AMAN SINHA

Tragedy Crime

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AMAN SINHA

Tragedy Crime

कलंक - भाग 2

कलंक - भाग 2

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मुक़दमा शुरू हुआ। पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ के वकीलों ने अपनी अपनी दलीलें सुनाई। जज साहब बहुत ही गम्भीर मुद्रा में उनकी तर्क वितर्क को सुनते और काफी मंथन के बाद अगली तारीख का ऐलान कर दिया। सबकुछ इतना जल्दी हुआ की मुझे आधी बात तो समझ में ही नहीं आयी के आखिर यह पूरा मामला है क्या। कोर्ट रूम में सबसे पहली पंक्ति में बैठ कर भी उनकी बाते मेरे पल्ले नहीं पड़ रही थी। मुझे आशा थी की जैसे फिल्मों में वकील लोग एक दूसरे से लड़ते झगड़ते है और गुस्से और ताव में आकर एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते है यहां भी वैसा यही कुछ होगा मगर हुआ इसके बिलकुल उलट। जज साहब ने आते ही कह दिया की जो भी बात है फ़टाफ़ट से निबटा लिया जाए। आज मामले की संख्या वैसी ही ज्यादा है। इस सुनवाई के लिए ३० मिनट से ज्यादा का समय नहीं दिया जा सकता। पक्ष विपक्ष दोनों अपने-अपने तर्क पूरे सपोर्टिंग कागज़ात के साथ लेकर सामने चले आये और जो कहना है कह दिया जाये। उनकी बीच क्या बाते हुई यह सुनने के लिए सबसे नज़दीक वाली पंक्ति भी मानो सबसे दूर ही लग रही थी। मेरे मन का संशय थोड़ा और बढ़ने गया। 

विडम्बना तो देखिये की जिस कमरे के अंदर बैठ कर जज साहब घूस लेने वालों को क़ानून का पाठ पढ़ाते है या सजा देते है उसी कमरे के बाहर उनका ही मुलाज़िम चंद रुपयों में उनकी ही आबरू बेचकर अपना घर चला रहा होता है। खैर, यह सब तो सरकारी तंत्र के काम करने का तरीका है। इसमें कोई भी कुछ नहीं कर सकता। मैंने भी उस सेवादार की जेब कुछ हगर्म करी और इस मामले की पूरे पोथी ही अपने साथ लिवा लाया। बाकी के सभी लोग बस नयी और ताज़ा खबर की बात कर रहे थे मगर मैंने इस मामले के शुरु से लेकर अभी दस मिनट पहले तक का पूरा ब्योरा ही ले लिया था। अगली सुनवाई अगले हफ्ते होने वाली थी, यानी के मेरे पास पूरा एक सप्ताह था इस मामले को शीशे की तरह से समझने के लिए। फिर मुझे थोड़ा समय भी दिया गया था जिससे मैं अपना पहला असाइनमेंट ढंग से पूरा कर सकूं। मैंने भी अपना सारा समय बस इसी काम में लगा दिया। पूरे मामले को पहले अक्षर से अंतिम वाक्य तक पढ़ा। एक दो नहीं पांच बार पढ़ा और फिर जो बात समझ में आयी की यह मामला दरअसल उतना सहज और उतना सरल है नहीं जितना की आम लोग इसे समझ रहे थे (उस समय मुझे ऐसा लगता था)।  

शायद लोग इसे ऐसी ही किसी भी दूसरे शील भंग की बात समझ रहे थे मगर यह मामला उससे कहीं ज्यादा पेचीदा था। यह मामला था जिसमें एक बड़े घर की लड़की ने अपने कालेज के एक लड़के पर ज़बरदस्ती करने और उसका शील भंग करने के का आरोप लगाया था। लड़के शहर के एक जाने माने रईस परिवार से आती है। उसके पिता की कई शोरूम है पूरे शहर में। कई तरह के व्यापार में उनका हाथ है। शहर के बड़े लोगों के बीच उनका उठना बैठना है। भगवान का दिया हुआ सबकुछ है और बस दो ही बेटियां है। उनमें से एक बेटी अभी कालेज की आख़िरी साल में है और दूसरी पहली साल में। ये जो लड़का है यह उन दोनों ही लड़कियों का कॉमन फ्रेंड है। लड़के का परिवार एक साधारण घर से है। पिता जी नहीं रहे। माँ ने ही उसे पाला और पढ़ाया है। लड़का पढ़ाई के साथ साथ नौकरी भी करता है। तीनों दोस्त होने के नाते अक्सर एक दूसरे के घर आते जाते रहते है। ये दोनों बहने भी एक आदर्श बेटियों की तरह ही है। लड़का भी किसी गलत काम में फंसा नहीं है। पढ़ाई में सही था, इस मामले के पहले कभी किसी दूसरे मामले में इसका नाम नहीं था। पोलिस रिकार्ड भी साफ़ था। 

 यहां तक की पोलिस के प्राथमिक जांच में भी उसके खिलाफ ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था जिससे की उसके किसी तरह के आपराधिक गतिविधि में लिप्त होने की पुष्टि होती हो। तो फिर ऐसा लड़का अचानक से इस तरह के मामले में कैसे आ गया। और फिर उसी लड़की के साथ जिसके साथ उसकी पांच सालो की दोस्ती थी। चुकी लड़की का बाप पैसे वाला था जिसके चलते पोलिस वालो ने त्वरित कार्यवाही करते हुए लड़के को आनन् फानन में गिरफ्तार भी कर लिया और उसपर चार्ज भी लगा दिया। मगर अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी थी कि लड़का सच में इस आरोप का दोषी है भी या नहीं। बस उसे किसी तरह से फंसा दिया गया था, ऐसा मुझे लगा रहा था। और मेरे इस छोटे से शंका ने मुझे इस मामले के जड़ तक जाने के लिए मज़बूर कर दिया। वैसे भी नए-नए पत्रकार के सर पर सच जानने का और सच लिखने का भूत तो सवार होता ही है। मैं भी उनसे कुछ अलग तो नहीं, मैं जवान हूँ, जोशीला हूँ, हिम्मतवाला हूँ, ताक़तवर हूँ, समझदार हूँ, पढ़ा लिखा हूँ और सबसे जरूरी बात अभी तक मैं इंसान भी हूँ।


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