर ये भी जानता था। दिल्ली पहूंच कर सबसे पहले मैंने तनिया को फोन किया की मैं सही-सही दिल्ली आ चुका हूँ फिर कहीं जाकर मैंने मां को काल किया। ईंटरव्यु से लेकर पोस्टिंग तक की हर एक जानकारी मैंं तानिया को बताता रहा। हर घंटे एक बार बात करता रहा। अंतत: जब मैं नागपुर के ऑफिस पहुंच कर अपना कार्यभार सम्हाला तो उसे फोन करके सारी बात बतायी।

यहाँ मैं अपने दोस्त से मिला और उसकी जगह ले ली। दिन अच्छे से बित रहा था। लेकिन कहते है ना कि जब सबकुछ ज्यादा हीं सही हो तो मान लो की मुसिबत अपना मूंह बाये आपकी राह तक रही है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। एक दिन तनिया का नंबर मेरे दोस्त के हाथ लग गया। बस फिर क्या था। उसके पास से दुसरे के पास और फिर तिसरे के पास। दोस्त, भाइसाहब, दोस्त कितने कमिने होते है ये बात बताने वाली तो है नहीं। तो मेरे भी दोस्त कमिने पन मे कुछ कम नहीं थे। मुझे मालुम नहीं था की उसने मेरे गैर जानकारी में तानिया से बत की है, और वो भी मेरा नाम लेकर। लेकिन जब मुझे इस बात का पता चला तो मुझें गुस्सा कम और हंसी ज्यादा आयी। ये लडका हद से नहीं गुजर सकता था। मगर वो जो कलकत्ते में बैठा था ना, उसका कोई भरोसा नहीं था मुझे। ये कमिना लडकी पटाने में माहिर था। इसका चरित्र बिल्कुल "मुझसे शादी करोगी" के सन्नी के जैसा था। इसे दोस्त की गर्ल्फ्रेंड चुराने मे और उसे पटाने मे बहुत मज़ा आता थ। जब मैंने इससे पुछा की क्या तुने उसे भे तनिया का नम्बर दे दिया है तो उसने हाँ मे सर हिला दिया। उसका सिर हिलाना मेरे दुनिया हिल जाने के बराबर था। मैंने झट से तनिया को फोन लगाया और कहा कि अगर तुम्हे कोई अंजान नम्बर से फोन करके कहे की उसे तुम्हारा नम्बर मुझसे मिला है तो उससे बात मत करना।  वो मेरा दोस्त है और साला बहुत हरामी है तुम उससे बात करोगी तो तुम्हे भी अपने जाल मे फंसा लेगा। मेरी बात खत्म होने के पहले हीं वो बोल पडी जैसे तुमने मुझे अपने जाल में फंसाया है वैसे? 

 


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