स्वर्ग -जन्नत-ओंकार-हेवन
स्वर्ग -जन्नत-ओंकार-हेवन
कितना मुश्किल होता है ना खुद को यह समझा पाना कि "अब मैं मर चुका हूँ"। ये कुछ शब्द ही तो है मगर इसमे ही पुरे जीवन का सार छुपा हुआ है। पुरी उमर हम बस आने वाले समय के लिये साधन बटोरते रह जाते है। कौन हमसे आगे है, कौन पिछे रह गया। किसने कितना पैसा कमाया, व्यक्तिगत रोष, जाति, धर्म , देश, दुनिया और भी ना जाने क्या क्या होता है जो सब कुछ बस एक ही पल मे हमसे बिल्कुल छूट जाता है । हम देखते रह जाते है और हमारे नज़रों के सामने ही हमारे अपने हमारे शरीर को उठाकर ले जाते है। एक पल पहले तक जब तक हमारी सांसे चलती रहती है हमें लगता है कि सभी हमे चाहने वाले है, सभी हमसे प्यार करते है, हमारी परवाह करते है। मगर एक पल मे ही सभी से हमारा नाता टूट जाता है। एक पल पहले जो हमे बाप, भाई, पति, चाचा, मामा, दादा ना जाने किन किन नामों से बुला रहे होते है अगले ही पल मे सभी के लिये हम सिर्फ एक लाश बनकर रह जाते है। एक निर्जीव शरिर जिसे लोग जितनी जल्दी घर से निकाल कर ले जा सके उतना ही अच्छा हो।
और फिर एक आखिरी बार सबसे मुलाक़ात और फिर सभी अपने असली सफर पर निकल पडते है। मगर इन चारों को तो वो अंतिम मुलाक़ात भी नसीब नही हुई थी। ये तो अचानक से ही उपर चले आये थे । मगर मजे की बात तो यह है कि चारो अलग अलग धर्म या मजहब के होने के बाद भी एक ही जगह कैसे आ पहूंचे थे । सभी के धर्म ग्रंथ मे तो स्वर्ग या नर्क का विविरण अलग-अलग दिया हुआ है। किसी को यम्राज से मिलना होता है तो किसी को फरिश्ते से । किसी को कोई एंजेल लेकर जाने वाला होता है तो किसी को वाहे गुरु से मिलना होता है । मगर यहाँ तो पुरा मामला ही अलग था । यहाँ तो कोई लाईन भी नही थी जैसा कि अक्सर धरती पर रहने वाले जीव कहा करते है । खैर उन तीनों को लेकर जाने वाली गाडी सिधे एक कमरे मे लेकर चला जा पहूंचा । यहाँ चार कुर्सियां लगी हुई थी । उसपर से तीन पर तीन लोग बैठे हुए थे मगर चौथा खाली था । तभी अचानक से एक तीन लोग वहान हंसते हुए और एक दुसरे के साथ मस्ती मज़ाक करते हुए वहाँ आ पहूंचे ।
तिनो को देखकर लगता था जैसे कि वो एक दुसरे को काफी अरसे से जानते हैं । मगर यह क्या जैसे ही ओव तिनों लोग इन चारों के करीब आये तो पता चला कि वो तीन अलग-अलग लोग नहीं है बल्कि एक व्यक्ति के तीन रूप है। एक ने हिंदु धर्मानुसार कपडे पहन रक्खे थे ( विष्णु अवतार ) दुसरे ने गुरु नानक का रूप ले रक्खा था और तिसरे ने इसाह मसीह का। वो तिनो किसे चौथे से बात कर रहे थे जो कि दिखता नही था (अल्लाह)। यह देखकर इन चारों को बहुत ही क्रोध आया कि कोई आदमी उनके भगवान का वेष कैसे धारण कर सकता है । यह तो पाप है । लेकिन तभी उन्होने कुछ और देखा - उन्होने देखा कि एक ही आदमी बारी-बारी से हरेक धर्म के इष्ट का रूप ले रहा है और उसने अनुसार काम भी कर रहा है। उन तिनो मे से जिसे जब जी आता जैसा चाहता वैस रूप धर लेता । कोई भी किसी का काम कर देता । कोई भी किसी के स्थान पर जाकर उसके मानने वालों की बात सुन लेता और उनकी इच्छा के अनुसार उनका काम कर देता।
कोई भी किसी के हिस्से के लोगों का भला कर देता। वो तिनों और एक अज्ञात साथ बैठ कर एक ही थाली मे खाना भी झा लेते और फिर एक दुसरे के साथ गले भी मिल लेते । तभी उनकी नज़र इन चारों पर पडी । इन चारों को देखकर वो चारो बडी ज़ोर से हंस पडे। उनको देखते हुए वे बोले - देखो इन पाखण्डियों को, यहाँ हम सब मिल्कर एक साथ रहते है, खाते है , पिते है , और एक यह लोग है जो हमारे नाम पर धरते पर तहलका मचाये हुए है। ये लोग अपनी ही मर्ज़ी से हमारा नाम लेकर अपना उल्लू सिधा करने मे लगे हुए है । यह नही जानते कि हम अलग नही बल्कि एक ही है । वो यह कह ही रहे थे कि इतने मे इसाह मसीह उठे और हाथों मे गिता लेकर महाभारत के समय काल मे जाने लगे । जाते हुए वे विष्णु से कहते गये, पिछ्ली बार तु गया था और ज्ञान दिया इस बार मै जाउंगा और अर्जुन को ज्ञान दुंगा । तु ही क्युं बार बार जायेगा। तभी गुरु नानक साहब उठे और कुरान की कुछ आयते सुधारते हुए बोले - इस आयत ने लोगो को भ्रष्ट कर दिया है मुझे इसमे कुछ सुधार करना पडेगा। तभी विष्णु जी ने अपने हाथों मे गुरु ग्रंथ थाम लिया और एक एक करके सभी धर्म ग्रंथो को अपने हाथों मे लेकर कुछ सुधार करने लगे। यह सबकुछ करते हुए वे चारों बहुत हंस रहे थे। आवाज़ तो चार थी मगर शरीर बस तीन ही थे।