AMAN SINHA

Others

4  

AMAN SINHA

Others

स्वर्ग- जन्नत -ओंकार- हेवन

स्वर्ग- जन्नत -ओंकार- हेवन

5 mins
307


तीसरी तरफ बैठा पिताम्बर वाला सोच रहा था " यह सरदार जी भी कितना ही भोला और उदार है, जानता है कि बाकि दोनों मे से तो कोई पैसा देगा नहीं तो फिर मुझ तीसरे से भी क्युं ही पैसे लिये जाये शायद इसी लिए इसने मुझसे भी पैसे नहीं मांगे।  मगर पैसे नहीं मांगकर इसने कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है।  बल्कि खुद को एक बेवक़ूफ़ इंसान साबित कर दिया। मैंने आज के पहले इतना सीधा इंसान नहीं देखा।  मैं तो कभी  भी किसी अंजान आदमी पर अपने पैसे बर्बाद ना करूँ।  आखिर इन सभी से मेरा क्या ही रिश्ता है? सही गैर धर्म के लोग है । भला मुझे किसी से क्या ही मतलब है? यही सोचकर पीतांबर पहने हुआ आदमी चुपचाप अपनी आँखें मूंदकर ध्यान वाली  मुद्रा में चला गया।  ट्रेन अपनी रफ़्तार में थी, उसे इस बात से कुछ भी फ़र्क़ नहीं पड़ा रहा था की जिस लोगों को अपने पीठ पर लादे हुए लिए जा रही  है वे लोग आपस में एक दूसरे के बारे में क्या सोचते है? उसे तो बस अपनी गति बनाये रखनी थी और जिन्होंने उसकी सेवा का दाम चुकाया है उसे  गंतव्य तक पहुँचाना हीं उसका काम था । वो अपने कर्तव्य का पूरा पालन कर रही थी और ज़ोरो से सिटी बजाती हुई और अपने रास्ते में आने वाले नदी-नालो, पहाड़ो-गुफाओं और ना जाने कितनी हीं प्राकृतिक संरचनाओं को पार करती हुई अपने वेग में बढ़ती चली जा रही थी।  

सुबह से शुरू हुआ सफर अनवरत चलता ही जा रहा था।  दोपहर ढल चुकी थी और अब शाम होने वाली थी।  दाईं तरफ से निकला सूरज अब ट्रेन की बाई खिड़की से झाँक रहा था।  उसका तेज़ मद्धिम हो चुका था।  सफ़ेद दूधिया रंग भी अब लामिमा बिखेरने लगा था। इस पुरे दौरान किसी ने भी भोजन नहीं किया था।  ना तो टोपी वाले ने, ना ही सफ़ेद छोले धारण किये और हाथों में क्रास लिए व्यक्ति ने ना ही पगड़ी और सलवार कुर्ता पहने हुए आदमी ने और ना ही पीताम्बर ओढ़े मनुष्य ने, किसी ने भी नहीं। मगर अब सभी को भूख लग रही थी।  जाने यह ऊपर वाले का कमाल था या फिर मात्र एक संयोग की वे सभी एक ही साथ अपने स्थान पर उठ बैठे और भोजन की तैयारी में जुट गए।  कोई किसी से कुछ कह नहीं रहा था मगर यह साफ़ था की इस समय कोई भी किसी दूसरे की थाली में झांकना नहीं चाहता था।  मनुष्य चाहे तो अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर सकता है मगर वो प्रकृति को किसी भी तरह से अपने वाश में नहीं कर सकता। 

अब इस समय को ही ले लीजिए इस समय इन चारों में से कोई भी एक दूसरे से बात करना तो दूर एक दूसरे की तरफ देख भी नहीं रहा था मगर किसके थाली में क्या सजा हुआ है यह सभी को पता चल चुका था।  हवा में भोजन जी सुगंध फ़ैली जा रही थी।  पगड़ी वाले की तरफ से आने वाली खुशबू बता रही थी की उसके थाली में देसी घी में तलेल पकवान और मसालेदार सब्ज़ियां पसरी हुई है।  टोपी वाले की तरफ से आने वाली हवा बता रही थी की आज उसके घर वाले ने उसे सेंवइयै या फिर दूध की बनी कोई ख़ास पकवान दी है।  क्रास धारण किये हुए इंसान की तरफ से आने वाली खुशबू किसी अति मादक पेय पदार्थ की सुगंध फैला रही थी।  और अंत में पितामबर पहोने हुए आदमी के तरफ से आने वाली खुशबू मीठी अंचार-पूरी और लड्डू की गवाही दे रही थी।  इतनी सारे खाने के खुशबू से पुरे का पूरा डिब्बा ही महक उठा था।  

तभी उस डीबी में पता नहीं कहाँ से एक अजीब सा बन्दा चला आया।  उसका पहनावा और उसके वयवहार से यह समझना मुश्किल था की वो व्यक्ति किस धर्म विशेष से ताल्लुक रखता है।  बाल उसने बढ़ा रक्खे थे और उसे हलके लाल रंग से राजा भी हुआ था।  चहरे पर दाढ़ी थी मगर मूंछ नहीं दिख रही थी।  हांथो में उसने ना जाने कितने तरह के रंग बिरंगे धागे बाँध रखे थे।  माथे पर तिलक भी था और कुर्ते के अंदर से से उसका जनेऊ भी साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था।  उसने एक हाथ में  कडा भी पहन रखा था और साथ में एक छोटी सी कृपाण भी सजा रक्खी थी।  साथ ही साथ दूसरे हाथ में एक क्रास भी थामा हुआ था जिसपर साफ़-साफ़ अक्षर में उसपर जीसस भी लिखा हुआ था।  कूल मिलाकर उसे देखकर या उससे बातें करके यह जान पाना बहुत ही मुश्किल था की वास्तव में किस धर्म से ताल्लुक रखता है।  यह देखकर बाकी के यह चारो लोग बड़े तकल्लुफी दिखाने लगे।  उनके मन में यब बात चलने लगी की आखिर यह इंसान है कौन और इस तरह से क्यों और क्या बना फिर रहा है।  खैर उस आदमी ने बिना इनसे कुछ कहे और सुने एक एक कर निवाला सभी की थाली में से उठाया और खाने लगा।  अब सभी सकदे में आ गए की कौन उससे क्या कहे।  

वो तो बिना किसी परवाह के कि कौन क्या कहेगा, बड़े मज़े से सभी की थाली के पास एक बार जाता और जो सबसे अच्छा पकवान उसे दिखता उसमे से एक निवाला तोड़कर सीधे अपने मुँह में दाल लेता।  उसे इस बात की फिक्र नहीं थी की सामने वाला शायद इस तरह की हरकत से नाराज भी हो सकता है।  बिना रुके उसने एक थाली से दूसरी थाली और फिर तीसरी थाली से चौथी थाली तक का सफर पूरा किया।  इतना ही नहीं उसने तो एक थाली से दूसरे थाली में जाते समय अपने हाथ तक नहीं धोये।  अभी तक तो सभी चुप थे मगर उसके इस कृत्य से सभी के सभी नाराज़ होने लगे।  ना जाने इस आदमी के अंदर कोई बुद्धि है भी या नहीं।  इसका तो कोई धर्म मालूम नहीं पड़ता मगर यह क्या इसने तो हमारा भी धर्म भ्रष्ट कर दिया।  सभी के थाली को जूठा कर दिया।  मांस-मच्छी खाने वाले इंसान के साथ शाक सब्ज़ी खाने वाले की थाली मिलाकर रख दी। दारू को हराम समझने वाले के थाली में शराब की बूंदे भी गिरा दी।  कौन इसे सबका सिखाएगा? आखिर कौन इसे सही रास्ते पर लेकर आएगा।  सब यही सोच ही रहे थे की तभी अचानक से उस अटपटे आदमी ने कहा - "आज पहली बार इतना अच्छा भोजन किया है मैंने।  सच कहूँ तो आज तक कइयों की थाली से खाना खाया है मगर आज के पहले ऐसा स्वादिष्ट खाना कभी नहीं खाया है मैंने।"


Rate this content
Log in