AMAN SINHA

Drama Tragedy Action

4  

AMAN SINHA

Drama Tragedy Action

अंतिम सफ़र- भाग३

अंतिम सफ़र- भाग३

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एक बार फिर से बिस्तर पर पड़ते ही रमन जैसे मूर्छित सा हुआ जाता था।  फिर से अज्ञानता उसे अ पने पाश में बांधने लगती है लेकिन तभी उसके दोनों भाई आगे आकर उसका हाथ थाम लेते है। भाइयों का हाथ मिलते ही जैसे उसकी डूबती साँसों को कोई सहारा मिल गया था।  दोनों भाइयो ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ फिर से बिस्तर से उतारकर अपने साथ लिए चले।  वे लोग भी उसी रास्ते पर चल रहे थे जिसपर मां उसे लेकर गयी थी मगर उनका कमरा अलग था।  वे दोनों उसे उस कमरे लिए गए जहां उन तीनो के कपडे और क़िताब वगैरह हुआ करते थे। अब रमन उस सुनहरे दौर से गुजर रहा था जब उसकी उसके भाइयो से खूब बनती थी। वो दोनों ही उसपर जान लुटाते थे।  खुद ज्यादा पढ़ नहीं पाए मगर उन्होंने रमन की पढ़ाई में कभी भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।  रमन उनके साथ बचपन की गलियों से होता हुआ अपनी जवानी तक जा पहुंचा।  इस दौरान उसने उन सभी पलों को फिर से जिया जिसे उसने कभी अपने सच्ची ज़िंदगी में जिया था।  उसे उस दिन का दौरा करने का मौक़ा मिला जिस दिन पहली दफा उसे अपने बड़े भाइयो के कपडे सही तरह से बदन में बैठे थे।  अपने भाइयों के साथ पहली फिल्म फिर पहली बार का सैर सपाटा सबकुछ याद आता जा रहा था।  एक-एक करके अच्छे बुरे सभी यादों से होता हुआ वो वहां जा पहुंचा जहां उसके बड़े भाई की शादी हुई थी। यह वही दिन था जहाँ से रमन के परिवार की किस्मत बदल गयी थी। रमन के परिवार के जीवन यात्रा को दो हिस्सों में बाँटा जा सकता है।  एक, बड़े भाई के शादी के पहले की और दूसरा उसके बाद की।  लेकिन आज उसके मन में किसी तरह का कोई बैर नहीं था।  उन गलियों से गुजरते हुए ही अचानक से बड़े भाई ने साथ छोड़ दिया।  रमन ने कमरे की दीवार पर टंगे हुए कैलेण्डर को देखा तो पता चला कि यह दिन जून २००८ के १६ तारीख की थी।  यही तो वो दिन था जिस दिन उसके बड़े भाई की कैंसर के कारण मौत हो गयी थी।

इस दौरान उसके बड़े भाई ने अपने हिस्से के क़िस्से और खेद भी बताये थे। वो उससे उसे छोड़े जाने के लिए दुखी था।  मगर उस समय उसके लिए जो करना सही लगा था वही किया था।  कल तक वो अपने बड़े भाई को थोड़ा बहुत भी दोषी मानता था मगर भाई के आंसू ने उसके मन का हर अवसाद बहा दिया।  इसके बाद मझले भैया की पारी आयी। वो शुरू से लेकर अंत तक इस सफर में उअके साथ रहा था। बड़ा भाई कभी-कभी आता और चला जाता मगर मझले भाई ने कभी भी उसका साथ नही छोड़ा था।  कालेज से लेकर उसके नौकरी के लिए बाहर जाने तक वो हमेशा ही उसके साथ रहा था।  मगर अचानक से वो भी गायब हो गया।  यकायक रमन को कैलण्डर की याद आयी तो देखा कि यह तो वही समय था जब उसने अपने ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती  की थी।  उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार घर छोड़ा था।  और शायद आखिरी बार भी क्यूंकि उसके बाद से मरते दम तलक उसे कभी अपना घर नसीब नहीं हुआ।  दोनों ही भाई ने कभी भी उससे दगा नहीं किया था।  समय और हालात के आगे मज़बूर होकर उन्हें अलग होना पड़ा था।  मझला भाई कभी अलग भी नहीं हुआ था मगर वो साथ भी नहीं था।  एक ही मकान में रहते हुए भी कभी दोनों के बीच पहले जैसा व्यवहार नहीं रह पाया था।  आज रमन सभी के अंदर के अकेलेपन को देख रहा था।  उसे मालूम पड़ रहा था कि ताउम्र उसने खुद को जितना अकेला जितना अधूरा, जितना कमज़ोर महसूस किया था उसके दोनों बड़े भाई भी लगभग उतने ही अकेले और शक्तिहीन थे।  बस अपने ऊपरी आवरण को इतना कठोर बना रखा था कि कोई उसे भेद नहीं सकता था।  वो तीनो खुद भी उसे भेद नही सकते थे।  मगर आज उन तीनो के बीच की यह दीवार टूट गयी थी।  जाते जाते बड़े भाई ने उससे गले मिलने का मन तो जताया मगर मिल नहीं पाया।  रमन को याद आया कि उसने ऐसा क्यों हुआ, क्यूंकि जिस घड़ी उसकी मौत हुई थी वो उसके सामने होकर भी उससे मिल नहीं पाया था या फिर यूं कहे कि मिला ही नहीं था।  उसने उसे दूर से देखा था और फिर वहीं से लौट गया।  मझले भाई की मौत कब हुई उसे ज्ञात नहीं था।  कल तक उसे यह मालूम भी नहीं था।  किन्तु आज बाकी सभी के साथ उसे देखकर रमन को पता चला कि अब वो भी नहीं रह।  जिस तरह से बड़े भाई ने हाथ छोड़ा था उसी तरह से मझले भाई ने भी उसे बिना अलविदा कहे ही साथ छोड़ दिया और गायब हो गया।

रमन फिर से अकेला हो गया और अधूरा भी।  उसे इस समय किसी के लिखे हुए एक शेर की याद आ रही थी " भाई मरे बल घटे ---------"।

उसने अपनी आँखें बंद कर ली और हाथ जोड़कर अपने दोनों बड़े भाइयो से क्षमा याचना की।  उसे लगा जैसे कि उसके तन से कुछ कटकर, नहीं-नहीं चीर कर अलग हो रहा है। ऐसी पीड़ा उसने अपने वास्तविक जीवन में भी कभी अनुभव नहीं की थी।  उसके आँखों से अश्रु की धार लगातार बहती जा रही थी।  वो चाहता था कि उसके बड़े भाई एक बार फिर से उसे गले लगा ले और कहें कि "जाने दे छोटे जो हुआ सो हुआ इसमें तेरा कोई दोष नहीं है।  हमने तुझे माफ़ किया, तू तो छोटा भाई है अपना, भला तुझसे कैसी नाराज़गी"। मगर ऐसा हो ना सका।  दोनों ही गायब हो चुके थे।  एक बार फिर से उसकी आंख खुली तो खुद को उसने उसी बिस्तर में पड़े हुए पाया।  हर बार उसके दाएं तरफ खड़े लोगो की संख्या घटती जा रही थी।  इस बार बस दोनों बहाने बची थी।  उनके पास कहने के लिए ज्यादा कुछ था नहीं।  बस दोनों ही अपने हाथों में ढेर सारे राखियां लिए हुए थी।  रमन ने पिछले ३५ सालों से कभी भी अपनी कलाई पर राखी नहीं बंधवाई थी।  ये उन्ही ३५ सालो की राखियाँ थी जो दोनों बहने हाथ में लिए हुए खड़ी थी।  रमन ने अपनी कलाई आगे बढ़ा दी मगर दोनों बहनो ने राखी बांधे बिना ही विदा ले लिया।  वो दोनों कब भगवान को प्यारी हुई थी रमन को पता ही नहीं था।  मगर आज यहां देखकर जान गया कि सभी उसका भगवान के घर में उसका रास्ता देख रहे है।  बहने चली गयीं और साथ में दोनों जीजा भी जाते रहे।  मतलब कि अपने घर के सदस्यों में से सिर्फ रमन बचा हुआ था जो कि अभी तक मरा नहीं था।  वो भी ऊपर वाले के दरवाजे पर खड़ा हुआ द्वार खटखटा रहा था मगर द्वार खुलने में अभी थोड़ा और समय बाकी  था।


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