AMAN SINHA

Others

4  

AMAN SINHA

Others

स्वर्ग-जन्नत-ओंकार-हेवन

स्वर्ग-जन्नत-ओंकार-हेवन

4 mins
282


टोपी वाले ने उसे घूरते हुए कहा - "हाँ मज़ा तो आयेगा ही ना, आपको तो सभी के थाली जा आनंद मिल गया, मगर आपने हम सभी का धर्म खराब कर दिया। यहाँ कौन किस जाती से है, किस धर्म से है, किस पेशे से है कोई नही जानता। हम तो वैसे ही एक दुसरे से अलग-थलग बैठे हुए थे तुमने आकर सभी कुछ नष्ट कर दिया। इतने मे पिताम्बर धारी ने कहा -अजी यजमान, आप्को को देखकर मालूम पडता है कि जैसे आपको ना तो अपने धर्म का ज्ञान है और ना ही उससे कोई सरोकार ही है। लेकिन कम-से-कम दुसरे के भावनाओ का तो सम्मान किया किजिये। आप तो ऐसे ही मूँह उठाकर किसी के भी थाली से खाना नही खा सकते ना। भले आपको कोई फर्क़ ना पडता हो मगर दुसरे की इच्छा-अनिच्छा का तो ध्यान आपको रखना ही चाहिये।" तभी तपाक से क्रास धारी व्यक्ति ने कहा - "माई सन, मुझे तुम्हारे खाने से कोई तक़लिफ नही, भुखे को खाना तो खिलाना ही चाहिये मगर उस भुखे को भी यह समझना चाहिये कि सामने वाला जो उसे दे रहा है उससे कुछ लेना भी चाहता है या नही । मैं तुम्हे अपनी थाली का खाना दे सकता हूँ मगर तुम्हारे साथ बैठकर खाना खा तो नही सकता ना । तुम्हे तो यह बात समझनी चाहिये ।" 


वो आदमी सभी की बात सुनता रहा, किसी से कुछ भी नही कहा । वो सब यह बाते कहते रहे और वो मस्ती से एक एक करके निवाला उठाता रहा और खाता रहा। जब उसका खाना हो गया तो वो उठा और जाते हुए बोला। मैंने आप सभी के थाली से खाना खाया है और मैं हर एक निवाली का कर्ज़दार हूँ। कभी आपके काम आ सकूँ तो बहुर खुशी होगी । इतना कहते हुए वो आदमी उठा और वहाँ से जाने लगा। जैसे-जैसे वो आदमी आगे बढता गया डिब्बे मे माहौल एक दम से बदलता गया। जितनी देर तक वो डिब्बे मे था एक अजीब सा सन्नाटा था। माहौल एकदम से शांत था, ऐसा लगता था जैसे कि कोई दैविय शक्ति वहाँ आअसीन थी मगर उसके डिब्बे से दूर होता गया उस सन्नाटे की जगह एक कोलाहल ने ले ली। चारो तरफ से लोगों के चिखने चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। डिब्बे में बैठे सभी लोग यकायक एक दुसरे को दबा कुचलते हुए भागते हुए नज़र आने लगे। इससे पहले की कोई कुछ भी समझ पाता डिब्बे मे एक ज़ोर का धमाका हुआ। और सबकुछ फिर से एकदम से शांत हो गया। उस धमाके के काई घंटे के बाद लोगों को होश आया। मगर ये क्या?, इस डिब्बे में तो बस यही चार लोग मौजूद थे बाकि सभी को जैसी जमीन ने निगल लिया था। 

ना तो कोई बंदा ना ही कोई बंदे की जात। मिलो तक एक भी ज़िंदा शै नज़र नही आ रहा था। ये चारो खूश भी थे और दू:खी भी । खुशी इस बात की थी कि ये सभी ज़िंदा थे, और दू:ख इस बात का कि बस यह चार लोगो ही बचे थे और इनमे से कोई भी एक दुसरे को पसंद नहीं करता था। तभी टोपी वाली की नज़र पगडी वाले पर पडी उसका एक हाथ गायब था। सिर पर चोटों के निशान थे मगर उसे देखकर ऐसा लग नही रहा था कि उसे दर्द हो रहा है । उसी तरह से पाया कि पिताम्बर वाले की एक टांग नही है, क्रास वाले की तो वो हाथ ही नही रही जिसमे क्रास बंधा हुआ था। और वो पुरी तरह से काला भी पड चुका था। टोपी वाले ने अपने जन्मदाता को धन्यवाद दिया कि उसे कोई नुकसान हुआ। मगर जैसे ही उसने अपनी आंखे बंद की उसे अपना खुद का हुलिआ भी नज़र आ गया । दरसल उसका पुरा शरीर ही जल चुका था । ना तो चेहरा बचा था और ना ही शरिर का कोई भी एक अंग ही बचा था । बस आंखे बची थी जिससे कि वो सभी कुछ देख पा रहा था । उसे बडा अफसोस हुआ कि उसके साथ ऐसा कैसे हो सकता है? 


तभी एक चमचमाती हुई गाडी वहा आकर रुकी । उस गाडी मे ना तो पहिये थे और नाही उसे चलाने वाला कोई शख्स ही था । वो खुद-ब-खुद वहा चली आ रहे थी । इससे पहले की उन चारों मे से कोई भी कुछ भी सोच पाता उनका तन खुद से ही उस गाडी मे जाकर बैठ चुका था। वो गाडी उन्हे लेकर बडी तेज़ गती से भागी जा रही थी । इतनी तेजी से कि किसी को कुछ भी कहने और सुनने का समय ही नही मिल रहा था। इस दौरान उन सभी के नज़रों के सामने उनके जीवन का पुरा लेखा जोखा चलने लगा। सभी अपने होश पाने के उम्र से लेकर अपने आखिरी पल को अपने ही आंखो के सामने फिर से गुजरता हुआ देख रहे थे । सभी के अपने अपने क़िस्से थे और उनमे अपने-अपने जिस्से भी थे । अबतक वो सभी इस बात को स्वीकार कर चुके थे कि वो मर चुके है। 


Rate this content
Log in